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तीन सूत्र-आत्म-ज्ञान के लिए
बिना दीया नहीं जलेगा भीतर का। संकल्प के बिना आत्म-ज्ञान | | समझ गया कि समझ ठीक थी! आ गए वे लोग। अंदर भी आ रहे
का दीया नहीं जलेगा। और संकल्प हममें बिलकल भी नहीं है। हैं! वह आंख बंद करके पड़ रहा। है ही नहीं।
| जब उन लोगों ने देखा कि यह आदमी जाग रहा है. जिंदा है और एक मित्र परसों आए और उन्होंने कहा, संन्यास तो मैं लेना | | कब्र में लेटा है और हमें देखकर आंख भी बंद कर ली, तो बेचारे चाहता हूं, लेकिन ये गेरुए वस्त्र मैं सिर्फ घर में ही पहनूंगा, बाहर | | दीवाल से उतरकर अंदर आए। जब वे अंदर आए, तो उसने कहा, नहीं। बाहर क्यों नहीं पहनिएगा! उन्होंने कहा, लोग क्या कहेंगे! | हो गया फैसला! उसने श्वास भी रोक ली।
लोग क्या कहेंगे! पब्लिक ओपीनियन हमारी आत्मा बन गई है। | उन्होंने उसे आकर हिलाया और कहा कि यह क्या कर रहे हैं लोग क्या कहेंगे! घर में छिपकर कोई संन्यासी हो सकता है ? कि | आप? जिंदा होकर कब्र में क्यों पड़े हैं? क्या है कारण आपके घर में दरवाजा बंद करके हम गेरुए कपड़े पहन लें। काफी बहादुरी | भागने का? आप भागे क्यों? डरे क्यों? इतने घबड़ा क्यों रहे हैं? है! तो फिर ऐसा क्यों नहीं करते कि मरते वक्त पहन लेना और कब्र कंप क्यों रहे हैं? नसरुद्दीन ने कहा, अब यह मत पूछो। मैं तुमसे में चले जाना! तो दुबारा लौटकर कोई कुछ कह नहीं सकेगा। | पछना चाहता हं कि तुम मेरे पीछे क्यों पडे हो? तम यहां क्यों
इतनी संकल्पहीनता! इतनी कमजोरी! इतना मन हीन, इतना दीन | | आए? उन्होंने कहा, यही तो हम तुमसे पूछना चाहते हैं कि तुम यहां कि कोई क्या कहेगा! इतनी परतंत्रता कि लोग क्या कहेंगे इस पर! | क्यों कब्र में छिपे हो? नसरुद्दीन ने कहा, खतम करो बात को। आई तो फिर आत्मा को जगाना बहुत कठिन हो जाएगा। बहुत कठिन हो | | एम हियर बिकाज आफ यू, एंड यू आर हियर बिकाज आफ मी। जाएगा। यह तो बड़ी छोटी-सी बात है। कपड़े तो आपकी मौज है। | छोड़ो। जाने दो। मैं तुम्हारी वजह से यहां हूं, तुम मेरी वजह से यहां अपनी। इतनी भी स्वतंत्रता नहीं मनुष्य को कि कपड़े खुद पहन ले | | हो। और बेवजह है सारा मामला! जो उसे पहनने हैं? इसके लिए भी दूसरे से पूछने जाना पड़ेगा? तो | | हम दूसरों से डर रहे हैं, दूसरे हमसे डर रहे हैं! सब एक-दूसरे फिर आप हैं या नहीं? और बड़े मजे की बात यह है कि जिनसे आप | से डरे हैं। डर रहे हैं, वे आपसे डर रहे हैं। जिनसे आप डर रहे हैं, वे आपसे। | नहीं; ऐसे आत्मा पैदा न होगी। संकल्प का पहला लक्षण यह है डर रहे हैं!
कि मुझे जो ठीक लगता है, वह मैं करूंगा। जो मुझे गलत लगता मैंने सुना है कि मुल्ला नसरुद्दीन एक दिन सांझ एक कब्र के पास | है, वह मैं नहीं करूंगा। चाहे सारी दुनिया कहती हो, करो, तो नहीं कब्रगाह की दीवाल पर बैठा हुआ था। उसने किताब पढ़ी थी, डान | करूंगा। और जो मुझे ठीक लगता है, वह मैं करूंगा; चाहे सारी क्विक्जोट के संबंध की किताब पढ़ी थी। किताब में उसने पढ़ा था | दुनिया कहती हो कि मत करो, तो भी मैं करूंगा। कि कई बार अकेले में दुश्मन हमला कर देता है। और-और बातें | इस जगत में केवल उन्हीं लोगों की आत्माएं विकसित होती हैं, पढ़ी थीं। सांझ ढल रही थी, सूरज उतर रहा था नीचे। देखा उसने जो भीड़ के व्यर्थ भय से मुक्त हो जाते हैं। कि गांव के बाहर कुछ लोग बैंड-बाजा बजाते हुए, तलवारें लिए __ संकल्प पहला सूत्र है आत्म-ज्ञान को बढ़ाने के लिए, विल चले आ रहे हैं। उसने समझा कि हुआ खतरा; दिखता है, दुश्मन पावर। आ रहे हैं! अभी किताब से भरा हुआ था। सोच लिया कि दुश्मन दूसरा सूत्र है, साहस। हम रोज टालते रहते हैं। रोज टालते रहते आ रहे हैं। भागकर कब्रगाह के अंदर चला गया। देखा, कहां | हैं, कल करेंगे, परसों करेंगे। सोचते हैं, अभी ठीक समय नहीं छिपूं? एक नई कब्र किसी ने खोदी थी। मुर्दे को लेने गए होंगे। | आया। असली बात दूसरी होती है। साहस नहीं जुटा पाते हैं, तो सोचा उसने कि इसी में लेट जाऊं, जब तक ये लोग निकल जाएंगे। अपने को धोखा देते हैं। यह भी समझने की तैयारी नहीं होती कि मैं वह उस गड्ढे में लेट गया।
दुस्साहसी नहीं हूं, साहसी नहीं हूं; कमजोर हूं। यह भी कोई समझ उसे कूदते और भागते उन लोगों ने भी देखा, जो आ रहे थे। वे | ले, तो मैं कहता हूं, बड़ा साहस है। जो आदमी यह समझ ले कि कोई दुश्मन न थे, न कोई शत्रु थे। वह एक बरात थी, दूसरे गांव मैं साहसी नहीं हूं, उसने भी बहुत बड़ा साहस किया। लेकिन हम जा रही थी। वे भी हैरान हुए कि यह आदमी इतनी तेजी से भागा! अपने को साहसी भी समझे जाते हैं और कल पर छोड़े जाते हैं; क्या हुआ! वे लोग दीवाल पर चढ़कर झांके। नसरुद्दीन पक्का कल करेंगे, परसों करेंगे। इस आशा में कि नहीं, कर तो हम सकते
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