________________
गीता दर्शन भाग-2
तो तुम विजेता हो। और तुम सब जीत लो और स्वयं को हार जाओ, तो तुमसे ज्यादा पराजित और कोई भी नहीं है ।
आपको पता हो या न हो, महावीर के लिए जिन जो नाम मिला, वह इसीलिए मिला। जिन का मतलब है, जीत लेने वाला, जिसने जीत लिया स्वयं को। जिन का अर्थ है, जिसने जीत लिया स्वयं को ।
जो जिन बन जाता, जो स्वयं को जीत लेता, फिर इस जगत में उसे पाने योग्य कुछ भी नहीं रह जाता। इस जगत में क्या, कहीं भी पाने योग्य कुछ नहीं रह जाता। लोक में, अलोक में, कहीं भी उसे पाने योग्य कुछ नहीं रह जाता। जिसने स्वयं को पाया, उसने सब | पा लिया। जिसने स्वयं को खोया, उसने सब खो दिया। बस, स्वयं के जीते जीत है।
ऐसा पुरुष स्वयं को जीतकर सुख की सामग्री के व्यर्थ बोझ से मुक्त हो जाता है। अभिमान से भरता नहीं । कर्म करते हुए अकर्म में जीता है। सब जरूरी करते हुए भी उसके ऊपर कोई रेखा नहीं छूटती । वह जतनपूर्वक चादर को परमात्मा के हाथ में सौंप देता है। उस पर कोई दाग, कोई धब्बा नहीं होता है।
आज सुबह इतना ; फिर सांझ हम बात करेंगे। पांच मिनट आप सब रुकेंगे। और जिनमें थोड़ी भी हिम्मत हो, वे भी कीर्तन में भाग लें। पांच मिनट डूबें।
110