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________________ गीता दर्शन भाग-26 थे, तो लगता था, अमृत में भीगकर आते हैं। आज उसके ओंठों से डरूंगा। रस्सी को देखकर मारने की तैयारी नहीं करूंगा, सांप को सिवाय जहर के कुछ और मिलता हुआ मालूम नहीं पड़ता है। उसी | | देखकर मारने की तैयारी करूंगा। सांप पैर पर पड़ जाए, तो मर भी की आंखें कल गिरती थीं, तो लगता था कि आशीर्वाद बरस रहे हैं। जा सकता हूं। रस्सी पैर पर पड़ जाए, तो मरने का कोई सवाल ही आज उसकी आंखों में सिवाय तिरस्कार और घृणा के कुछ भी | नहीं है। दिखाई नहीं पड़ता। हो क्या गया? वही आंख है, वही आदमी है। जिस आदमी को अंधेरे में रस्सी सांप जैसी दिखाई पड़ रही है, भीतर की हिप्नोसिस उखड़ गई। भीतर का सम्मोहन उखड़ गया, उससे अगर आप कहो कि रस्सी और सांप सब एक हैं; बेफिक्री से टूट गया, विजड़ित हो गया। जा। तो वह कहेगा, माफ करो। रस्सी और सांप एक नहीं हैं! रस्सी कृष्ण कहते हैं, प्रकृति की माया, प्रकृति की हिप्नोसिस में डूबा भी सांप दिखाई पड़ रही हो, तो भी उसके लिए तो सांप ही है। हुआ आदमी अपने ही अच्छे और बुरे के सोच-विचार में भटकता सांपों का जो लोग अध्ययन करते हैं, वे कहते हैं कि सत्तानबे रहता है। परसेंट सांप में जहर ही नहीं होता। सिर्फ सौ में तीन सांपों में जहर समझें, एक रात आपने सपना देखा कि चोरी की है। और एक | | होता है। लेकिन जिन सांपों में जहर नहीं होता, उनके काटे हुए लोग रात आपने सपना देखा कि साधु हो गए हैं। सुबह जब उठते हैं, तो भी मर जाते हैं। अब जहर होता ही नहीं, तो बड़ा चमत्कार है। जब क्या चोरी का जो सपना था, वह बुरा; और साधु का जो सपना था, जहर नहीं है, तो यह आदमी काटने से मर क्यों गया? वह अच्छा! सुबह जागकर दोनों सपने हो जाते हैं। न कुछ अच्छा आदमी सांप के जहर से कम मरता है। सांप ने काटा, इस रह जाता है, न बुरा रह जाता है। दोनों सपने हो जाते हैं। | सम्मोहन से मरता है। इसीलिए तो जहर उतारने वाले जहर उतार संत उसे ही कहते हैं, जो अच्छे और बुरे दोनों के सपने के बाहर | | देते हैं। जहर वगैरह कोई नहीं उतारता। अगर सांप बिना जहर का आ गया। और जो कहता है कि वह भी सपना है, यह भी सपना रहा, तो मंत्र वगैरह काम कर जाते हैं। और सत्तानबे परसेंट सांप है। बुरा भी, अच्छा भी, दोनों सम्मोहन हैं। | बिना जहर के हैं। इसलिए बड़ी आसानी से उतर जाता है। कठिनाई ___ इस सम्मोहन से कोई जाग जाए, तो ही तो ही केवल–जीवन नहीं पड़ती। इतना भरोसा भर दिलाना है कि उतार दिया। चढ़ा तो में वह परम घटना घटती है, जिसकी ओर कृष्ण इशारा कर रहे हैं। | था ही नहीं! उतर जाता है! लेकिन जरूरी नहीं है कि न उतारा, तो नहीं मरता आदमी। आदमी मर सकता था। इसलिए काम तो परा हुआ, आदमी को बचाया तो है ही। प्रश्नः भगवान श्री, माया और परमात्मा में क्या । | इसलिए मैं मंत्र के खिलाफ में नहीं हूं। जब तक नकली सांप से भिन्नता है? माया से ज्ञान कैसे व क्यों ढंकता है? मरने वाले लोग हैं, तब तक नकली मंत्र से जिलाने वाले लोगों की जरूरत रहेगी। जरूरत है। रस्सी पर भी पैर पड़ जाए और अगर आपको खयाल है कि सांप है, तो मौत हो सकती है। आपके लिए गया और परमात्मा में क्या भिन्नता है? | फर्क है। 11 जो माया में डूबे हैं, उन्हें तो बड़ी भिन्नता है। जैसे जो | | मैंने सुना है, एक गांव में एक फकीर रहता है गांव के बाहर। रात सपने में डबा है. उसे तो सपने में और जागने में और एक काली छाया अंदर जा रही है। उस फकीर ने पछा त कौन बड़ी भिन्नता है। लेकिन जो जाग गया, उसे सपने में और जागने में | है? उसने कहा, मैं मौत हूं। तू इस गांव में किसलिए जा रही है? भिन्नता नहीं होती, क्योंकि जागकर सपना बचता ही नहीं। भिन्नता | उसने कहा कि गांव में प्लेग आ रही है और मुझे दस हजार आदमी किससे? इसको ठीक से समझ लें। मारने हैं! एक रस्सी पड़ी है और मुझे सांप दिखाई पड़ रहा है। तो जब तक महीनेभर में कोई पचास हजार आदमी मर गए। फकीर ने कहा, मुझे सांप दिखाई पड़ रहा है, तब तक तो रस्सी और सांप में बड़ी | | हद हो गई! आदमी झूठ बोलते हैं, बोलते हैं; लेकिन मौत भी झूठ भिन्नता है। क्योंकि रस्सी को देखकर मैं भागूंगा नहीं, सांप को | | बोलने लगी! अब तो परमात्मा का भी भरोसा करना ठीक नहीं है। देखकर भागूंगा। रस्सी को देखकर डरूंगा नहीं, सांप को देखकर पता नहीं, वह भी झूठ बोलने लगा हो! 366
SR No.002405
Book TitleGita Darshan Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year1996
Total Pages464
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
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