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गीता दर्शन भाग-28
में न आए, तो लगता है कि अपनी कोशिश में कुछ कमी रह गई। | तत्काल पाएंगे कि आनंद की एक झलक आ गई। सिर्फ नमस्कार
और दौड़ो। स्वर्णमृग को तीर मारो; गिर जाए, न लगे, तो लगता | | भी-कोई बड़ा कृत्य नहीं, कोई बड़ी डीड नहीं, कुछ नहीं सिर्फ है और विषधर तीर बनाओ। लेकिन यह खयाल में नहीं आता कि | हाथ जोड़े निष्काम, और भीतर पाएंगे कि एक लहर शांति की दौड़ स्वर्ण का मृग होता ही नहीं है।
| गई। एक अनुग्रह, एक ईश्वर की कृपा भीतर दौड़ गई। ___ कामना के फूल आकाश-कुसुम हैं; होते नहीं हैं; आकाश के | और अगर अनुभव आने लगे, तो फिर बड़े काम में भी निष्काम फूल हैं। जैसे धरती पर तारे नहीं होते, वैसे आकाश में फूल नहीं होते | | होने की भावना जगने लगेगी। जब इतने छोटे काम में इतनी आनंद हैं। कामना के कुसुम या तो धरती के तारे हैं या आकाश के फूल। | की पुलक पैदा होती है, तो जितना बड़ा काम होगा, उतनी बड़ी __ सकाम हमारी दौड़ है। बार-बार थककर, गिर-गिरकर भी, | आनंद की पुलक पैदा होगी। फिर तो धीरे-धीरे पूरा जीवन निष्काम बार-बार कांटे से उलझकर भी फूल की आकांक्षा नहीं जाती है। दुख होता चला जाता है। हाथ लगता है। लेकिन कभी हम दूसरा प्रयोग करने का नहीं सोचते। | इन सब यज्ञों को करते हुए जो व्यक्ति निष्काम भाव में जीता
कृष्ण कहते हैं, निष्काम भाव से...।
बड़ा मजा है। निष्काम भाव से कांटा भी पकड़ा जाए, तो पकड़ने जीवन ही यज्ञ है। अगर कोई निष्काम भाव में जी सके, तो वह पर पता चलता है कि फूल हो गया! ऐसा ही पैराडाक्स है। ऐसा | | मुक्त हो जाता है। मुक्त–समस्त बंधनों से, दुखों से, पीड़ाओं से, जिंदगी का नियम है। ऐसा होता है।
संतापों से, चिंताओं से। ___ आपने एक अनुभव तो करके देख लिया। फूल को पकड़ा और । अभी हम यहां कीर्तन के लिए अंत में इकट्ठे होंगे, निष्काम कम कांटा हाथ में आया, यह आप देख चुके। और अगर ऐसा हो | से कम कीर्तन ही कर लें। निष्काम, कोई कामना नहीं। निष्काम दस सकता है कि फूल पकड़ें और कांटा हाथ में आए, तो उलटा क्यों | | मिनट डूब जाएं उस परमात्मा के लिए प्रार्थना में। कुछ पाना नहीं है नहीं हो सकता है कि कांटा पकड़ें और फूल हाथ में आ जाए? क्यों | उसके बाहर; मिलेगा बहुत। जो पाने आया है, पाएगा कुछ भी नहीं हो सकता? अगर यह हो सकता है, तो इससे उलटा होने में | | नहीं। जिसकी कामना है कि कुछ मिल जाए दस मिनट के भजन कौन-सी कठिनाई है!
से, उसे कुछ न मिलेगा। जिसकी कोई कामना नहीं है, वह दस हां, जो जानते हैं, वे तो कहते हैं, होता है।
मिनट में ऐसा पाएगा, फुलफिल्ड हुआ! भीतर भर गया कोई तो एक प्रयोग करके देखें। चौबीस घंटे में एकाध काम निष्काम संगीत! डूब गया कोई आनंद! खिल गए कोई फूल! करके देखें। पूरा तो करना मुश्किल है, एकाध काम। चौबीस घंटे ___ दस मिनट संन्यासियों के साथ सम्मिलित हों। अपनी जगह पर में एक काम सिर्फ, निष्काम करके देखें। छोटा-सा ही काम; ऐसा | भी रहें, तो ताली बजाएं, उनके स्वर में स्वर मिलाएं। अपनी जगह कि जिसका कोई बहुत अर्थ नहीं होता। रास्ते पर किसी को | पर भी, मौज आ जाए, तो नाचें। यहां न आएं; जरूरी नहीं है। और बिलकुल निष्काम नमस्कार करके देखें। इसमें तो कुछ खर्च नहीं | बैठे रहें जिनको बैठना है, वे बैठकर ताली बजाएं, बैठकर स्वर होता! लेकिन लोग निष्काम नमस्कार तक नहीं कर सकते हैं! | दोहराएं। सम्मिलित हों! क्योंकि कुछ आनंद हैं, जो सम्मिलित होने
नमस्कार तक में कामना होती है। मिनिस्टर है. तो नमस्कार हो | से ही मिलते हैं। जाती है! पता नहीं, कब काम पड़ जाए। मिनिस्टर नहीं रहा अब, एक्स हो गया, तो कोई उसकी तरफ देखता ही नहीं। वही नमस्कार करता है। वह इसलिए नमस्कार करता है कि अब फिर कभी न कभी काम पड़ सकता है।
कामना के बिना नमस्कार तक नहीं रही। कम से कम नमस्कार तो बिना कामना के करके देखें। और हैरान हो जाएंगे। अगर साधारण से जन को भी, राहगीर को भी, अपरिचित को भी, भिखारी को भी हाथ जोड़कर नमस्कार कर ली, बिना कामना के, तो भीतर
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