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________________ परमात्मा के स्वर से प्रतिध्वनियां करते हैं, वे ही हम पर अनंतगुना होकर वापस लौट | नहीं चलता, जब हम जिंदगी को देते हैं अपने सिक्के। हमें पता तभी आती हैं। परमात्मा प्रतिपल हमें वही दे देता है, जो हम उसे चढ़ाते | चलता है, जब सिक्के लौटते हैं। हम जब बीज बोते हैं, तब तो पता हैं। हमारे चढ़ाए हुए फूल हमें वापस मिल जाते हैं। हमारे फेंके गए | | नहीं चलता; जब फल आते हैं, तब पता चलता है। और अगर फल पत्थर भी हमें वापस मिल जाते हैं। हमने गालियां फेंकी, तो वे ही | | विषाक्त आते हैं, जहरीले, तो हम रोते हैं और कोसते हैं। हमें पता हम पर लौट आती हैं। और हमने भजन की ध्वनियां फेंकी, तो वे नहीं कि यह फल हमारे बीजों का ही परिणाम है। ही हम पर बरस जाती हैं। ध्यान रहे, जो भी हम पर लौटता है, वह हमारा दिया हुआ ही अगर जीवन में दुख हो, तो जानना कि आपने अपने चारों तरफ | लौटता है। हां, लौटने में वक्त लग जाता है। प्रतिध्वनि होने में दुख के स्वर भेजे हैं, वे आप पर लौट आए हैं। अगर जीवन में घृणा समय गिर जाता है। उतने समय के फासले से पहचान मुश्किल हो मिलती हो, तो जानना कि आपने घृणा के स्वर फेंके थे, वे आप पर | जाती है। वापस लौट आए। अगर जीवन में प्रेम न मिलता हो, तो जानना कि इस जगत में किसी भी व्यक्ति के साथ कभी अन्याय नहीं होता। आपने कभी प्रेम की आवाज ही नहीं दी कि आप पर प्रेम वापस | अन्याय नहीं होता, उसी का यह सूत्र है। लौट सके। कृष्ण कहते हैं, जो जिस रूप में मुझे भजता है, मैं उसी रूप में इस जीवन के महा नियमों में से एक है, हम जो देते हैं, वह हम उसे भजता हूं। पर वापस लौट आता है। अगर किसी व्यक्ति ने इस जगत को पदार्थ माना, तो उसे यह कृष्ण वही कह रहे हैं। वे कहते हैं, जो जिस रूप में मुझे भजता | | जगत पदार्थ मालूम होने लगेगा। क्योंकि परमात्मा उसी रूप में लौटा देगा। अगर किसी व्यक्ति ने इस जगत को परमात्मा माना, • जिस रूप में, इस शब्द को ठीक से स्मरण रख लेना। जो जिस तो यह जगत परमात्मा हो जाएगा। क्योंकि यह अस्तित्व उसी रूप रूप में मुझे भजता है, मैं भी उसे उसी रूप में भजता हूं। मैं उसे वही | में लौटा देगा, जो हमने दिया था। लौटा देता हूं, इन दि सेम क्वाइन। __हमारा हृदय ही अंततः हम सारे जगत में पढ़ लेते हैं। और हमारे वह कहानी तो हम सबको पता है। सभी को पता होगा। एक | | हृदय में छिपे हुए स्वर ही अंततः हमें सारे जगत में सुनाई पड़ने आदमी पर अदालत में मुकदमा चला। वकील ने उससे कहा कि तू | | लगते हैं। चांद-तारे उसी को लौटाते हैं, जो हमारे हृदय के किसी बोलना ही मत। तू तो इस तरह की आवाजें करना कि पता चले, | कोने में पैदा हुआ था। लेकिन अपने हृदय में जो नहीं पहचानता, गूंगा है। जब मजिस्ट्रेट पूछे, तभी तू गूंगे की तरह आवाजें करना। | लौटते वक्त बहुत चकित होता है, बहुत हैरान होता है कि यह कहां कहना, आ आ आ। कुछ भी करना, लेकिन बोलना मत। से आ गया? इतनी घृणा मुझे कहां से आई? इतने लोगों ने मुझे अदालत में वही किया। फिर मुकदमा जीत गया। वह आदमी | | घृणा क्यों की? लौटे, खोजे, और वह पाएगा कि घृणा ही उसने बोल ही नहीं सकता था और उस पर जुर्म था कि उसने गालियां दीं, | भेजी थी। वही वापस लौट आई है। अपमान किया; यह किया, वह किया। मजिस्ट्रेट ने कहा, जो इसका एक अर्थ और खयाल में ले लें। जिस रूप में भजता है, आदमी बोल ही नहीं सकता, वह गालियां कैसे देगा, अपमान कैसे | इसका एक अर्थ मैंने कहा। इसका एक अर्थ और खयाल में ले लें। करेगा! वह छूट गया। बाहर आकर वकील ने कहा, मुकदमा जीत अगर कोई न भजता हो, किसी भी रूप में न भजता हो परमात्मा गए। अब मेरी फीस चका दो। उस आदमी ने कहा. आ आ आ। को. तो परमात्मा क्या लौटा देता है? अगर कोई भजता ही नहीं इन दि सेम क्वाइन। उसने उसी सिक्के में वापस फीस भी चका दी। परमात्मा को, तो परमात्मा भी न भजने को ही लौटाता है। अगर उस वकील ने कहा, बंद करो यह बात। यह अदालत के लिए कहा | कोई व्यक्ति जीवन से किसी भी तरह के संवाद नहीं करता, तो था। उस आदमी ने कहा, आ आ आ। उसने कहा, कुछ समझ | जीवन भी उसके प्रति मौन हो जाता है; जड़ पत्थर की तरह हो जाता आता नहीं कि आप क्या कह रहे हैं? हाथ से इशारा किया, आंख | है। सब तरफ पथरीला हो जाता है। जिंदगी में जिंदगी आती है हमारे से इशारा किया। | जिंदा होने से। इसलिए जिंदा आदमी के पास पत्थर भी जिंदा होता जिंदगी भी उसी सिक्के में हमें लौटा देती है। हमें तब तो पता है और मरे हुए, मुर्दा तरह के आदमी के पास, जिंदा आदमी भी
SR No.002405
Book TitleGita Darshan Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year1996
Total Pages464
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
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