________________
गीता दर्शन भाग-2
है। बुद्धि जब कंपती है, तो प्रीतिकर-अप्रीतिकर से नहीं कंपती।। खयाल था। अब मैं कोई खयाल न बनाऊंगा। बुद्ध ने कहा, ईश्वर बुद्धि जब कंपती है, तो ठीक या गलत, इससे कंपती है। हृदय | | के संबंध में कुछ भी न कहोगे? उसने कहा कि अगर मेरी आंखें कंपता है प्रीतिकर-अप्रीतिकर से। बुद्धि कंपती है, ठीक या गलत।। | कह सकें, तो कहें। अगर मेरे चलते हुए पैर कह सकें, तो कहें। ठीक में भी वह वैसा ही खड़ा रहे, गलत में भी वह वैसा ही खड़ा | | अगर मेरे हाथ कह सकें, तो कहें। अगर मेरा अस्तित्व कह सके, रहे। बुद्धि भी न कंपे, बुद्धि के द्वार से भी न कंपे।
तो कहे। मैं नहीं कहूंगा। और अगर ईश्वर है, तो पूरे प्राण, एक व्यक्ति आपसे कहता है, ईश्वर है? बुद्धि तत्काल कहती | श्वास-श्वास कहेगी। है, है। किसी की बुद्धि कहती है, नहीं है। कंप गई। कंप गई! __ आस्तिकता भी एक संशय है, एक कंपन–पक्ष में। नास्तिकता
आस्तिक भी कंप गया, जिसने कहा, है। नास्तिक भी कंप गया, | भी एक संशय है, एक कंपन-विपक्ष में। धार्मिकता अकंप है, जिसने कहा, नहीं है। आस्तिक प्रीतिकर ढंग से कंपा। नास्तिक | निष्कंप-न पक्ष, न विपक्ष। धार्मिकता आस्तिकता और अप्रीतिकर ढंग से कंपा। आस्तिक पक्ष में कंपा; नास्तिक विपक्ष में | | नास्तिकता दोनों का ट्रांसेंडेंस है, दोनों के पार चले जाना है। कंपा। लेकिन कंप गया।
और ध्यान रहे, नास्तिक को कोई कितना ही समझाकर आस्तिक कृष्ण उस धार्मिक की बात कर रहे हैं कि कोई कहता है, ईश्वर बना दे, बीमारी बदल जाती है, नास्तिक नहीं बदलता। आस्तिक है, और बुद्धि संशय में नहीं पड़ती। इतना भी संशय नहीं करती कि | | को कोई कितना समझाकर नास्तिक बना दे, बीमारी बदल जाती है, है या नहीं। अकंपित रह जाती है।
आस्तिक नहीं बदलता। बीमारी के बदल जाने से स्वास्थ्य नहीं परम आस्तिक का लक्षण तो यही है। परमात्मा के पक्ष में भी न | आता। कंपे, विपक्ष में भी न कंपे, वही व्यक्ति परमात्मा को उपलब्ध होता ___ पक्ष बीमारी है, निष्पक्षता स्वास्थ्य है। पक्ष बीमारी है, निष्पक्षता है। जरा कठिन है बात। अति कठिन है। परम आस्तिक, वस्तुतः स्वास्थ्य है। पक्ष यानी झुके, डोले, गए। कुछ चुन लिया। च्वाइस आस्तिक वही है, जो परमात्मा है, इतना भी आग्रह नहीं करेगा। | हो गई। चुनाव कर लिया। तटस्थ न रह सके। निष्पक्ष, यानी नहीं क्योंकि यह कंपन है। यह नहीं के विरोध में चले जाना है। यह | किया चुनाव, तटस्थ रहे। नास्तिक से उलटा होना है, आस्तिक होना नहीं है। आस्तिक इतनी | हृदय के लिए प्रीतिकर और अप्रीतिकर कंपाते हैं। बुद्धि के लिए . बड़ी घटना है कि नास्तिक को भी समा लेती है।
| विश्वास और अविश्वास कंपाते हैं। विश्वास और अविश्वास में बुद्ध के पास एक व्यक्ति आया और उसने कहा कि मैं ईश्वर को | भी जो निःसंशय खड़ा है। नहीं मानता हूं, शांत हो सकता हूं? बुद्ध ने कहा, ईश्वर को मान | | ध्यान रहे, आमतौर से लोग व्याख्या करते हैं निःसंशय की ही कैसे सकोगे बिना शांत हुए? उस आदमी ने कहा, ईश्वर को | विश्वासी के लिए, कि जो विश्वास करता है दृढ़ता से, वह आदमी नहीं मानता है, शांत हो सकता हूं? बुद्ध ने कहा, शांत हुए बिना | | संशयरहित है। मैं नहीं करता हूं। मैं कहता हूं, जो आदमी कहता है, ईश्वर को मान ही कैसे सकोगे? तो जो तुमसे कहता हो कि ईश्वर | | मैं दृढ़ता से विश्वास करता हूं, उसके भीतर संशय उतनी ही दृढ़ता को पहले मान लो, वह गलत कहता है। ईश्वर को मानकर कोई | | से मौजूद है। उस संशय को ही दबाने के लिए वह दृढ़ता का पत्थर दुनिया में शांत नहीं होता। क्योंकि जो शांत नहीं है, वह ईश्वर को | रख रहा है। जो आदमी कहता है, मैं पक्का विश्वास करता हूं; मान ही नहीं सकता है। तुम शांत हो जाओ। उसने कहा, ईश्वर को | | जानना कि वह डरा हुआ है अपने भीतर के अविश्वास से। उसको मानने की कोई भी जरूरत नहीं है? बुद्ध ने कहा, कोई भी जरूरत ही दबाने के लिए पक्के विश्वास की दीवाल खड़ी कर रहा है। जो नहीं है। तम शांत हो जाओ, शांत हो जाने की जरूरत है। | आदमी सच में विश्वास करता है, पक्का-कच्चा नहीं करता।
शांति की साधना में लग गया वह व्यक्ति। वर्ष बीता। बुद्ध ने | | जो आदमी आपसे कहे कि मैं पक्का प्रेम करता हूं, समझना कि उससे पूछा, शांत हुए? उसने कहा, पूरी तरह शांत हो गया हूं। बुद्ध | | प्रेम पक्का नहीं है। क्योंकि पक्के का खयाल ही कच्चे वाले को ने कहा, ईश्वर के संबंध में क्या खयाल है? उसने कहा, अब कोई | | आता है, नहीं तो पक्के की कोई बात ही नहीं है। जो प्रेम करता है, खयाल न बनाऊंगा। अब मैं जानता हूं कि ईश्वर है, यह भी अशांत | | वह तो शायद कह भी नहीं सकता कि मैं प्रेम करता हूं। इतना कहना लोगों का खयाल था; ईश्वर नहीं है, यह भी अशांत लोगों का | | भी उसे गलत मालूम पड़ेगा। अगर प्रेम ने खुद नहीं कह दिया है,
390