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गीता दर्शन भाग-26
यात्रा, ऊपर की यात्रा शुरू नहीं होती। मैं का पत्थर हमारी गर्दन में किया जा सकता। लटका हुआ हमें नीचे डुबाए चला जाता है।
त्याग को भी लोग कहते हैं, मेरा। आदमी बहुत अदभुत है। एक अहंकार से बडा पाप नहीं है। बाकी सारे पाप उसी से पैदा होते आदमी कहता है. धन मेरा: एक आदमी कहता है कि धन मेरा था. हैं। संततियां हैं। मूल अहंकार है। फिर लोभ, और क्रोध, और अब त्याग मेरा है। मैंने लाख रुपये त्याग कर दिए। अब वह त्याग काम, सब उस अहंकार के आस-पास जन्म लेते चले जाते हैं। पर भी मेरे होने का दावा करता है। धन पर कोई दावा करे, समझ इसलिए कृष्ण कहते हैं, ममत्व को छोड़ दे जो! | में आता है; पागल है। लेकिन त्याग का भी कोई दावा करे, तब तो मेरा क्या है ? हाथ, जब मैं विदा होऊगा, बिलकुल खाली होंगे। | महा पागल है। एक आदमी कहता है, मेरे पास लाख रुपए हैं। और जिसे मैं ले जा न सकूँगा, वह मेरा कैसे है? और जिसे मैं मेरा अकड़कर चलता है रास्ते पर। दूसरा आदमी कहता है, मैंने लाख कह रहा हूं, वह मेरे पहले भी था; मैं उसे लाया नहीं, वह मेरा कैसे | रुपए त्याग कर दिए हैं। वह और भी ज्यादा अकड़कर चलता है है? और जिसे मैं मेरा कह रहा हूं, मुझसे पहले न मालूम कितने | रास्ते पर। त्याग भी मेरा! तब लगता है कि आदमी के पागलपन लोगों ने उसे मेरा कहा है। वे सब खो गए। वह अभी भी बना है। | की कोई सीमा नहीं है और अहंकार की तरकीबों का कोई अंत नहीं हम भी खो जाएंगे, वह फिर भी बना रहेगा।
| है। वह कहीं से भी रास्ता खोज लेता है। .. जमीन को हम कहते हैं, मेरी जमीन। उस जमीन ने हमारे जैसे | | इस पृथ्वी पर जो मान ले कि मैं अज्ञानी हूं, समझना कि उसने बहुत-से पागल देखे हैं। जिन्होंने मेरे की घोषणा की, लड़े, कटे | | ज्ञान का बहुत बड़ा कदम उठाया। जो मान ले कि मैं भोगी हूं,
और मिट्टी में खो गए। वह जमीन हंसती होगी कि दावेदार खोते | समझना कि उसने त्याग का बहुत बड़ा कदम उठाया। क्योंकि यह नहीं! वही पुराना दावा जारी रहता है! कितने लोग दावेदार हो चुके | मान्यता, यह समझ विनम्र कर जाती है और अहंकार को तोड़ती है। हैं उस जमीन के टुकड़े के, जिसके आप भी दावेदार हैं। कितने | लेकिन इस पृथ्वी पर कोई मानने को राजी नहीं है कि मैं अज्ञानी हूं। लोगों ने नहीं कहा कि मेरा है। फिर वे सब मेरे का दावा करने वाले | | मैंने सुना है कि एक ज्ञानी एक चर्च में गया, एक पादरी। और लोग खो गए; वह जमीन अपनी जगह पड़ी है। वह जमीन हंसती जो भी धर्मशास्त्र पढ़ लेते हैं, वे ज्ञानी हो जाते हैं ! ज्ञानी होना बड़ा होगी, जब आप अपने घर पर तख्ती लगाते होंगे कि मेरी जमीन, | | सरल है! है नहीं, मान लेना बहुत सरल है। उस पादरी को खयाल तब जमीन जरूर मुस्कुराती होगी कि फिर कोई पागल आ गया! | है कि मैं जानता हूं। आते ही उसने पहली धाक लोगों पर जमा देनी फिर वही भूल!
| चाही। उसने खड़े होकर लोगों से कहा कि मैं तुमको समझाऊंगा इस दुनिया में नई भूलें करने वाले लोग तक खोजना मुश्किल | | बाद में, पहले मैं यह पूछ लूं कि तुम में कोई अज्ञानी हो, तो खड़ा हैं। लोग पुरानी भूलें ही किए चले जाते हैं। नई भूल करना है भी | हो जाए। मुश्किल। आदमी सब भूलें कर चुका है; हजारों बार कर चुका है। ___ कौन खड़ा होता! लोग एक-दूसरे की तरफ देखने लगे। जैसे मैं
कृष्ण कहते हैं, ममत्व छूट जाए, कर्म जारी रहे, तो ऊर्ध्व यात्रा | आपसे पूछु कि कोई अज्ञानी हो, तो खड़ा हो जाए। तो जो जिसको शुरू हो जाती है। अतीत के कर्म कटते हैं और आदमी ऊपर उठता | | अज्ञानी समझता होगा—अपने को छोड़कर ही समझेगा
सदा-वह उसकी तरफ देखेगा कि फलां खडा हो रहा है कि नहीं? लेकिन ममत्व बहुत गहरा है। धन का तो है ही, पद का तो है ही; | अब तक खड़ा नहीं हुआ! पत्नी पति की तरफ देखेगी, पति पत्नी ज्ञान का और त्याग तक का ममत्व होता है। आदमी कहता है, मैं | की तरफ देखेगा; बाप बेटे की तरफ देखेगा, बेटा बाप की तरफ इतना जानता हूं। जानने पर भी मेरे को हावी कर लेता है। हद हो गई! देखेगा कि अभी तक खड़े नहीं हो रहे! कोई खड़ा नहीं होगा। ममत्व अज्ञान का हो, तो समझ में आ सकता है। ज्ञान का भी ममत्व! कोई खड़ा नहीं हुआ। उस पादरी ने कहा, कोई भी अज्ञानी नहीं
इसलिए उपनिषद कहते हैं कि अज्ञानी तो भटकते ही हैं अंधकार | है? धक्का लगा उसे। क्योंकि वह सोचता था, वह ज्ञानी है। और में, कभी-कभी ज्ञानी महा अंधकार में भटक जाते हैं। अगर किसी जब कोई भी खड़ा नहीं होता, तो सभी ज्ञानी हैं! तभी एक डरा हुआ ने ज्ञान पर कहा कि मेरा, तो वह अज्ञानी से भी लंबी भटकन में पड़ | सा आदमी, बहुत दीन-हीन सा आदमी झिझकता हुआ, चुपचाप जाएगा। क्योंकि अज्ञानी क्षमा किया जा सकता है; ज्ञानी क्षमा नहीं | उठकर खड़ा हो गया। उस पादरी ने कहा, आश्चर्य। चलो, एक
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