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गीता दर्शन भाग-29
प्रश्नः भगवान श्री, अट्ठाइसवें श्लोक में | जा सके। जिसका आचरण ऐसा है कि उससे हमें कोई क्लू, कोई स्वाध्यायज्ञानयज्ञाश्च का अनुवाद दिया है, भगवान के | कुंजी, कोई चाबी नहीं मिलती कि हम उसके अंतस के ताले को नाम का जप तथा भगवतप्राप्ति विषयक शास्त्रों का खोल लें। शायद शुद्ध आदिम आदमी, प्रिमिटिव, उसके आचरण अध्ययन रूप ज्ञान-यज्ञ के करने वाले। कृपया को देखकर हमें उसके अंतस का थोड़ा अंदाज भी लग जाए: स्वाध्याय-यज्ञ को समझाएं।
| लेकिन जितना सुसभ्य, सुशिक्षित आदमी, उतना ही उसके व्यवहार को देखकर उसके स्वयं का कोई पता नहीं चलता।
व्यवहार प्रकट नहीं करता, छिपाता है। आचरण अंतस की माध्याय-यज्ञ गहरे से गहरे आत्म-रूपांतरण की एक अभिव्यक्ति नहीं, अंतस का छिपाव बन गया है। हम जो बोलते सपा प्रक्रिया है। और कृष्ण ने जब कहा था यह सूत्र, | हैं, उससे वह पता नहीं चलता, जो हम सोचते हैं। हम जो बोलते
तब शायद इतनी प्रचलित प्रक्रिया नहीं थी | हैं, वह उसे छिपाने को है, जो हम सोचते हैं। चेहरे पर जो दिखाई स्वाध्याय-यज्ञ, जितनी आज है। आज पृथ्वी पर सर्वाधिक प्रचलित | पड़ता है, वह वह नहीं होता, जो आत्मा में उठता है। चेहरा सौ में जो प्रक्रिया आत्म-रूपांतरण की है, वह स्वाध्याय-यज्ञ है। इसलिए | निन्यानबे मौके पर आत्मा में जो उठता है, वह दूसरे तक न पहुंच इसे ठीक से, थोड़ा ज्यादा ही ठीक से समझ लेना उचित है। जाए, इसकी रुकावट का काम करता है।
आधुनिक मनुष्य के मन के निकटतम जो प्रक्रिया है, वह । । स्वाध्याय का इसलिए पहना अर्थ है कि हम अपने अंतस से स्वाध्याय-यज्ञ है। कृष्ण ने तो उसे चलते में ही उल्लेख किया है। स्वयं ही परिचित हो सकते हैं। दूसरे हमारे आचरण को ही जान उस समय बहुत महत्वपूर्ण वह नहीं थी, बहुत प्रचलित भी नहीं थी। सकते हैं। और आचरण से जाना गया उनका अध्ययन ज्यादा से कभी कोई साधव उसका प्रयोग करता था। लेकिन सिगमंड फ्रायड, ज्यादा अनमान, इनफरेंस हो सकता है। लेकिन साक्षात, सीधा गुस्ताव जुंग, अल्फ्रेड एडलर, सलीवान, फ्रोम और पश्चिम के सारे | | ज्ञान, इमीजिएट, तो हम अपने भीतर स्वयं का ही कर सकते हैं। मनोवैज्ञानिकों ने स्वाध्याय-यज्ञ को बड़ी कीमत दे दी है। __ हम स्वयं ही अपनी गहराइयों में हैं अकेले, वहां किसी दूसरे का
स्वाध्याय, इस शब्द में स्व और अध्ययन दो बातें हैं। स्वयं का प्रवेश नहीं है। इसलिए स्वाध्याय। लेकिन हम खुद भी वहां नहीं अध्ययन स्वाध्याय का अर्थ है। स्वयं का अध्ययन सारे जाते। हम खुद भी अपने से बाहर ही जीते हैं। हम इस ढंग से जीते मनोविश्लेषण की आधार भूमि है, साइकोएनालिसिस की आधार हैं कि हम भी अपने आचरण से ही परिचित होते हैं, अपनी आत्मा भूमि है। स्वयं में क्या-क्या है, इसका गूढ़ परिचय–किसी और के से परिचित नहीं होते। हम स्वयं को भी जानते हैं, तो दूसरों की दृष्टि द्वारा नहीं, स्वयं के ही द्वारा। किसी और के द्वारा इसलिए नहीं कि से जानते हैं। अगर दूसरे हमें अच्छा आदमी कहते हैं, तो हम सोचते स्वयं की अतल गहराइयों में किसी दूसरे का कोई प्रवेश नहीं है। हैं, हम अच्छे आदमी हैं। और दूसरे अगर बुरा कहने लगते हैं, तो
हम दूसरे व्यक्ति को केवल उसकी परिधि से ही जान पाते हैं। बड़ी पीड़ा पहुंचाते हैं। उसकी गहराइयों में, उसके अंतस्तल में कहीं कोई द्वार प्रवेश का । स्वयं का सीधा, प्रत्यक्ष अनुभव हमारा अपना नहीं है। अन्यथा नहीं है। हम दूसरे के व्यवहार को, बिहेवियर को ही जान पाते हैं; सारी दुनिया बुरा कहे, अगर मैं अपने भीतर जानता हूं कि मैं अच्छा उसके अंतस को नहीं। दूसरा क्या करता है, इसे तो हम अध्ययन | हं, तो कोई अंतर नहीं पड़ता। उस सारी दुनिया के बुरे कहने से
म बाहर से अध्ययन | जरा-सा कांटा भी नहीं चभता। कोई प्रयोजन नहीं है। लेकिन मझे नहीं कर सकते हैं।
| तो मेरा पता ही नहीं है कि मैं कौन हूं। मुझे तो वही पता है, जो लोगों और जितना ही ज्यादा मनुष्य सभ्य हो गया है, उतना ही धोखा ने मेरे बाबत कहा है। गहरा हो गया है। अंतस कुछ होता, आचरण कुछ होता! इसलिए लोग मेरे संबंध में जानें बाहर से, यह तो उचित है; लेकिन मैं आचरण को देखकर अंतस की कोई भी खबर नहीं मिलती है। भी अपने संबंध में जानूं बाहर से, यह एकदम ही, एकदम ही सुसंस्कृत और सुसभ्य आदमी हम कहते ही उसे हैं, जिसके खतरनाक है। अनुचित ही नहीं, खतरनाक भी है। आचरण का जाल इतना बड़ा है कि उसके अंतस का पता न लगाया स्वाध्याय का अर्थ है, स्वयं का साक्षात्कार, एनकाउंटर विद
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