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________________ गीता दर्शन भाग-3 सुहृन्मित्रायुदासीनमध्यस्थद्वेष्यबन्धुषु । का भी कोई मूल्य न हो, लेकिन मित्रता और शत्रुता का भारी मूल्य साधुष्वपि व पापेषु समबुद्धिविशिष्यते।।९।। | हो। एक व्यक्ति ऐसा हो सकता है कि मित्र के लिए हजार तरह के और जो पुरुष सुहृद, मित्र, बैरी, उदासीन, मध्यस्थ, द्वेषी और यश खोने को राजी हो जाए; और एक व्यक्ति ऐसा भी हो सकता बंधुगणों में तथा धर्मात्माओं में और पापियों में भी समान है कि यश के लिए हजार मित्रों को खोने के लिए राजी हो जाए। तो भाव वाला है, वह अति श्रेष्ठ है। | जिस व्यक्ति के लिए मित्र और शत्रु महत्वपूर्ण बात है, उसे न यश महत्वपूर्ण है, न सुख; न दुख महत्वपूर्ण है, न अपयश। उसके लिए | मित्रता और शत्रुता के बीच ही समत्व को साधना होगा। कष्ण के लिए समत्वबुद्धि समस्त योग का सार है। | जो आपके लिए महत्वपूर्ण है द्वंद्व, वही द्वंद्व आपके लिए मार्ग पा इसके पूर्व के सूत्रों में भी अलग-अलग द्वारों से | | बनेगा। दूसरे का द्वंद्व आपके लिए मार्ग नहीं बनेगा। समत्वबुद्धि के मंदिर में ही प्रवेश की योजना कृष्ण ने एक व्यक्ति हो सकता है, जिसे सौंदर्य का कोई बोध ही न हो। कही है। इस सूत्र में भी पुनः किसी और दिशा से वे समत्वबुद्धि की बहुत लोग हैं, जिन्हें सौंदर्य का कोई बोध ही नहीं है। वे भी . घोषणा करते हैं। बहुत-बहुत रूपों में समत्वबुद्धि की बात करने का दिखलाते हैं कि उन्हें सौंदर्य का बोध है। और अगर उनके पास थोड़े प्रयोजन है। | पैसे की सुविधा है, तो वे भी अपने घर में वानगाग के चित्र लटका प्रयोजन है, भिन्न-भिन्न, भांति-भांति प्रवृत्ति और प्रकृतियों के सकते हैं और पिकासो की पेंटिंग्स लटका सकते हैं, लेकिन फिर लोग हैं। समत्वबुद्धि का परिणाम तो एक ही होगा, लेकिन यात्रा भी सौंदर्य का बोध और बात है। जिसे सौंदर्य का बोध है, उसके भिन्न-भिन्न होगी। हो सकता है, कोई सुख और दुख के बीच लिए द्वंद्व, कुरूपता और सौंदर्य के बीच संतुलन का होगा। सभी समबुद्धि को साधे। लेकिन ऐसा भी हो सकता है कि सुख और दुख को वह बोध नहीं है। के प्रति किसी व्यक्ति की संवेदनशीलता ही बहुत कम हो। हम सौंदर्य का बोध रवींद्रनाथ जैसे किसी व्यक्ति को होता है। तो सबकी संवेदनशीलताएं, सेंसिटिविटीज अलग-अलग हैं। हो उस बोध के परिणाम ये होते हैं कि छोटा-सा असौंदर्य भी सहना सकता है, किसी व्यक्ति के लिए सुख और दुख उतने महत्वपूर्ण कठिन हो जाता है। छोटा-सा, बहुत छोटा-सा, जिस पर हमारी द्वार ही न हों; यश और अपयश ज्यादा महत्वपूर्ण हों। दृष्टि भी न जाए, वह भी रवींद्रनाथ को असह्य हो जाएगा। अगर आप कहेंगे कि यश तो सुख ही है और अपयश दुख ही है! नहीं; | कोई व्यक्ति थोड़ा इरछा-तिरछा भी रवींद्रनाथ के पास आकर बैठ थोड़ा बारीकी से देखेंगे, तो फर्क खयाल में आ जाएगा। गया, तो वे बेचैन हो जाएंगे। जरा-सा अनुपात अगर ठीक नहीं है, ऐसा हो सकता है कि एक व्यक्ति यश पाने के लिए कितना ही तो उन्हें बड़ी कठिनाई शुरू हो जाएगी। एक व्यक्ति अगर जोर की दुख झेलने को राजी हो जाए; और ऐसा भी हो सकता है कि कोई आवाज में बोल दे और सौंदर्य खो जाए आवाज का, संगीत खो व्यक्ति, अपयश न मिले, इसलिए कितना ही दुख झेलने को राजी जाए, तो रवींद्रनाथ को पीड़ा हो जाएगी। और हो सकता है, आपको हो जाए। इससे उलटा भी हो सकता है। ऐसा व्यक्ति हो सकता है, जोर से बोलना महज आदत हो। आपको कोई बोध ही न हो। जो अपने सुख के लिए कितना ही अपयश झेलने को राजी हो जाए। | प्रत्येक व्यक्ति के बोध-तंतु भिन्न-भिन्न हैं। हम सभी के पास ऐसा व्यक्ति हो सकता है, जो दुख से बचने के लिए कितना ही यश अपना-अपना द्वंद्व है। तो समझें कि अपना द्वंद्व ही अपना द्वार खोने को राजी हो जाए। बनेगा। इसलिए कृष्ण हर द्वंद्व की बात करते हैं। तो जिसके लिए अपयश और यश ज्यादा महत्वपूर्ण हैं, उसके | इस सूत्र में वे कहते हैं, मित्र और शत्रु के बीच जो सम है। लिए सुख और दुख का द्वार काम नहीं करेगा। उसके लिए यश और ___ अर्जुन के लिए यह सूत्र उपयोगी हो सकता है। अर्जुन के लिए अपयश में समबुद्धि को साधना पड़ेगा। | मित्रता और शत्रुता कीमत की बात है। क्षत्रिय के लिए सदा से रही वही साधना पड़ेगा हमें, जो हमारा चुनाव है, जो हमारा द्वंद्व है। है। बहुत संवेदनशील क्षत्रिय अपनी जान दे दे, वचन न छोड़े। हम सबके द्वंद्व अलग अलग हैं। मित्र को दिया गया वायदा पूरा करे, चाहे प्राण चले जाएं। अगर यह भी हो सकता है कि किसी व्यक्ति के लिए अपयश, यश वणिक बुद्धि का व्यक्ति हो, तो एक पैसा बचा ले, चाहे हजार 74]
SR No.002406
Book TitleGita Darshan Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year1996
Total Pages488
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size20 MB
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