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गीता दर्शन भाग-20
पक्ष में या उस पक्ष में कुछ भी तो कहो
| एक्सपैंशन जो है, यह जो विस्तार है...। उस भिक्षु ने कहा, पक्ष में गया कि तू जीती और मैं हारा। हम | क्या कभी आपने सोचा कि ब्रह्म शब्द का अर्थ होता है, विस्तार, निष्पक्ष ही रहेंगे। तुझे जो करना है, तू कर; हमें जो करना है, हम वृहत, जो फैलता ही चलता गया; जिसके फैलाव का कोई अंत करते हैं। जब तू हमारे बाबत कोई पक्ष और विपक्ष नहीं लेती, हम | | नहीं है। ब्रह्म बड़ा साइंटिफिक शब्द है, बहुत वैज्ञानिक-धार्मिक क्यों लें?
| बहुत कम। ब्रह्म शब्द धार्मिक जरा भी नहीं, बिलकुल वैज्ञानिक चार महीने बीत गए। भिक्षुओं में तो बड़ी बेचैनी थी। न मालूम | टरमिनालाजी है। ब्रह्म का मतलब है, जो फैलता ही गया है, दि कितनी खबरें भिक्षु लेकर बुद्ध के पास आते। कोई खबर लाता कि एक्सपैंडिंग, जो फैलता ही चला जाता है; जिसके फैलाव का कोई गया वह आदमी। हमने नाचते देखा है कि वह वेश्या नाच रही है | अंत ही नहीं है। इस फैले हुए का नाम ब्रह्म है।
और वह देख रहा है! कोई कहता कि सुना आपने! वेश्या उसे बहुत | | इस फैले हुए, दिखाई पड़ने वाले अस्तित्व को कृष्ण कहते हैं, ही मिष्ठान्न खिला रही है और वह खा रहा है! कोई कहता, सुना मेरा शरीर। जो वीतराग हो जाता है, वह मेरे शरीर को उपलब्ध हो आपने! वेश्या ने उसे रेशम के वस्त्र दे दिए हैं और वह पहने हुए है! जाता है। कोई कहता. सना आपने। सब नियम. सब मर्यादाएं टट गई हैं। क्यों? आत्मा को तो हम उपलब्ध ही हैं. हमारी भल सिर्फ शरीर
बुद्ध सुनते और कहते कि ठीक है। लेकिन तुम चिंतित क्यों हो? की है। कृष्ण की आत्मा को तो हम अभी भी उपलब्ध हैं, लेकिन तुम उस भिक्षु में उत्सुक हो या उस वेश्या में? और डूबेगा वह, तो हम अपने-अपने शरीरों में अपने को बंद मान रहे हैं, वह हमारी वह डूबेगा; तुम्हारी परेशानी क्या है? खोएगा, तो वह खोएगा; तुम | भूल है। इसलिए कृष्ण आत्मा की बात नहीं करते। उसको तो हम इतने आतुर क्यों हो?
उपलब्ध ही हैं, सिर्फ यह शरीर की भूल भर टूट जाए हमारी। हमें चार महीने बाद वह भिक्षु आया, लेकिन अकेला नहीं था। साथ किसी दिन यह पूरा ब्रह्मांड अपना शरीर मालूम पड़ने लगे, बस। में एक भिक्षुणी भी थी; वह वेश्या भिक्षुणी हो गई थी। बुद्ध ने अपने आत्मा तो हम अभी भी हैं। आत्मा तो हमारी इस अज्ञान के क्षण भिक्षुओं को कहा कि देखो! भिक्षु लौट आया, साथ में एक भिक्षुणी में भी कृष्ण का हिस्सा है। हमारी भ्रांति है शरीर की सीमा की। अगर
भी लौट आई है। वेश्या से पूछा कि तुझे क्या हुआ? उसने कहा, शरीर की सीमा की भ्रांति टूट जाए, और हम कृष्ण के शरीर ' हुआ कछ भी नहीं: मैं हार गई। पहली बार मैं कहीं हारी। सदा मैं को कृष्ण का शरीर अर्थात ब्रह्मांड को उपलब्ध हो जाएं. तो जीतती रही; अब मैं हार गई। और अकंप इस आदमी को जाना। बात पूरी हो जाती है। इसलिए कृष्ण कहते हैं, मेरे शरीर को उपलब्ध वीतराग इस मनुष्य को जाना। और इसकी वीतरागता में जो शांति हो जाता है।
और जो आनंद अनुभव हुआ, वही खोजने मैं भी चली आई हूं। शरीर का क्या अर्थ है? शरीर का अर्थ है, आत्मा का आवरण। बुद्ध ने कहा, देखो! संन्यासी जीतकर लौट आया है, वीतराग था, शरीर का अर्थ है, आत्मा का गृह। अंग्रेजी का शब्द बाडी बहुत इसलिए। तुम हार जाते। तुम विरागी हो, तुम्हारे हारने का डर था। अच्छा है। जिसके भीतर आत्मा एंबाडीड है, जिसके भीतर शरीर
कृष्ण कहते हैं, जो वीतराग होता, वह मेरे शरीर को उपलब्ध हो | छिपा है। जाता है। इसमें बड़े मजे की बात है। वे कह रहे हैं, मेरे शरीर को। यह जो हमारा शरीर, हमें लगता है, मेरा शरीर! यह हमें क्यों अच्छा न होता क्या कि वे कहते, मेरी आत्मा को! लेकिन वे कहते लगता है? राग के कारण, विराग के कारण। अगर राग और विराग हैं, मेरे शरीर को, टु माई बाडी। अच्छा होता न कि वे कहते, मेरी दोनों छूट जाएं, तो यह मेरा शरीर है, ऐसा नहीं लगेगा। तब सब आत्मा को उपलब्ध हो जाता है। लेकिन कृष्ण कहते हैं, मेरे शरीर शरीर मेरे हैं। तब चांद-तारे मेरे शरीर के भीतर हो जाएंगे; तब मेरी को उपलब्ध हो जाता है।
जो चमड़ी है, वह असीम को छू लेगी। क्या राज है? राज बड़ा है।
राम कहते थे कि मैंने चांद-तारों को अपने शरीर के भीतर यह जो ब्रह्मांड है, यह जो विश्व है, यह शरीर है परमात्मा का। परिभ्रमण करते देखा। पागलपन की बात है। बिलकुल पागलपन यह जो दृश्य चारों ओर फैला है, यह शरीर है। ये चांद-तारे, यह की बात है! लेकिन ठीक कहते थे। जब भी कोई राग और विराग सूरज, यह अरबों-अरबों प्रकाश वर्ष की दूरियों तक फैला हुआ | | के एक क्षण को भी पार हो जाए, उसी क्षण अपने शरीर का स्मरण
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