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गीता दर्शन भाग-28
आकांक्षाएं बहुत हैं। आकांक्षाएं तृप्त नहीं होती; दुख आता है। | जवानी, बुढ़ापा; फिर डूबा सूरज; फिर गिर गए बेहोश होकर मिट्टी
भिखारी की बड़ी आकांक्षाएं हैं। दोपहर तक बहुत मांगता। रोज | | | में। फिर उठेंगे; फिर गिरेंगे। और इस नींद से जागने का हमें कोई इरादे करके आता था कि आज करोड़ मांग लूंगा, कि अरब रुपए | खयाल नहीं आता। मांग लूंगा। कि आज तो कोई सम्राट निकलेगा, और सोने-चांदी __ कृष्ण कहते हैं, जो जाग जाता है, उसकी आत्मा का ज्ञान की बरसा हो जाएगी। लेकिन कुछ न होता, वही तांबे के ठीकरे | अभिव्यक्त हो उठता है; आत्म-अज्ञान गिर जाता है। और ऐसा दो-चार गिरते। परेशान हो जाता दोपहर तक; शराब पीना शुरू कर | व्यक्ति ही केवल इस अस्तित्व में परमात्मा को देख पा सकता है। देता। सांझ होते-होते, सूरज ढलते-ढलते तक, वह इतना बेहोश | ऐसे ही व्यक्ति को केवल परमात्मा का अनुभव हो सकता है। होने लगता कि आखिरी होश में, आखिरी वक्त वह अपनी तख्ती | सोए हए आदमी को अपना ही अनभव नहीं होता. परमात्मा का उलटी करके रख देता।
| अनुभव तो बहुत दूर की बात है। नींद में दबे हुए आदमी को अपना रिवर्सिबल साइनबोर्ड था वह! उस पर दोनों तरफ लिखा हुआ | | ही पता नहीं, परमात्मा का पता तो बहुत कठिन है। लेकिन बहुत था। दूसरी तरफ लिखा हुआ था, आई एम पैरालाइज्ड, मुझे लकवा लोग हैं, जिन्हें अपना पता नहीं और जो परमात्मा को खोजने निकल लग गया है। बेहोश होकर गिर जाता। सुबह मांगता रहता; दोपहर | | जाते हैं। उनकी खोज कभी पूरी नहीं होगी। गूंगा-बहरा हो जाता; सांझ नशे में डूब जाता। आखिरी काम वह आत्म-ज्ञान परमात्म-ज्ञान का द्वार है। और जिसे स्वयं का पता इतना कर देता नशे में गिरने के पहले, तख्ती उलटकर रख देता। | | चल गया, दूर नहीं है परमात्मा अब; अब बिलकुल निकट है। अब __ करीब-करीब जिंदगी ऐसी ही बीतती है। बचपन बड़ी आशाओं| | दर्पण तो मिल ही गया; अब परमात्मा की झलक को पकड़ लेना से भरा हुआ है। बड़ी आशाओं से भरा हुआ है, सब मिल जाएगा। | कठिन नहीं है; पकड़ ही जाएगी। परमात्मा तो सब तरफ मौजूद है। बड़े कल्पना के फूल और सपनों के गीत। और फिर जवानी आती | | एक दफा हृदय का दर्पण साफ, स्वच्छ...। है। और तब एक-एक चीज डिसइलूजन होने लगती है, एक-एक ___ अंतःकरण शुद्ध हो जिसका, कृष्ण कहते हैं। शुद्ध और चीज का भ्रम टूटने लगता है। बुढ़ापा आने के पहले-पहले आदमी | | साफ-परमात्मा की झलक पकड़नी शुरू हो जाती है। और फिर की सारी इंद्रियां गूंगी और बहरी हो जाती हैं। फिर बेहोशी और तंद्रा | | ऐसा नहीं है कि उसे देखने कहीं बद्री-केदार या काबा या मक्का या पकड़नी शुरू कर देती है। मरने के पहले अधिकतम लोग | जेरूसलम जाना पड़ता है। जहां हैं आप, वहीं उसकी तस्वीर है। जो पैरालाइज्ड हो जाते हैं, पैरालाइज्ड सब अर्थों में। बहुत गहरे अर्थों | भी आप देखते हैं, उसमें वही है। न देखें, आंख बंद कर लें, तो भी में लकवा लग जाता है।
वही है। सो जाएं, तो बाहर से शरीर ही सोता है फिर। भीतर तो वह मरने के बहत पहले बहत लोग मर जाते हैं। मरने तक जिंदा रहने जागकर जानता ही रहता है. देखता ही रहता है। हम जागकर भी वाले बहुत कम लोग हैं जमीन पर। मरने तक जिंदा रहने वाले बहुत | सोते हैं, आत्म-ज्ञानी सोया हुआ भी जागता ही रहता है। कम लोग हैं, मरने के बहुत पहले मर जाते हैं। कुछ लोग तीस साल इसलिए कृष्ण कहते हैं, आत्म-अज्ञान की जो तंद्रा है, जिसने की उम्र में मर जाते हैं, कुछ लोग चालीस साल की उम्र में। यह बात | घेर लिया है, उसे हटा देना पड़े, तोड़ देना पड़े। दूसरी है कि दफनाया जाता है कोई सत्तर साल में, कोई अस्सी साल कैसे तोड़ें उसे? अगर अंधेरे को हटाना हो, तो क्या करें? अंधेरे में। दफनाने में और मरने में अक्सर फासला होता है। और जो को काटें तलवार लाकर? नहीं कटेगा। होता तो कट जाता। 3 आदमी मरने तक जिंदा है-उतना ही ताजा, जैसा बचपन में ताजा | नहीं कटेगा तलवार से। दीए को जलाएं; दीए की ज्योति को बड़ा था, उतना ही प्रफुल्लित—उसे मौत भी न मार पाएगी। मौत आकर | | करें। अगर आत्म-अज्ञान मिटाना है, तो आत्म-अज्ञान की फिक्र गुजर जाएगी और वह मौत के पार भी जिंदा खड़ा रह जाएगा। | ही न करें। आत्म-ज्ञान को जगाएं और बढ़ाएं। किन चीजों से
लेकिन नींद रोज बढ़ती है। ठीक सुबह जब हम उठते हैं, तो ताजे आत्म-ज्ञान बढ़ता है? होते हैं; दोपहर थक गए होते हैं, तंद्रा उतरनी शुरू हो जाती है; सांझ एक, दो-तीन सूत्र आपसे कहना चाहूंगा। एक-संकल्प, थक जाते हैं, गिर जाते हैं, सो जाते हैं। हर बार, हर जिंदगी में यही विल। जिस व्यक्ति को भी आत्म-ज्ञान की ज्योति को जगाना है, सुबह, यही दोपहर, यही सांझ। अंतहीन यही चलता है। बचपन, उसे संकल्प के सूत्र को पकड़ लेना चाहिए। संकल्प तेल है, उसके
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