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________________ गीता दर्शन भाग-28 तो यही बड़ी शक्ति जो काम में प्रकट होती थी, संकल्प बन गई। | था अपनी पत्नी के लिए। ऋषि-मुनि से भी प्रार्थना की जा सकती अर्जन अगर रूपांतरित हो जाए तो जैसा महाक्षत्रिय है वह बाहर थी कि एक पत्र दान दे दो। बहत हैरानी की बात है। के जगत में, ऐसा ही भीतर के जगत में महावीर हो जाएगा। इतनी जब पश्चिम के लोगों को पहली दफा पता चला, तो उन्होंने कहा, ही ऊर्जा जो क्रोध और काम में बहती है, संकल्प को मिल जाए, | कैसे अजीब लोग रहे होंगे! पहली तो बात कि वे ऋषि-मुनि, वे क्या तो संकल्प महान होगा। संभोग के लिए राजी हुए होंगे? और दूसरी बात, यह कैसा अनैतिक इस जगत में वरदानों को अभिशाप बनाने वाले लोग हैं; इस कृत्य कि कोई आदमी अपनी पत्नी के लिए पुत्र मांगने जाए! उनकी जगत में अभिशापों को वरदान बना लेने वाले लोग भी हैं। अगर समझ के बाहर पड़ी बात। मिस मियो ने और जिन लोगों ने भारत के काम-क्रोध बहुत हो, तो भी परमात्मा को धन्यवाद देना कि शक्ति | | खिलाफ बहुत कुछ लिखा, इस तरह की सारी बातें इकट्ठीं की। पर पास में है। अब रूपांतरित करना अपने हाथ में है। काम-क्रोध उन्हें कुछ पता नहीं। अब मिस मियो अगर जिंदा होती, तो उसको बिलकल न हो. तो बहत कठिनाई है। बहुत कठिनाई है। शक्ति ही पता चलता कि अब पश्चिम भी सोच रहा है। पास में नहीं है, रूपांतरित क्या होगा! पश्चिम सोच रहा है कि सभी लोग अगर बच्चे पैदा न करें, तो इसलिए काम-क्रोध बहुत होने से परेशान न हो जाना, सिर्फ | बेहतर है। क्योंकि पश्चिम कह रहा है कि जब हम बीज चुनकर विचारमग्न होना। और काम-क्रोध को रूपांतरित करने की यह बेहतर फूल, बेहतर फल पैदा कर सकते हैं, तो हम वीर्य चुनकर भी बहुत वैज्ञानिक विधि है। कहनी चाहिए जितनी वैज्ञानिक हो सकती बेहतर व्यक्ति क्यों पैदा नहीं कर सकते हैं! आज नहीं कल पश्चिम है उतनी कृष्ण ने कही है, श्वास सम, ध्यान आज्ञा-चक्र पर। इसका | | में वीर्य भी चुना हुआ होगा। उनके रास्ते टेक्नोलाजिकल होंगे। अभ्यास करते रहें। धीरे-धीरे, धीरे-धीरे जो मैंने कहा है, वह | लेकिन एक ऋषि के पास जाकर कोई प्रार्थना करे, तो ऋषि का आपके खयाल में आना शुरू हो जाएगा। धीरे-धीरे एक दिन वह | तो काम विसर्जित हो गया है। इसीलिए ऋषि से प्रार्थना की जा आ जाएगा कि भीतर की सारी ऊर्जा रूपांतरित हो जाएगी। | सकती थी। जिसकी कोई कामना नहीं रही, जिसकी कोई वासना ऐसा भी नहीं है कि...लोग मुझसे पूछते हैं कि अगर ऐसा हो | | नहीं रही, उसी से तो पवित्रतम वीर्य की उपलब्धि हो सकती है। गया कि सारा क्रोध खो गया, सारा काम खो गया, सारी ऊर्जा | जिसकी कोई इच्छा नहीं है, शरीर को भोगने का जिसका कोई संकल्प बन गई, तो इस जगत में जीएंगे कैसे? इस जगत में क्रोध | खयाल नहीं है, वह भी अपने शरीर को दान कर सकता है। की भी कभी जरूरत पड़ती है। ध्यान रहे, वीर्य कोई आध्यात्मिक चीज नहीं है, शारीरिक, निश्चित पड़ती है। लेकिन ऐसा व्यक्ति भी क्रोध कर सकता है, फिजियोलाजिकल घटना है। और जब आप मरेंगे, तो आपका सारा पर ऐसा व्यक्ति क्रोधित नहीं होता। ऐसा व्यक्ति क्रोध कर सकता है, वीर्य आपके शरीर के साथ नष्ट हो जाएगा। वह कोई आत्मिक चीज लेकिन ऐसा व्यक्ति क्रोधित नहीं होता। ऐसा व्यक्ति क्रोध का भी | नहीं है कि आपके साथ चली जाएगी। शरीर का दान है। उपयोग कर सकता है; लेकिन वह उपयोग है। जैसे आप अपने हाथ ऋषि-मुनि जानते हैं कि उनका शरीर तो खो जाएगा, लेकिन को ऊपर उठाते हैं, नीचे गिराते हैं। यह बीमारी नहीं है। लेकिन हाथ अगर उनके शरीर से कुछ भी उपयोग हो सकता है, तो उतना ऊपर-नीचे होने लगे, और आप कहें कि मैं रोकने में असमर्थ हूँ; उपयोग भी किया जा सकता है। ये बहुत हिम्मतवर लोग रहे होंगे। यह तो होता ही रहता है; यह मेरे वश के बाहर है-तब बीमारी है। साधारण हिम्मत से यह काम होने वाला नहीं था। क्रोध उपयोग किया जा सकता है। लेकिन केवल वे ही उपयोग इस संकल्प की स्थिति के बाद भी काम और क्रोध का उपयोग कर सकते हैं, जो क्रोध के बाहर हैं। हमारा तो क्रोध ही उपयोग किया जा सकता है, इंस्ट्रमेंट की तरह। न किया जाए, तो कोई करता है; हम क्रोध का उपयोग नहीं करते। हमारे ऊपर तो हमारी मजबूरी नहीं है। फिर व्यक्तियों पर निर्भर करता है कि उपयोग इंद्रियां ही हावी हो जाती हैं। करेंगे, नहीं करेंगे। एक बात पक्की है कि काम और क्रोध आपका क्या काम का उपयोग नहीं हो सकता? इस मुल्क ने तो बहुत उपयोग नहीं कर सकते। वैज्ञानिक प्रयोग किए हैं इस दिशा में भी। बहुत सैकड़ों वर्षों तक, इसीलिए इस चक्र को आज्ञा-चक्र नाम दिया गया कि जिस अगर किसी को पुत्र न हो, तो ऋषि-मुनि से भी पुत्र मांगा जा सकता | व्यक्ति का इस चक्र पर कब्जा हो जाता है, उसकी इंद्रियां उसकी 4221
SR No.002405
Book TitleGita Darshan Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year1996
Total Pages464
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
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