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गीता दर्शन भाग-26
श्रीमद्भगवद्गीता
| मेटाफर का, इस प्रतीक का क्या अर्थ हो सकता है? अथ चतुर्थोऽध्यायः
जो भी अध्यात्म की गहराइयों में उतरे हैं, उन सबका एक
सुनिश्चित अनुभव है और वह यह कि अध्यात्म की आखिरी गहराई श्री भगवानुवाच
में प्रकाश ही शेष रह जाता है और सब खो जाता है। जब व्यक्ति इमं विवस्वते योगं प्रोक्तवानहमव्ययम् । अध्यात्म में शून्य होता है, अहंकार विलीन होता है, तो प्रकाश ही विवस्वान्मनवे प्राह मनुरिक्ष्वाकवेऽब्रवीत् ।। १।। रह जाता है, और सब खो जाता है। व्यक्ति जब अध्यात्म की गहराई श्रीकृष्ण भगवान बोले, हे अर्जुन, मैंने इस अविनाशी योग । में उतरता है, तो वह वहीं पहुंच जाता है, जब समय के पहले सब को कल्प के आदि में सूर्य के प्रति कहा था और सूर्य ने कुछ था। गहरे अनुभव, प्रथम और अंतिम, समान होते हैं। अपने पुत्र मनु के प्रति कहा और मनु ने अपने पुत्र राजा __यही मैंने सूर्य को कहा था, कृष्ण जब यह कहते हैं, तो वे यह इक्ष्वाकु के प्रति कहा।
कहते हैं, यही मैंने प्रकाश की पहली घटना को कहा था।
इस जगत के प्रारंभ की पहली घटना प्रकाश है और इस जगत के
अंत की अंतिम घटना भी प्रकाश है। व्यक्ति के आध्यात्मिक जन्म सत्य न तो नया है, न पुराना। जो नया है, वह पुराना हो का भी प्रारंभ प्रकाश है और आध्यात्मिक समारोप भी प्रकाश है। रा जाता है। जो पुराना है, वह कभी नया था। जो नए से कुरान कहता है, परमात्मा प्रकाश-स्वरूप है। बाइबिल कहती
पुराना होता है, वह जन्म से मृत्यु की ओर जाता है। है, परमात्मा प्रकाश ही है। कृष्ण यहां प्रकाश को सूर्य कहते हैं। सत्य का न कोई जन्म है, न कोई मृत्यु है। इसलिए सत्य न नया हो सूर्य को कहा था सबसे पहले, क्योंकि सबसे पहले प्रकाश था; सकता है, न पुराना हो सकता है। सत्य सनातन है।
और फिर जो भी जन्मा है, वह प्रकाश से ही जन्मा है। फिर प्रकाश सनातन का अर्थ, सत्य समय के बाहर है, बियांड टाइम है। के पुत्र को कहा था, फिर उसके पुत्र को कहा था। वस्तुतः समय के भीतर जो भी है, वह नया भी होगा और पुराना भी | इसमें यह भी समझ लेने जैसा है कि कृष्ण कहते हैं, मैंने। होगा। समय के भीतर जो है, वह पैदा भी होगा और मरेगा भी; | निश्चित ही, यह मैं, वह जो कृष्ण की देह थी अर्जुन के सामने जवान भी होगा और बूढ़ा भी होगा। कभी स्वस्थ भी होगा और | खड़ी, उसके संबंध में नहीं हो सकता। वह देह तो अभी कुछ वर्ष
स्वस्थ भी होगा। समय के भीतर जो है, वह परिवर्तनमय पहले पैदा हुई थी और कुछ वर्ष बाद विदा हो जाएगी। कृष्ण जिस होगा; समय के बाहर जो है, वही अपरिवर्तित हो सकता है। मैं की बात कर रहे हैं, वह कोई और ही मैं होना चाहिए। __ कृष्ण ने इस सूत्र में बहुत थोड़ी-सी बात में बहुत-सी बात कही | । जीसस ने अपने एक वक्तव्य में कहा है किसी ने जीसस को है। एक तो उन्होंने यह कहा कि यह जो मैं तुझसे कहता हूं अर्जुन, | पूछा, अब्राहम के संबंध में आपका क्या खयाल है? अब्राहम एक वही मैंने सूर्य से भी कहा था, समय के प्रारंभ में, आदि में। इसमें | पुराना पैगंबर हुआ यहूदियों का। पूछा जीसस से किसी ने, अब्राहम दो-तीन बातें समझ लेनी जरूरी हैं।
के संबंध में आपका क्या खयाल है? तो जीसस ने कहा, बिफोर समय के प्रारंभ का क्या अर्थ हो सकता है? सच तो यह है कि अब्राहम वाज़, आई वाज़। इसके पहले कि अब्राहम था, मैं था। जहां भी प्रारंभ होगा, वहां समय पहले से ही मौजूद हो जाएगा। अब्राहम के पहले भी मैं था। सब प्रारंभ समय के भीतर होते हैं, समय के बाहर कोई प्रारंभ नहीं | निश्चित ही, यह मरियम के बेटे जीसस के संबंध में कही गई बात हो सकता, क्योंकि सब अंत समय के भीतर होते हैं। कृष्ण जब नहीं है। अब्राहम के पहले! अब्राहम को हुए तो हजारों साल हुए! कहते हैं, समय के प्रारंभ में, तो उसका अर्थ ही यही होता है, समय कृष्ण सूर्य की-जगत की पहली घटना की-फिर मनु की, के बाहर। समय के भीतर अगर कोई प्रारंभ होगा, तो वह शाश्वत | । इक्ष्वाकु की, इनकी बात कर रहे हैं। उन्हें हुए हजारों वर्ष हुए। कृष्ण सत्य की घोषणा नहीं कर सकता है।
तो अभी हुए हैं। अभी अर्जुन के सामने खड़े हैं। जिस कृष्ण की यह ___ जब समय नहीं था, तब मैंने सूर्य को भी यही कहा है। इस बात बात है, वह किसी और कृष्ण की बात है। को भी थोड़ा समझ लेना जरूरी है कि सूर्य को भी यही कहा है, इस एक घड़ी है जीवन की ऐसी, जब व्यक्ति अपने अहंकार को