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________________ गीता दर्शन भाग-20 ध्यान करता, प्रार्थना करता, पूजा करता, प्रभु को स्मरण करता, | मुश्किल हो गया! वह कभी कुछ ज्यादा दाम किसी को बताने अपने भीतर जीता रहता: शराब बेचता रहता। लेकिन तब समाज | लगता किसी चीज का, और वह कहता, ओम! तीर्थयात्रा पर को उससे फायदा न हो पाता। उसकी घोषणा उसका कमिटमेंट है।। चलना है। वह तो घबड़ा जाता। और एक बड़े मजे की बात है कि जब तक हम विचार को भीतर । सालभर वह चोरी न कर पाया। सालभर वह बेईमानी न कर रखते हैं, तब तक विचार सदा आकाश में होता है। जब हम उसे। | पाया। जब वे तीर्थयात्रा पर चलने लगे, तो उस संन्यासी से उसने बाहर प्रकट कर देते हैं, तो उसकी जमीन में जड़ें चली जाती हैं। कहा कि लेकिन तीर्थ तो पूरा हो गया! मैं पवित्र हो गया। स्नान हो अगर आपने संन्यास का खयाल भीतर रखा, तो वह हमेशा हवाई | | गया। पर तूने भी खूब किया! तीर्थयात्रा के बहाने सालभर एक होगा। उसकी जड़ें नहीं होंगी। आपने घोषणा कर दी; उसकी जड़ें | | स्मृति का तीर-तीर्थयात्रा पर चलना है! और जब तीर्थयात्रा पर जमीन में गड़ जाएंगी। और हर चीज रोकने लगेगी-हर चीज! | जाना है, तो चोरी तो मत करो। चोरी करोगे, तो जाना बेकार है। __एक आदमी बाजार सामान खरीदने जाता है, गांठ लगा लेता है | जाकर भी क्या करोगे! कपड़े में। अब गांठ से कहीं सामान लाने का कोई भी संबंध है! बाहर की घोषणा आपके ऊपर एक रिमेंबरिंग की गांठ बन जाती लेकिन वह गांठ उसे दिनभर याद दिलाती रहती है कि गांठ लगी है, एक चुभता हुआ तीर बन जाती है, जो छिदता रहता है। और है, सामान ले जाना है। वह जब भी दिन में गांठ दिखाई पड़ती है, | | जिंदगी बड़ी छोटी-छोटी चीजों से निर्मित है। इसलिए संन्यासी में खयाल आता है, सामान ले जाना है। | और गृहस्थ में, जहां तक निष्काम कर्मयोग का संबंध है, भीतर से मैंने सुना है कि एक संन्यासी को एक बार एक दुकानदार ने | | कोई भेद नहीं, बाहर से भेद है। नौकरी पर रख लिया। संन्यासी से उसने कहा भी कि दुकान है, | | गृहस्थ निष्कामकर्मी, अघोषित संन्यासी है; निष्कामकर्मी नौकरी पर रहोगे, कहीं ऐसा न हो कि बिगड़ जाओ। संन्यासी ने | | संन्यासी, घोषित संन्यासी है। उसने जगत के सामने घोषणा कर दी कहा, बिगड़ने का डर होता, तो नौकरी स्वीकार न करते। इतने सस्ते | | है। और बहुत आश्चर्य की बात है कि बहुत बार घोषणा करते ही में संन्यास न खोते। रहेंगे। लेकिन ध्यान रखना, मेरे साथ आप भी | | हम मजबूत हो जाते हैं। सच तो यह है कि घोषणा करते ही इसलिए बिगड़ सकते हो। वह सेठ हंसा; अपनी पूरी चालाकी में हंसा।। नहीं, कि भीतर डर लगता है, कि कमजोर हैं। करें, न करें? घोषणा उसने कहा, फिक्र छोड़ो। हम काफी होशियार हैं। करने के लिए जो बल जुटाना पड़ता है भीतर, वही घोषणा के साथ इस दुनिया में होशियार आदमी से ज्यादा नासमझ आदमी | | प्रकट होते से और गहरे बल में ले जाता है। और एक बार एक बात खोजने मुश्किल हैं। बहुत होशियार! की घोषणा हो जाए, तो हमारा एक कमिटमेंट, हमारा विचार कृत्य संन्यासी दुकान पर बैठने लगा। दिन में पच्चीस दफे उस | बन गया। और इस जगत में विचार में धोखा देना आसान, कृत्य में व्यवसायी को उसके गेरुए वस्त्र दिखाई पड़ते। पच्चीस बार उसके | | धोखा देना थोड़ा कठिन है। बस, इतना ही फर्क है। मन में होता, यह आनंद! पता नहीं क्या! क्या इसे मिला है, पता | अभी पांच मिनट आप रुकेंगे। पांच मिनट ये जो हमारे निष्काम नहीं! जब भी नजर जाती, उसे वह खयाल आता। सालभर बीत संन्यासी हैं, ये कीर्तन करेंगे। पांच मिनट आप बैठे रहेंगे और कीर्तन गया, तो संन्यासी ने कहा कि अब अगले वर्ष मेरा इरादा तीर्थयात्रा | | के बाद हम विदा होंगे। शेष कल आपसे बात करेंगे। पांच मिनट पर जाने का है। आप भी चलें! लालच उसे भी लगा, कि चलो हर्ज बैठे रहें। उनके कीर्तन में आप भी आनंद लें और ताली बजाएं। नहीं है, हो आऊं। पर उस व्यवसायी ने कहा कि तैयारी क्या करनी होगी? उसने कहा, कोई ज्यादा तैयारी नहीं करनी होगी। जो तैयारी करनी है, मैं करवाता रहूंगा। सालभर में वह संन्यासी परिचित हो गया था सेठ की चालबाजियों से, दुकानदारी की बेईमानियों से, धोखाधड़ियों से। जब भी सेठ कुछ कम चीज तौलने लगता, तब वह संन्यासी कहता, राम। तीर्थयात्रा पर चलना है। वह सेठ घबड़ा जाता। यह बड़ा 282
SR No.002405
Book TitleGita Darshan Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year1996
Total Pages464
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
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