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गीता दर्शन भाग-28
कि कृष्ण भी समर्थन करेंगे। लेकिन कृष्ण ने उनका समर्थन नहीं मुझे कुछ सोचना-समझना नहीं है। मुझे तो आप बता दें। आप किया। और अब अर्जुन इस स्थिति में नहीं है कि कह सके कि मैं जानते हैं, तो मुझे बता दें। मैं उसे करने में लग जाऊं। जानता हूं। इतना उसे साफ हुआ है कि मैं उलझा हुआ हूं। मुझे कुछ देखने में लगेगा कि बड़ी श्रद्धा की बात है। लेकिन जिस व्यक्ति पता नहीं है।
| को स्वयं श्रम करने की जरा भी श्रद्धा नहीं है, उसकी श्रद्धा बड़ी यह बहुत बड़ी घटना है। ज्ञान के मार्ग पर पहला चरण है। ज्ञान | | धोखे की है और झूठी है। जो इंचभर भी अंधेरे में, अनजान में, के मार्ग पर अज्ञान की दृढ़ता पिघल जाए, तो बहुत बड़ी उपलब्धि | असुरक्षा में खोजने के लिए तैयार नहीं है; जो अज्ञात में नाव लेकर है। अज्ञान की मजबूती ढीली पड़ जाए, अज्ञान का आश्वासन डिग | यात्रा पर निकलने के लिए साहस नहीं जुटा पाता; जो सदा दूसरे जाए-बड़ी उपलब्धि है।
| का सहारा खोजकर आंख बंद कर लेने के लिए आतुर है-ऐसे अर्जुन इस जगह कृष्ण के द्वारा लाया जा सका है, जहां वह आदमी की यात्रा सत्य की तरफ कभी भी नहीं हो सकती है। कहता है, मुझे कुछ पता नहीं है। यह बात कीमत की है। लेकिन | | निश्चित ही ऐसे व्यक्ति को भी गुरु मिल जाएंगे, क्योंकि ऐसे तत्काल वह कहता है कि जो आपको पता हो, वह सीधा आप मुझे व्यक्तियों का शोषण करने की बड़ी सुविधा है। उनका शोषण चल कह दें।
रहा है। इतना तो अच्छा हुआ कि वह कहता है, मुझे कुछ पता नहीं है। जो भी मांग की जाएगी, उसको सप्लाई करने वाले लोग सदा लेकिन अब यह दूसरा खतरा उसके साथ जुड़ा है। अभी वह दूसरे ही उपलब्ध हो जाते हैं। अगर आप मांगेंगे अंधापन, तो आपकी से तैयार ज्ञान को पाने की आकांक्षा रखता है। वह भी उसकी भ्रांति आंखें फोड़ने वाले लोग भी मिल जाएंगे। आप मांगेंगे बहरापन, तो है। कोई छोटा-मोटा गुरु होता कृष्ण की जगह, तो बहुत प्रसन्न होता आप पर कृपा करके आपको बहरा कर देने वाले लोग भी मिल
और कहता कि यह जो मैं जानता हूं, तुझे दिए देता हूं। तेरा काम है। | जाएंगे। आप चाहेंगे कि मैं तो किसी का हाथ पकड़कर चलूं और कुल इतना कि मान ले चुपचाप और आचरण कर। अपना कोई भी श्रम न लगाना पड़े, तो ऐसे लोग भी आपको मिल
लेकिन कृष्ण उन मनोवैज्ञानिक गुरुओं में से एक हैं, जो जब तक जाएंगे, जो कहेंगे, यह रहा हाथ; पकड़ो और चलो! कि पात्र पूरा तैयार न हो, जब तक कि क्षमता अर्जुन की इस योग्य लेकिन ध्यान रखना, जो भी ऐसा व्यक्ति आपको मिल जाएगा, न हो कि वह सत्य को समझने और सत्य को प्रतिध्वनित करने की | वह व्यक्ति आपके ऊपर करुणा नहीं कर रहा है। क्योंकि करुणा स्थिति में आ जाए, तब तक वे अभी और कुछ बातें करेंगे, और | सदा ही आपके पैर को सबल बनाती है, आपकी आंखों को मजबूत भी मार्गों की।
करती है, आपके बल को जगाती है। वह व्यक्ति आपका शोषण अर्जुन के नीचे से उसके सारे आश्वासन की भूमि हट जानी | कर रहा है। और शोषण केवल वही कर सकता है, जो नहीं जानता चाहिए। और अर्जुन के मन से यह खयाल भी हट जाना चाहिए कि | है। इसलिए अंधे अक्सर अंधों को नेतृत्व करने के लिए मिल जाते कोई दूसरा दे सकेगा। इतनी तैयारी होनी चाहिए कि मैं खोजू, श्रम | | हैं। सच तो यह है कि अंधों के बड़े समाज में आंख वाले आदमी करूं; सत्य को मुफ्त में पाने की आकांक्षा न करूं।
को नेतृत्व करना अति कठिन है। अंधों का समाज, सजातीय अंधे इसलिए कृष्ण ने वे सब मार्ग, जिनसे मनुष्य सरलता को, सत्य को ही अपने आगे कर लेने को सदा उत्सुक रहता है। को, सुलझाव को उपलब्ध हुआ है, उन सबको धीरे-धीरे खोलकर | कृष्ण वैसे गुरु नहीं हैं। वे अर्जुन को कुछ भी देने के लिए राजी अर्जुन के सामने रखने का तय किया है। पर उसके मन की बात नहीं हैं, जिसको पाने की क्षमता स्वयं अर्जुन में न हो। और अर्जुन ठीक से आप समझ लेना, वह हम सबके मन की बात है। | में अगर उसे पा लेने की क्षमता हो, तो कृष्ण उसे देने को तैयार हो
हम भी चाहेंगे कि इतनी लंबी चर्चा की क्या जरूरत है? कृष्ण सकते हैं। फिर कोई फर्क नहीं पड़ता। अगर एक व्यक्ति पाने के भलीभांति जानते हैं कि सत्य क्या है। अर्जुन की स्थिति भी | | लिए तैयार है श्रम करने को, तो उसे सत्य की किरण दी भी जा भलीभांति जानते हैं। अर्जुन के लिए क्या हितकर है, यह भी सकती है। भलीभांति जानते हैं। तो दे ही क्यों नहीं देते!
यह बहुत मजे की और विरोधाभासी बात मालूम पड़ेगी। जिनकी कल ही मेरे पास कोई एक व्यक्ति आए और उन्होंने कहा कि क्षमता नहीं है, उन्हें दिया नहीं जा सकेगा; यद्यपि जिनकी क्षमता