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गीता दर्शन भाग-20
ठीक ऐसे ही, जो पुरुष कर देता सब कर्म समर्पित प्रभु को, वह आज इतना ही! फिर कल हम बात करेंगे। भी अस्पर्शित जीवन में यात्रा करता है। और जिसे न पाप छुएं और पांच मिनट बैठे रहेंगे, वैसे ही जैसे कमल का पत्ता पानी में बैठा न पुण्य, उसकी ताजगी, उसका क्वांरापन, उसकी वर्जिनिटी...। रहता है। थोड़ा इस कीर्तन को इस कीर्तन की लहरों को उछल जाने सच पूछे, तो वही क्वांरा है। जिसे छू जाएं पाप और पुण्य, वह | | दें आपके पास। शायद कुछ बूंद पड़ी रह जाएं! बैठे रहें पांच क्वांरा न रहा।
| मिनट। इतनी देर बैठे रहे हैं, पांच मिनट जल्दी न करें। कोई एकाध ईसाइयों की कथा है कि जीसस क्वांरी लड़की से पैदा हुए। ईसाई | | जन बीच में उठता है, दूसरों को तकलीफ होती है। तो पांच मिनट समझाने में बड़ी मुश्किल में पड़ते हैं कि कैसे पैदा हुए होंगे क्वारी भजन का आनंद लें, और फिर चुपचाप चले जाएं। . लड़की से! बड़ी मुश्किल में रहे हैं। ईसाइयों को बड़ी कठिनाई आई है कि कैसे समझाएं कि क्वांरी लड़की से पैदा हुए होंगे।
काश! जीसस को समझाने वालों को पता होता कि कर्मों के बाहर कमल के पत्ते की तरह भी रहा जा सकता है। अगर कर्मों के बाहर रहा जा सकता है, तो संभोग के क्षण में भी संभोग के बाहर रहा जा सकता है। अगर संभोग के क्षण में संभोग के बाहर रहा जा सके; वह व्यक्ति कहीं भी संभोग में सम्मिलित न हो, न पुरुष, न स्त्री; संभोग बाहर घटती घटना हो, परमात्मा को समर्पित; तो निश्चित कहना पड़ेगा कि यह बेटा वर्जिन मां का है; क्वांरी मां का बेटा है।
और मुझे लगता है कि जीसस क्वांरी मां से ही पैदा हुए होंगे। सच तो यह है कि जीसस के संबंध में यह बात दुनिया को पता चल गई। कृष्ण भी क्वांरी मां से पैदा होंगे। महावीर और बुद्ध भी क्वांरी मां से पैदा होंगे। क्योंकि इतना पवित्र पुत्र जिस मां से पैदा हो, उस मां को अगर क्वारापन न हो, तो पैदा हो नहीं सकता।
पर क्वारेपन का बहुत गहरा अर्थ है-अस्पर्शित, कृत्य के बाहर। कर्म परमात्मा को समर्पित है तब। तब कोई भी व्यक्ति इस जीवन से ऐसे गुजर जाता है, जैसे आया ही न हो। ऐसे गुजर जाता है कि जैसे हवा का झोंका आया और निकल गया। जैसा आया, वैसा ही निकल गया।
यह सूत्र, निष्काम कर्मयोगी हो कोई या कोई कर्म-त्याग के संन्यास में जी रहा हो, दोनों के लिए सार्थक है। एक ही बात स्मरण रखने की है, सारे कर्म परमात्मा को समर्पित!
वही है धार्मिक, जो कहता है कि करने वाला परमात्मा है। वही है अधार्मिक, जो कहता है, करने वाला मैं हैं। अगर आपने प्रार्थना करने में भी यह कहा कि मैंने प्रार्थना की है, तो आप अधार्मिक हो गए। आपने पूजा करके भी यह कहा कि मैंने पूजा की है, तो आप अधार्मिक हो गए! जहां कृत्य का भाव स्वयं से जुड़ा, अधर्म आ गया। और जहां कृत्य परमात्मा पर छोड़ दिया, वहीं धर्म है।
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