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________________ गीता दर्शन भाग-20 अस्तित्व को व्यक्तित्व दे दिया था। फिर सूरज का भी व्यक्तित्व | कहती हैं। गाता है। नाचता है। बोलता क्यों नहीं है? बेईमान है। था। तो हमने कहा, सूर्य देवता है; रथ पर सवार है; घोड़ों पर जुता जासूस है! उन्होंने भाला उसकी छाती में भोंक दिया। हआ है. दौडता है आकाश में। सबह होता. जागता: सांझ होता. उस संन्यासी ने संकल्प लिया हआ था कि एक ही शब्द अस्त होता। ये बातें वैज्ञानिक नहीं हैं; ये बातें धार्मिक हैं। ये बातें। | बोलूंगा-आखिर, अंतिम, मृत्यु के द्वार पर। इस जगत से पार पदार्थगत नहीं हैं; ये बातें आत्मगत हैं। | होते हुए धन्यवाद का एक शब्द इस पार बोलकर विदा हो जाऊंगा। नदियों को नमस्कार किया; व्यक्तित्व दे दिया। वृक्षों को कठिन पड़ा होगा उसको कि क्या शब्द बोले! मुश्किल पड़ा नमस्कार किया; व्यक्तित्व दे दिया। सारे जगत को व्यक्तित्व दे होगा! एक ही वाक्य बोलना है-अंतिम! दिया। कहा कि तुममें भी व्यक्तित्व है। आज भी आप कभी किसी छाती में घुस गया भाला। खून के फव्वारे बरसने लगे। वह जो पीपल के पास नमस्कार करके गुजर जाते हैं। लेकिन आपने खयाल | नाचता था हृदय, मरने के करीब पहुंच गया। उस संन्यासी ने कहा, नहीं किया होगा कि जो आदमी, आदमियों को वस्तु जैसा व्यवहार तत्वमसि श्वेतकेतु! उपनिषद का महावाक्य। उसने कहा, श्वेतकेतु, करता है, उसका पीपल को नमस्कार करना एकदम सरासर झूठ है। | तू भी वही है। दैट आर्ट दाऊ। तू भी वही है। पीपल को तो वही नमस्कार कर सकता है, जो जानता है कि पीपल नहीं समझे होंगे वे अंग्रेज सिपाही। लेकिन उसने उस सिपाही से भी व्यक्ति है, वह भी परमात्मा का हिस्सा है; उसके पत्ते-पत्ते में | | कहा, तू भी वही है-तत्वमसि! उस अंग्रेज सिपाही से, जिसने भी उसी की छाप है। कंकड़-कंकड़ में भी उसी की पहचान है। | उसकी छाती में भोंका भाला, उससे उसने कहा, तू भी वही है। जगह-जगह वही है अनेक-अनेक रूपों में। चेहरे होंगे भिन्न; वह | इस खिड़की में से भी वह उसी को देख पाया। इस भाला भोंकती जो भीतर छिपा है, भिन्न नहीं है। आंखें होंगी अनेक, लेकिन जो | | हुई खिड़की में से भी उसी का दर्शन हुआ। भगवत्प्रेम को उपलब्ध झांकता है उनसे, वह एक है। हाथ होंगे अनंत, लेकिन जो स्पर्श | हुआ होगा, तभी ऐसा हो सकता है, अन्यथा नहीं हो सकता है। करता है उनसे, वह वही है। भगवत्प्रेम का अर्थ है, सारा जगत व्यक्ति है। व्यक्तित्व है जगत गदर के समय, म्यूटिनी के समय, अठारह सौ सत्तावन में, एक | | के पास अपना, उससे बात की जा सकती है। इसलिए भक्त बोल मौन संन्यासी, जो पंद्रह वर्ष से मौन था। नग्न संन्यासी। रात गुजर लेता है उससे। रहा था। चांदनी रात थी। चांद था आकाश में। वह नाच रहा था। __ मीरा पागल मालूम पड़ती है दूसरों को, क्योंकि वह बातें कर रही धन्यवाद दे रहा था चांद को। उसे पता नहीं था कि उसकी मौत | है कृष्ण से। हमें पागल मालूम पड़ेगी, क्योंकि हमारे लिए तो करीब है। वस्तुओं के अतिरिक्त जगत में कुछ भी नहीं है। व्यक्ति भी नहीं हैं, नाचते हुए नग्न वह निकला नदी की तरफ। बीच में अंग्रेज फौज तो परम व्यक्ति तो होगा कैसे? लेकिन मीरा बातें कर रही है उससे! का पड़ाव था। फौजियों ने समझा कि यह कोई जासूस मालूम पड़ता सूरदास उसका हाथ पकड़कर चल रहे हैं! आदान-प्रदान हो रहा है। तरकीब निकाली है इसने कि नग्न होकर गीत गाता हुआ फौजी है। डायलाग है। चर्चा होती है। प्रश्न-उत्तर हो जाते हैं। पूछा जाता पड़ाव में से गजर रहा है। उन्होंने उसे पकड़ लिया। और जब उससे है, प्रतिसंवाद हो जाता है। व्यक्ति! पूछताछ की और वह नहीं बोला, तब शक और भी पक्का हो गया | ___ जब जीसस सूली पर लटके और उन्होंने ऊपर आंख उठाकर कि वह जासूस है। बोलता क्यों नहीं? हंसता है, मुस्कुराता है, | कहा कि हे प्रभु, माफ कर देना इन सबको, क्योंकि इन्हें पता नहीं नाचता है, बोलता क्यों नहीं? | कि ये क्या कर रहे हैं; तब यह आकाश से नहीं कहा होगा। आकाश मैंने कहा, गीत गाता हुआ, वाणी से नहीं। ऐसे भी गीत हैं, जो | | से कोई बोलता है? यह आकाश में उड़ते पक्षियों से नहीं कहा प्राणों से गाए जाते हैं। ऐसे भी गीत हैं, जो शून्य में उठते और शून्य | होगा। पक्षियों से कोई बोलता है? भीड़ खड़ी थी नीचे, उसने भी में ही खो जाते हैं। वह तो मौन था, शब्द से तो चुप था। पर गीत आकाश की तरफ देखा होगा; लेकिन आकाश में चलती हुई सफेद गाता हुआ, नाचता हुआ, अपने समग्र अस्तित्व से पूर्णिमा के चांद | | बदलियों के अलावा कुछ भी दिखाई नहीं पड़ा होगा। नीला को धन्यवाद देता हुआ! | आकाश-खाली और शून्य। हंसे होंगे मन में कि पागल है। सिपाहियों ने कहा कि बोलता क्यों नहीं है? मुस्कुराता है। आंखें लेकिन जीसस के लिए सारा जगत प्रभु है। कह दिया, क्षमा कर 1262
SR No.002405
Book TitleGita Darshan Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year1996
Total Pages464
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
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