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________________ गीता दर्शन भाग-20 यज्ञशिष्टामृतभुजो यान्ति ब्रह्म सनातनम् । ___ इस जगत में अज्ञान के अतिरिक्त और कोई मृत्यु नहीं है। अज्ञान नायं लोकोऽस्त्ययजस्य कतोऽन्यः करुसत्तम ।। ३।। । ही मृत्यू है; इग्नोरेंस इज़ डेथ। क्या अर्थ हआ इसका कि अज्ञान ही हे कुरुश्रेष्ठ अर्जुन, यज्ञों के परिणामरूप ज्ञानामृत को भोगने मृत्यु है ? वाले योगीजन सनातन परब्रह्म परमात्मा को प्राप्त होते हैं अगर अज्ञान मृत्यु है, तो ही ज्ञान अमृत हो सकता है। अज्ञान और यज्ञरहित पुरुष को यह मनुष्य लोक भी सुखदायक | मृत्यु है, इसका अर्थ हुआ कि मृत्यु कहीं है ही नहीं। हम नहीं जानते नहीं है, तो फिर परलोक कैसे सुखदायक होगा? | हैं, इसलिए मृत्यु मालूम पड़ती है। मृत्यु असंभव है। मृत्यु इस पृथ्वी पर सर्वाधिक असंभव घटना है, जो हो ही नहीं सकती, जो कभी हुई नहीं, जो कभी होगी नहीं। लेकिन रोज मृत्यु मालूम पड़ती है। त वन जिनका यज्ञरूप है, वासनारहित, अहंकारशून्य, यह मृत्यु हमें मालूम पड़ती है, क्योंकि हम जानते नहीं हैं। हम अंधेरे UII ऐसे पुरुष परात्पर ब्रह्म को उपलब्ध होते हैं, अमृत को में खड़े हैं, अज्ञान में खड़े हैं। जो नहीं मरता, वह मरता हुआ दिखाई उपलब्ध होते हैं, आनंद को उपलब्ध होते हैं। लेकिन पड़ता है। इस अर्थ में अज्ञान ही मृत्यु है। और जिस दिन हम जान जिनका जीवन यज्ञ नहीं है, ऐसे पुरुष तो इस पृथ्वी पर ही आनंद लेते हैं, उस दिन मृत्यु तिरोहित हो जाती है। कहीं थी ही नहीं कभी। को उपलब्ध नहीं होते, परलोक की बात तो करनी व्यर्थ है। इस सूत्र | अमृत ही, अमृतत्व ही शेष रह जाता है, इम्मारटेलिटी ही शेष रह में कृष्ण ने दो-तीन बातें अर्जुन से कहीं। जाती है। एक, जिनका जीवन यज्ञ बन जाता! कभी आपने खयाल किया, आपने किसी आदमी को मरते जीवन के यज्ञ बन जाने का अर्थ क्या है? जब तक जीवन | देखा? आप कहेंगे, बहुत लोगों को देखा। पर मैं कहता हूं, नहीं वासनाओं के आस-पास घूमता, तब तक यज्ञ नहीं होता है। जब | देखा। आज तक किसी व्यक्ति ने किसी को मरते नहीं देखा। मरने तक जीवन स्वयं के अहंकार के ही आस-पास घूमता, तब तक | | की प्रक्रिया आज तक देखी नहीं गई। जो हम देखते हैं, वह केवल जीवन यज्ञ नहीं होता। जैसे ही व्यक्ति वासनाओं को क्षीण करता जीवन के विदा हो जाने की प्रक्रिया है. मरने की नहीं। और स्वयं के आस-पास नहीं, परमात्मा के आस-पास परिभ्रमण बटन दबाई हमने, बिजली का बल्ब बुझ गया। जो नहीं जानता, करने लगता है...। वह कहेगा, बिजली मर गई। जो जानता है, वह कहेगा, बिजली मंदिर को हम जानते हैं। मंदिर की वेदी के चारों तरफ बनी हुई | | अभिव्यक्त थी, अब अप्रकट हो गई। प्रकट थी, अप्रकट हो गई। परिक्रमा को भी हम जानते हैं। लेकिन उसके अर्थ को हम नहीं मर नहीं गई। फिर बटन दबेगा, बिजली फिर वापस लौट आएगी। जानते। हजारों बार मंदिर में गए होंगे और वेदी के आस-पास फिर बटन दबाएंगे, बिजली फिर भीतर तिरोहित हो जाएगी। परिक्रमा लगाकर घर लौट आए होंगे। लेकिन मंदिर में परमात्मा की - जीवन समाप्त नहीं होता, केवल शरीर से विदा होता है। लेकिन वेदी के आस-पास जो परिक्रमा है, वह प्रतीक है उस पुरुष का, | विदाई हमें मृत्यु मालूम पड़ती है। क्यों मालूम पड़ती है? क्योंकि जिसका अपना अहंकार नहीं रहा, जो अब परमात्मा के आस-पास | हमने कभी अपने भीतर शरीर से अलग किसी अस्तित्व का अनुभव ही जीवन में परिभ्रमण करता है, जो उसके चारों ओर ही घूमता है। | नहीं किया है। हमारा अनुभव यही है कि मैं शरीर हूं, इसलिए जब अपना कोई केंद्र ही नहीं रहा, जिस पर घूम सके। परमात्मा का | शरीर समाप्त होगा, जलाने के योग्य हो जाएगा, तब स्वभावतः उपग्रह बन जाता है। वही हो जाता केंद्र में, हम हो जाते परिधि पर; | निष्कर्ष होगा कि मर गए। उसके आस-पास ही घूमते हैं, परिभ्रमण करते हैं। शरीर से अलग जिसने अपने भीतर किसी तत्व को नहीं जाना, जैसे ही कोई व्यक्ति वासना और अहंकार से शून्य होता, उसका वह अज्ञानी है। अज्ञानी का मतलब यह नहीं कि जिसे यूनिवर्सिटी जीवन यज्ञ हो जाता है। इस यज्ञ के संबंध में काफी बातें मैंने पीछे | | की डिग्री नहीं है, विश्वविद्यालय का कोई सर्टिफिकेट नहीं है। सच कहीं हैं, वह खयाल में ले लेनी जरूरी हैं। तो यह है कि विश्वविद्यालय ने जितने सर्टिफिकेट दिए, अज्ञान दूसरी बात, कृष्ण कहते हैं, ऐसा पुरुष ज्ञानरूपी अमृत को | | उतना बढ़ा है, कम नहीं हुआ। कारण है। कारण यह है कि उपलब्ध होता है। ज्ञानरूपी अमृत को! विश्वविद्यालय के सर्टिफिकेट को लोग ज्ञान समझने लगे। इसलिए 188
SR No.002405
Book TitleGita Darshan Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year1996
Total Pages464
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
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