SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 383
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ माया अर्थात सम्मोहन कैटेलिटिक एजेंट की बात थोड़ी खयाल में ले लें, तो कृष्ण का सूत्र | को भूख लग सकती है या नहीं? आप मर गए समझिए। शरीर अब समझ में आएगा। भी है, पेट अब भी है। भूख अब भी लगनी चाहिए; क्योंकि पेट विज्ञान में कैटेलिटिक एजेंट का बड़ा मूल्य है, अर्थ है। को भूख लगती थी, आपको तो लगती नहीं थी। आप अब नहीं हैं, कैटेलिटिक एजेंट से ऐसे तत्वों का प्रयोजन है, जो स्वयं भाग तो | पेट को भूख अब नहीं लगती है। यद्यपि इससे यह मतलब नहीं कि नहीं लेते किसी क्रिया में, लेकिन उनके बिना क्रिया हो भी नहीं आपको भूख लगती थी। आपकी मौजूदगी पेट को भूख लगने के सकती। जैसे कि हाइड्रोजन और आक्सीजन को हम मिला दें, तो | | लिए जरूरी थी। अन्यथा उसको भूख भी नहीं लगती। फिर भी भूख पानी नहीं बनेगा। बनना चाहिए, क्योंकि हाइड्रोजन और आक्सीजन | आपको नहीं लगती थी, भूख पेट को ही लगती थी। के अतिरिक्त पानी में और कुछ भी नहीं होता। हाइड्रोजन और सारी प्रकृति बर्तती है अपने-अपने गुणधर्म से, परमात्मा की आक्सीजन को मौजूद कर देने से पानी नहीं बनेगा। बनना चाहिए। | मौजूदगी में। सिर्फ उसकी प्रेजेंस काफी है। बस वह है, और प्रकृति क्योंकि पानी को अगर हम तोड़ें, तो सिवाय हाइड्रोजन और बर्तती चली जाती है। लेकिन वर्तन का कोई भी कृत्य परमात्मा को आक्सीजन के कुछ भी नहीं होता। कर्ता नहीं बनाता है। कर्ता और स्रष्टा में मैं यही फर्क कर रहा हूं। फिर पानी कैसे बनेगा? अगर हाइड्रोजन और आक्सीजन के | उसके बिना सृष्टि चल नहीं सकती, इसलिए उसे मैं स्रष्टा कहता बीच में बिजली कौंधा दें, तो पानी बनेगा। हूं। वह सृष्टि को चलाता नहीं रोज-रोज, इसलिए उसे मैं कर्ता नहीं बिजली क्या करती है कौंधकर? वैज्ञानिक कहते हैं, बिजली | कहता है। कुछ भी नहीं करती; सिर्फ उसकी मौजूदगी, प्रेजेंस कुछ करती है। कृष्ण के इस सूत्र में उन्होंने कहा है, जो जानते हैं, वे जानते हैं सिर्फ मौजूदगी! बिजली कुछ नहीं करती, सिर्फ उसकी मौजूदगी | | कि प्रकृति अपने गुणधर्म से काम करती रहती है। कुछ करती है। सिर्फ मौजूदगी। ध्यान रहे, बिजली कर्ता नहीं बनती; पानी भाप बनता रहता है। परमात्मा पानी को भाप नहीं बनाता। कुछ करती नहीं। सिर्फ मौजूदगी; बस उसके मौजूद होने में, उसकी लेकिन परमात्मा की मौजूदगी के बिना पानी भाप नहीं बनेगा। पानी मौजूदगी की छाया में हाइड्रोजन और आक्सीजन मिलकर पानी बन भाप बनकर बादल बन जाएगा। बादल सर्द होंगे, बरसा होगी। जाते हैं। पहाड़ों पर पानी गिरेगा। गंगाओं से बहेगा। सागर में पहुंचेगा। फिर इसीलिए अगर हम पानी को तोड़ें, तो हाइड्रोजन और बादल बनेंगे। यह चलता रहेगा। बीज वृक्षों से गिरेंगे जमीन में, आक्सीजनं तो हमको मिलेंगे, लेकिन बिजली नहीं मिलेगी। क्योंकि फिर अंकुर आएंगे। परमात्मा किसी बीज को अंकुर बनाता नहीं, बिजली कृत्य में प्रवेश नहीं करती। लेकिन बड़े मजे की बात यह है लेकिन परमात्मा के बिना कोई बीज अंकुरित नहीं हो सकता है। कि बिजली अगर मौजूद न हो, तो हाइड्रोजन और आक्सीजन उसकी मौजूदगी! लेकिन मौजूदगी का यह जो कैटेलिटिक एजेंट का मिलते भी नहीं हैं। इनके मिलन के लिए बिजली की मौजूदगी जरूरी खयाल है, इसे एक तरफ से और समझें। है। अब इस मौजूदगी को हम क्या कहें? इस मौजूदगी ने कुछ पश्चिम में एक वैज्ञानिक है, जीन पियागेट। उसने मां और बेटे किया जरूर, फिर भी कुछ भी नहीं किया; कर्ता नहीं है। के बीच, मां और बच्चे के बीच, जीवनभर क्या-क्या होता है, परमात्मा को इस सूत्र में कृष्ण बिलकुल कैटेलिटिक एजेंट कह इसका ही अध्ययन किया है। वह कुछ अजीब नतीजों पर पहुंचा है, रहे हैं। वे यह कह रहे हैं कि सारी प्रकृति बर्तती है। यद्यपि परमात्मा | वह मैं आपसे कहना चाहूंगा। वे भी कैटेलिटिक एजेंट जैसे नतीजे की मौजूदगी के बिना प्रकृति बर्त नहीं सकेगी। फिर भी परमात्मा की हैं। लेकिन कैटेलिटिक एजेंट तो पदार्थ की बात है। मां का संबंध मौजूदगी में प्रकृति ही बर्तती है, परमात्मा नहीं बर्तता। | और बेटे का संबंध पदार्थ की बात नहीं, चेतना की घटना है। जैसे मैंने उदाहरण के लिए कल आपको कहा था, उसे थोड़ा । जीन पियागेट का कहना है कि मां से बच्चे को दूध मिलता है, गहरे में देख लें। आपको भूख लगी है। मैंने आपसे कहा, भूख | यह तो हम जानते हैं। लेकिन कुछ और भी मिलता है, जो हमारी आपको नहीं लगती, पेट को लगती है। निश्चित ही भूख आपको पकड़ में नहीं आता। क्योंकि पियागेट ने ऐसे बहुत-से प्रयोग किए, नहीं लगती, पेट को लगती है। आपको सिर्फ पता चलता है कि पेट | | | जिनमें बच्चे को मां से अलग कर लिया। सब दिया, जो मां से को भूख लगी। लेकिन अगर आप शरीर के बाहर हों, तो फिर पेट मिलता था। दूध दिया। सेवा दी। सब दिया। लेकिन फिर भी मां से 357
SR No.002405
Book TitleGita Darshan Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year1996
Total Pages464
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy