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अकंप चेतना 0
वाले से कि अगर बड़े महल में रहने वाले को सुख मिल गया है, | | बाप से बहुत प्रेम था। उसने कहा, मैं तो ठीक, लेकिन पिता बुजुर्ग तो अब वह किसके लिए दौड़ रहा है? अब उसे सुख ले लेना | हुए। उनकी मौत करीब है। मैं तो अभी इसके बिना भी बहुत दिन चाहिए। वह दौड़ रहा है; वह भागा हुआ है। उसे बड़े महल का | | जी लूंगा। उसने पिता को दे दिया। लेकिन पिता फकीर का भक्त पता ही नहीं है। बड़ा महल उन्हीं को दिखाई पड़ता है, जो झोपड़ों | था; उसी फकीर का। उसने सोचा कि हमारे रहने न रहने का क्या में हैं। जो बड़े महल में हैं, उनको दिखाई ही नहीं पड़ता। उनके लिए सवाल! वह फकीर रहे जमीन पर, तो हजारों के काम आएगा। वह
और बड़े महल हैं! वे दिखाई पड़ते हैं, जिनमें वे नहीं हैं। जहां वे | जाकर फकीर के चरणों में फल रखा। फकीर ने फल देखा। उसने नहीं हैं।
कहा, यह फल आया कैसे तुम्हारे पास! मन की आदत ऐसी है कि अगर आपका एक दांत टूट जाए, तो | | सब कहीं और जी रहे हैं। सब कहीं और! कोई वहां नहीं जी रहा जीभ वहीं-वहीं जाती है. जहां दांत टट गया है। बाकी दांतों को छोड | है, जहां है। कहीं और! सब दौड़ रहे हैं किसी और के लिए। सब देती है, जो हैं; और जो नहीं है, उसके साथ बड़ा लगाव बना लेती | | भागे हुए हैं; कोई खड़ा हुआ नहीं है। यह जो भागा हुआ पन है...। है। पता नहीं क्या दिमाग खराब हो जाता है जीभ का! और एक ___ अगर कृष्ण कहते हैं कि अज्ञानी ऐसा भी कहते हों कि नहीं, हमें दफे देख लिया कि नहीं है, अब दुबारा क्या देखना? लेकिन जीभ | | मिला नहीं, हम कैसे मान लें! हो सकता है, अर्जुन मान ले; सब है कि देखे चली जाती है। उन दांतों को कभी नहीं देखती, जो हैं। सुख उसने जाने हैं। आप शायद न मानें; बहुत सुख नहीं जाने हैं। जो नहीं है, अभाव, एब्सेंस का जो गड्डा बन जाता है, उसी में जीभ | | क्या पता हमें, जो सुख हमें मिले नहीं, वे हैं या नहीं? जाती है। मन भी जहां-जहां अभाव है, वहीं जाता है।
तो कृष्ण दूसरा सूत्र उनके लिए कहते हैं, जो मान न पाएं। महल जिसके पास है, उसको महल नहीं दिखाई पड़ता। उसकी | | जिन्होंने सुख न देखे हों, उनके लिए वे कहते हैं कि अगर सुख हों जीभ महल पर नहीं जाती। उसके लिए कहीं कोई और चीज है, जो | भी-हाइपोथेटिकली, बातचीत के लिए मान लें कि सुख है नहीं है। उसकी जीभ वहां चली जाती है।
| भी-तो भी सुख शुरू होता और समाप्त हो जाता है। — मैंने सुनी है एक इजिप्शियन कहानी। मैंने सुना है कि एक और ध्यान रहे, जो सुख शुरू होता है और समाप्त हो जाता है, इजिप्शियन फकीर से परमात्मा प्रसन्न हो गया। बहुत प्रसन्न हो गया, वह अगर हो भी, तो परिणाम में सिवाय दुख के कुछ भी नहीं छोड़ तो उस फकीर को कहा कि तुझे जो चाहिए वह मांग ले। उसने कहा | जाएगा। क्योंकि सुख के बाद दुख की छाया हो जाएगी। ऐसे ही कि आपकी जो मर्जी हो! तो परमात्मा ने, कहते हैं, उसे एक फल जैसे कभी रास्ते से गुजर रहे हों, अंधेरी रात हो, और जोर से कोई दे दिया और कहा कि इसे जो खा लेगा, वह अमर हो जाएगा। कार आपकी आंखों में प्रकाश डालती हुई गुजर जाए। पीछे और लेकिन उस फकीर ने कहा कि दो आदमी खाएं, तो दो हो सकते | घनघोर अंधेरा हो जाता है। पहले कुछ दिखाई भी पड़ता था, अब हैं? परमात्मा ने कहा, नहीं, एक!
वह भी दिखाई नहीं पड़ता। उस फकीर का अपने शिष्य से बड़ा प्रेम था। उसने सोचा कि | सुख मिले भी, तो समाप्त होता है क्षण में। यह भी कृष्ण उनके अगर मैं अमर हो गया और शिष्य मर गया, कोई सार नहीं है। | लिए कह रहे हैं, जो नहीं जानते। जो जानते हैं, वे तो कहते हैं, एक उसके बिना तो मेरा कोई सुख ही नहीं है। उसने शिष्य को कहा कि क्षण को भी नहीं मिलता। लेकिन अज्ञानी के लिए इतना छोड़ते हैं तू यह ले ले। तू अमर हो जा। पर उस शिष्य का एक लड़की से | कि शायद क्षणभर को मिले भी, तो शुरू हुआ कि समाप्त हुआ। प्रेम था। उसने सोचा, मैं अकेला अमर हो गया, तो बिलकुल | इधर शुरू नहीं हुआ कि उधर समाप्त होना शुरू हो जाता है। इधर बेकार! वह उस लड़की को दे आया। पर उस लड़की का गांव के जन्मा नहीं कि उधर मरा। इधर लहर बनी नहीं कि बिखरी। इधर एक सिपाही से प्रेम था। उसने कहा कि मैं अमर हो गई! वह उस | | किरण उतरी नहीं कि खोई। आता भी नहीं है हाथ में कि जाने की सिपाही को दे आई। लेकिन उस सिपाही का लगाव राजा की स्त्री तैयारी करके आता है। ऐसा सुख मिल भी जाए यदि, तो पीछे से लगा हुआ था। वह रात जाकर उसको दे आया। उस स्त्री ने सिवाय दुख के घाव के कुछ भी नहीं छोड़ जाता है। ऐसा भी जो सोचा कि मैं अगर खाकर अमर हो जाऊं, तो मेरे बेटे का क्या | जान ले, वह भी विषयों, वृत्तियों के तालमेल को निर्मित नहीं होने होगा? उसका भारी लगाव, उसने बेटे को दे दिया। बेटे का अपने | | देता। अनासक्त, वीतराग, स्वयं में ठहरा हुआ हो जाता है। और
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