________________
नहीं-रूपांतरण होता है / कुछ भी नष्ट नहीं होता / अगर सब विराट शक्ति से घटित होता है, तो व्यक्ति अपने कर्मों के लिए जिम्मेदार कैसे होगा?/ अहंकार से निर्मित कर्ताभाव / समर्पण अर्थात जो उसकी मरजी / जब तक कर्ताभाव, तब तक जिम्मेदारी / कर्तापन का बोझ ढोना / सब विराट पर छोड़ देना / बुरे कृत्यों की जड़-अहंकार / पाप की गठरी / अर्जुन की समस्या उसके गहन कर्ताभाव से निर्मित / कर्ता नहीं—निमित्त बन जा / अज्ञानी का तल-ज्ञानी का तल / उधार ज्ञान का उपद्रव / भारत का नैतिक पतन / ऊंची बातें-नीचा जीवन / जहां अहंकार नहीं-वहां शुभ फलित / वर्ण-भेद अस्तित्वगत तथ्य है / गुणों की सहज भिन्नता / व्यक्तिगत गुण-धर्म / मनुष्य चार 'टाइप' में विभाजित / ब्राह्मण-जो ज्ञान की खोज में आतुर है / क्षत्रिय है शक्ति का पूजक / जीवन का आनंद नियति के पूरे होने में / धन का आकांक्षी-वैश्य / बिना काम के न जी सकने वाला-शूद्र / भीतर वर्ण-गुण से निकलते हैं कर्म / चार वर्षों में ऊंचे-नीचे का मूल्यांकन नहीं है / अस्तित्व में गुण-भेद हैं-भेद-भाव नहीं / चारों वर्गों में एक अंतर-सहयोग है।
आंतरिक गुण-धर्म का इनकार नहीं हो सकता / गुणानुकूल कर्म से जीवन में लयबद्धता / विकास की दृष्टि से क्या ब्राह्मण की चेतना शूद्र की चेतना से ऊंची नहीं? / नहीं / चेतना श्रेष्ठ होती है-अपने-अपने गुण की पूर्णता पर / अर्जुन की समाधि-युद्ध के शिखर-क्षण में / शूद्र की समाधि-श्रम में लीन होकर / चेतना की श्रेष्ठता ध्यान से उपलब्ध / वर्ण-गुण के अनुकूल ध्यान के चार प्रकार।
जीवन एक लीला ... 65
चार वर्षों में मनुष्य की रचना करने के बाद भी कृष्ण कैसे अकर्ता रहे? / कर्ता का निर्माता-अहंकार का भाव / चलने की क्रिया है-चलने वाला कोई नहीं / कर्ता नहीं है-साक्षी है, द्रष्टा है / कर्ता हमारा भ्रम है / अकर्ता भाव का सघन होना / 'तू' के अभाव में 'मैं' का खो जाना / गहरी नींद में अहं-शून्यता का आनंद / परमात्मा के लिए कोई 'तू' नहीं है / स्रष्टा और सृष्टि एक हैं / नर्तक और नृत्य एक हैं / खेल और काम का फर्क / यह जगत परमात्मा की लीला है / फलाकांक्षारहित कर्म खेल बन जाता है / अस्तित्व निरुद्देश्य है / जीवन अपने आप में आनंद है / कृष्ण की लीला और राम का चरित्र / फलाकांक्षी मनुष्य / कल की आशा / आनंदित चित्त फलातुर नहीं होता / और फलातुर आदमी दुखी होता है / आशाओं के खंडहर / अभी और यहीं है जीवन / कर्म को खेल बनाओ / जीवन एक अभिनय है / परमात्मा के लिए न कोई अतीत है, न कोई भविष्य / वर्तमान-एक ठहरी हुई अनंतता / यही क्षण सब कुछ है / फलाकांक्षी देवताओं को पूजते हैं / फलाकांक्षी-परमात्मा से दूर / अंधेरे की कोई सत्ता नहीं है / अंधेरे की भांति है अधर्म / धर्म का दीया बार-बार जलाने की जरूरत / कर्म कर-कर्ता मत बन / सम्यक संन्यास-कर्ताशून्य कर्म।
वर्ण-व्यवस्था का मनोविज्ञान ...79
कर्म क्या है और अकर्म क्या? / प्रतिकर्म-रिएक्शन-कर्म नहीं है / कर्म है-सहज, अंतर-प्रेरित / प्रतिकर्म है-बाह्य प्रेरित / यांत्रिक प्रतिक्रियाओं का हमारा जीवन / अकर्मण्यता अकर्म नहीं है / कर्म की वासना न हो / मन शून्य और मौन हो जाए तो अकर्म / भीतर अकर्म है-तब बाहर कर्म होगा / आंतरिक मौन / अंतस में कर्म की तरंगों का अभाव / कर्म की वासना से कर्ता का बनना / बाहर कर्म-भीतर केंद्र पर अकर्ता, अकर्म / संपत्ति बचाना भी प्रतिकर्म है / आधुनिक अर्थों में क्या वर्ण-व्यवस्था मनोवैज्ञानिक सत्य है? / आत्मिक विकास का गहन नियोजन / योग्य गर्भ को खोजने की व्यवस्था / वर्ण-व्यवस्था जीर्ण-जर्जर हो गई है / लेकिन नियम में अंतर नहीं पड़ता / आज की दिशाहीन स्थिति / मनुष्य की चिंता व बेचैनी / आधुनिक तर्क-चिंतना और पुरानी अंतर्दृष्टि का जोड़ चाहिए / आधुनिक मनोविज्ञान द्वारा बाल-विवाह को स्वीकृति / बाल-विवाह ही थिर हो सकता है / बढ़ते हुए तलाक / बच्चे लोचपूर्ण / पति-पत्नी-युद्ध / बचपन से तालमेल का निर्माण / कामवासना आने से पहले गहन मैत्री का जन्म / कामवासना-केंद्रित