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________________ कामना-शून्य चेतना परेशान होगा। वह शांत नहीं हो सकता। अगर मोक्ष भी पाना है, वासना काम कर रही है, कामना काम कर रही है। अगर परमात्मा को भी पाना है, तो फिर वासना काम कर रही है । फिर कामना काम कर रही है। फिर कामना दग्ध नहीं हुई। और मजा तो यह है कि परमात्मा उसे ही मिलता है, जिसकी कामना दग्ध हो । उसे ही मिलता है कि जिसके द्वार पर परमात्मा भी दस्तक दे, तो वह कहे, विश्राम करो; जल्दी न करो, ऐसी कोई जल्दी नहीं है। हम यहां भी काफी मजे में हैं! मोक्ष भी दरवाजे खोले और वह आदमी कह सके कि हम यहीं मोक्ष में हैं, दरवाजे खोलने की कोई भी जरूरत नहीं है। ऐसे ही व्यक्ति के लिए मोक्ष उपलब्ध होता है। ऐसे ही व्यक्ति की तरफ परमात्मा आता है, जो परमात्मा से भी कह दे कि ठहरो । संन्यासी भी परेशान और पीड़ित है। कामना ने रूप बदला, कामना नहीं बदली। कामना ने आब्जेक्ट बदला, विषय बदला, कामना नहीं बदली। धन की जगह धर्म हुआ; सुख की जगह स्वर्ग हुआ; पदार्थ की जगह परमात्मा हुआ; मकान की जगह मंदिर हुआ | विषय बदला, आब्जेक्ट बदला, रूप बदला, ढंग बदला; कामना नहीं बदली। कामना फिर नए रूपों पर नए विषयों पर दौड़ने लगी। कामना अपनी जगह है। जब तक कोई आदमी कहीं पहुंचना चाहता है, जब तक किसी आदमी का कोई लक्ष्य है, तब तक वह कामना के बाहर नहीं है। जब तक उद्देश्य है, तब तक कामना बाहर नहीं है। लिएबमेन ने यह जो फकीर की कहानी लिखी, फकीर भी परेशान है! मैंने कहा, संन्यासी भी परेशान है; बहुत दुखी है, बहुत पीड़ित है । जीवन बीत गया प्रार्थना करते, अब तक स्वर्ग से कोई खबर नहीं मिली ! जीवन बीत गया प्रभु के द्वार पर हाथ जोड़े, अब भी हाथ खाली हैं! एक रात सोते समय उस बूढ़े फकीर ने परमात्मा से कहा, बहुत चुका! कितनी प्रार्थना करूं? और कितनी पूजा करूं? और कब तक तुम्हें पुकारूं ? अब थक गया। अब तक तुम से सुख मांगे, अब तुमसे सुख नहीं मांगता। अब तुम से इतना ही मांगता हूं कि कम से कम मेरे दुख किसी और को दे दो और किसी दूसरे के दुख मुझे दे दो, तो भी चलेगा। मुझसे ज्यादा दुखी आदमी पृथ्वी पर दूसरा नहीं है। सभी को ऐसा खयाल है कि उससे ज्यादा दुखी आदमी पृथ्वी पर दूसरा नहीं है । क्यों? खयाल के कारण हैं। क्योंकि हमें अपने भीतर के, हृदय के दुख के कांटे दिखाई पड़ते हैं। दूसरों के हृदय के तो दुख के कांटे दिखाई नहीं पड़ते। दूसरों के हृदय तक पहुंचने का हमारे पास कोई उपाय नहीं है। दूसरों के चेहरे दिखाई पड़ते हैं। और चेहरे से ज्यादा धोखे की और कोई चीज नहीं है। चेहरा फसाड है, धोखा है। चेहरा बनाया हुआ है। ओरिजिनल फेस तो | कम लोगों के पास होते हैं, पेंटेड फेस होते हैं। मौलिक चेहरा तो बहुत कम लोगों के पास होता है। कभी किसी कृष्ण, कभी किसी बुद्ध के पास मौलिक चेहरा होता है; वही जो चेहरा उनका है। | अन्यथा चेहरे तैयार किए होते हैं। दिखाने के लिए तैयार किए होते हैं। मास्क, मुखौटे होते हैं। और एक-एक आदमी बहुत-से चेहरे अपने पास रखता है। जब जैसी जरूरत पड़ी, चेहरा लगा लेता है। 97 दूसरे का चेहरा दिखाई पड़ता है, मुस्कुराहटें दिखाई पड़ती हैं दुनिया में। दूसरों के हृदय तो दिखाई नहीं पड़ते, नहीं तो आंसुओं के ढेर लग जाएं। सच तो यह है कि लोग मुस्कुराते ही इसलिए हैं, ताकि भीतर के आंसुओं को छिपा सकें। चेहरे बड़े प्रसन्न मालूम होते हैं, बड़े ताजे ! हृदय बिलकुल बासे । चेहरों पर जो दिखाई पड़ता है, उससे धोखे में मत आ जाना। वे ड्राइंगरूम की तरह हैं, घरों में बैठकखाने की तरह हैं। जो बाहर से आते हैं, उनको दिखाने के लिए बैठकखाना होता है। रहने के लिए नहीं होता है बैठकखाना । घर के लोग उसमें रहते नहीं हैं। सिर्फ दिखाई पड़ते हैं । जब बाहर से कोई आता है, तो बैठकखाने में दिखाई पड़ते हैं । रहते घर के दूसरे हिस्सों में हैं, दिखाई पड़ते हैं बैठकखानों में! चेहरे बैठकखाने हैं। वह फकीर भी धोखे में आ गया। लोगों के चेहरे देखे । उसने | देखा, लोग हंसते हैं, मुस्कुराते हैं । और मैं अपने भीतर देखता हूं, तो सिवाय दुख के कुछ और नहीं है। तो उसने परमात्मा से कहा, छोड़ो यह फिक्र सुख देने की। अब तो मैं इसके लिए भी राजी हूं | कि किसी दूसरे का दुख मुझे दे दो । मेरा दुख किसी और को दे दो । फिर वह सो गया। रात उसने एक स्वप्न देखा कि कोई आकाश से आवाज गूंजती है कि सब लोग अपने दुखों को गठरियों में बांधकर नगर के केंद्रीय हाल में पहुंच जाएं। फकीर समझा कि सुन ली गई मेरी प्रार्थना । बांधे अपने दुख; बांधी गठरी; भागा। रास्ते पर देखा कि सारा गांव अपनी-अपनी गठरी लेकर भागा जा रहा है। लोगों की गठरियों की तरफ देखा, तो थोड़ा घबड़ाया। क्योंकि कोई गठरी अपने से छोटी नहीं दिखाई पड़ती थी। लेकिन फिर भी गठरियां बंद थीं और दुख
SR No.002405
Book TitleGita Darshan Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year1996
Total Pages464
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
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