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________________ भागवत चेतना का करुणावश अवतरण हुआ, उस दिन भी सूरज निकला था। उसके पहले भी निकलता बहुत-बहुत अनेक जन्म हो चुके हैं, लेकिन उन्हें तू नहीं जानता और मैं जानता हूं। उसका सवाल ठीक मालूम पड़ता है। हमें भी ठीक मालूम | इस संबंध में दो-तीन बातें स्मरणीय हैं। पड़ेगा। लेकिन वह इस भीतर के आदमी को देखने में असमर्थ है; एक तो, जो हम नहीं जानते, वह नहीं है, ऐसा मानने की जल्दी हम भी असमर्थ हैं। | नहीं कर लेनी चाहिए। अर्जुन जो नहीं जानता है, वह नहीं है, ऐसी कृष्ण जिसकी बात कर रहे हैं, वह इस शरीर की बात नहीं है। निष्पत्ति निकाल लेनी बहुत चाइल्डिश, जुवेनाइल है, बचकानी है। वह उस आत्मा की बात है, जो न मालूम कितने शरीर ले चुकी और बहुत कुछ है जो हम नहीं जानते हैं, फिर भी है। हमारे न जानने से छोड़ चुकी, वस्त्रों की भांति। न मालूम कितने शरीर जरा-जीर्ण हुए, | नहीं नहीं हो जाता। लेकिन अर्जुन की जो भूल है, वह नेचरल पुराने पड़े और छूटे! वह उस आत्मा की बात है, जो मूलतः फैलेसी है, बड़ी प्राकृतिक भूल है। हम भी यही भूल करते हैं। परमात्मा से एक है। वह सूर्य के पहले भी थी। सूर्य बुझ जाएगा, | मनुष्य की सहज भूलों में एक भूल है, जो नहीं जानते, हम मानते उसके बाद भी होगी। हैं, वह नहीं है। न मालूम किस भ्रांति के कारण हम ऐसा सोचते हैं जहां तक शरीरों का संबंध है, यह सूर्य हमारे जैसे न मालूम | कि हमारा जानना ही सब कुछ है। कितने करोड़ों शरीरों को बुझा देगा और नहीं बुझेगा। लेकिन जहां ___ अगर हमारा जानना ही सब कुछ है-अगर मैं आपसे पूछू कि तक भीतर के तत्व का संबंध है, ऐसे सूरज जैसे करोड़ों सूरज बुझ | उन्नीस सौ इकसठ, एक जनवरी थी या नहीं? आप कहेंगे, थी; मैं जाएंगे और वह भीतर का तत्व नहीं बुझेगा। था। लेकिन अगर मैं पूर्वी कि एक जनवरी, उन्नीस सौ इकसठ की लेकिन उसका अर्जुन को कोई खयाल नहीं है, इसलिए वह कोई याददाश्त बताइए, अगर थी! तो क्या किया था सुबह उठकर? सवाल उठाता है। उसका सवाल, अर्जुन की तरफ से संगत, कृष्ण दोपहर क्या किया था? सांझ क्या बोले थे? रात नींद आई थी, नहीं की तरफ से बिलकुल असंगत। अर्जुन की तरफ से बिलकुल | आई थी? स्वप्न कौन-सा आया था? आप कहेंगे, कुछ भी याद तर्कयुक्त, कृष्ण की तरफ से बिलकुल अंधा। अर्जुन की तरफ से | नहीं है। अगर एक जनवरी, उन्नीस सौ इकसठ की कोई भी याद नहीं बड़ा सार्थक, कृष्ण की तरफ से अत्यंत मूढ़तापूर्ण। लेकिन अर्जुन | है, तो एक जनवरी, उन्नीस सौ इकसठ थी, इसके कहने का हक क्या कर सकता है! कृष्ण की तरफ से होगा मूढ़तापूर्ण, उसकी तरफ | क्या है? आप कहेंगे, थी तो जरूर, मैं था, लेकिन याद! याद से तो बहुत तर्कपूर्ण है। यद्यपि अंततः सभी तर्क अत्यंत मूर्खतापूर्ण बिलकुल नहीं है। सिद्ध होते हैं, लेकिन जब तक वे ऊंचाइयां नहीं मिलीं, तब तक ___ याद दिलाई जा सकती है। क्योंकि एक गहरा नियम है मन का अर्जुन की भी मजबूरी है। और उसका सवाल उसकी तरफ से | कि जो भी जाना जाता है, वह कभी भूलता नहीं। विस्मृति असंभव बिलकुल संगत है। | है। जिस बात को हम कहते हैं विस्मृति हो गई, उसका भी इतना ही मतलब है कि हम उसे पकड़ नहीं पा रहे हैं। हम नहीं पकड़ पा रहे | हैं, कहां रख गई वह याद, किस कोने-कातर में मन के समा गई! श्री भगवानुवाच __ छोटा मन है, करोड़ों स्मृतियां हैं। मन को छांटना पड़ता है बहूनि मे व्यतीतानि जन्मानि तव चार्जुन। स्मृतियों को। छांट-छांटकर काम की बचा लेता है, बाकी को तान्यहं वेद सर्वाणि न त्वं वेत्थ परंतप ।।५।। | कचरेघर में डाल देता है। लेकिन कचराघर भी भीतर ही है। जैसे भगवान बोले हे अर्जुन, मेरे और तेरे बहुत-से जन्म हो चुके अपने घर में कोई नीचे, तहखाने में चीजों को डालता चला जाता है, परंतु हे परंतप! उन सबको तू नहीं जानता है और मैं है, जो बेकार हैं। लेकिन बिलकुल बेकार नहीं है, कभी काम में आ जानता हूं। | सकती हैं, इसलिए इकट्ठी भी करता चला जाता है। हम भी अपने मन में सब इकट्ठा करते चले जाते हैं। इसलिए जो आपको एक जनवरी उन्नीस सौ इकसठ याद न आती हो, वह क ष्ण ने अर्जुन से कहा, मेरे और तेरे, हे परंतप! आपको सम्मोहित करके, बेहोश किया जाए, तो याद आ जाती है। 211
SR No.002405
Book TitleGita Darshan Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year1996
Total Pages464
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
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