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________________ गीता दर्शन भाग-20 किं कर्म किमकति कक्योऽप्यत्र मोहिताः। ये प्रतिकर्म वैसे ही हैं, जैसे बटन दबाई और बिजली का बल्ब रते कर्म प्रवक्ष्यामि यज्ञात्वा मोक्ष्यसेऽशुभात् ।। १६ ।। जल गया; बटन बुझाई और बिजली का बल्ब बुझ गया। बिजली कर्म क्या है और अकर्म क्या है, ऐसे इस विषय में बुद्धिमान का बल्ब भी सोचता होगा कि मैं कर्म करता हूं जलने का, बुझने का। पुरुष भी मोहित है, इसलिए मैं वह कर्म अर्थात कर्मों का लेकिन बिजली का बल्ब जलने-बुझने का कर्म नहीं करता है। कर्म तत्व तेरे लिए अच्छी प्रकार कहूंगा, जिसको जानकर तू उससे कराए जाते हैं। बटन दबती है, तो उसे जलना पड़ता है। बटन अशुभ अर्थात संसार-बंधन से छूट जाएगा। बुझती है, तो उसे बुझना पड़ता है। यह उसकी स्वेच्छा नहीं है। इसको ऐसा लें, किसी ने आपको गाली दी। और अगर आप गाली का उत्तर देते हैं, तो थोड़ा सोचें, यह गाली का उत्तर आपने कर्म क्या है और अकर्म क्या है, बुद्धिमान व्यक्ति भी | दिया या देना पड़ा? अगर दिया, तो कर्म हो सकता है; देना पड़ा, पा निर्णय नहीं कर पाते हैं। कृष्ण कहते हैं, वह गूढ तत्व तो प्रतिकर्म होगा। मैं तुझसे कहूंगा, जिसे जानकर व्यक्ति मुक्त हो जाता आप कहेंगे, दिया, चाहते तो न देते। तो फिर चाहकर कोशिश करके देखें, तब आपको पता चलेगा। हो सकता है. ओंठों को रोक अजीब-सी लगेगी यह बात; क्योंकि कर्म क्या है और अकर्म लें, तो भीतर गाली दी जाएगी। तब आपको पता चलेगा, गाली क्या है, यह तो मूढजन भी जानते हैं। कृष्ण कहते हैं, कर्म क्या है | मजबूरी है; बटन दबा दी है किसी ने। और अगर कोई गाली दे, और अकर्म क्या है, यह बुद्धिमानजन भी नहीं जानते हैं। | और आपके भीतर गाली न उठे, तो कर्म हुआ। तो आप कह सकते हम सभी को यह खयाल है कि हम जानते हैं, क्या है कर्म और हैं, मैंने गाली न देने का कर्म किया। क्या कर्म नहीं है। कर्म और अकर्म को हम सभी जानते हुए मालूम कर्म का अर्थ है, सहज। प्रतिकर्म का अर्थ है, प्रेरित, इंस्पायर्ड। पड़ते हैं। लेकिन कृष्ण कहते हैं कि बुद्धिमानजन भी तय नहीं कर | कारण है जहां बाहर, और कर्म आता है भीतर से, वहां कर्म नहीं है। पाते हैं कि क्या कर्म है और क्या अकर्म है। गूढ़ है यह तत्व। तो हम चौबीस घंटे प्रतिकर्म में ही जीते हैं। बुद्ध, या महावीर, या फिर पुनर्विचार करना जरूरी है। हम जिसे कर्म समझते हैं, वह कर्म कृष्ण, या क्राइस्ट जैसे लोग कर्म में जीते हैं। उनके जीवन में नहीं होगा; हम जिसे अकर्म समझते हैं, वह अकर्म नहीं होगा। प्रतिकर्म खोजे से भी नहीं मिलेगा। हम किसे कर्म समझते हैं? हम प्रतिकर्म को कर्म समझे हुए हैं, एक आदमी बुद्ध के ऊपर आकर थूक गया है। तो वे मुस्कुराए। रिएक्शन को एक्शन समझे हुए हैं। किसी ने गाली दी आपको, और | उन्होंने अपनी चादर से थूक को पोंछ लिया। और उस आदमी से आपने भी उत्तर में गाली दी। आप जो गाली दे रहे हैं, वह कर्म न पूछा, और कुछ कहना है? हुआ; वह प्रतिकर्म हुआ, रिएक्शन हुआ। किसी ने प्रशंसा की, वह आदमी भी विचलित हुआ होगा। क्योंकि जब किसी के और आप मुस्कुराए, आनंदित हुए; वह आनंदित होना कर्म न ऊपर थूकें, तो शायद पृथ्वी पर इसके पहले किसी ने भी नहीं कहा हुआ; प्रतिकर्म हुआ, रिएक्शन हुआ। होगा कि और कुछ कहना है! आपने कभी कोई कर्म किया है! या प्रतिकर्म ही किए हैं? वह आदमी थोड़ा झिझका। उत्तर उसे सूझा नहीं। क्योंकि बुद्ध ने चौबीस घंटे, जन्म से लेकर मृत्यु तक, हम प्रतिकर्म ही करते हैं; | | बड़ी अड़चन में डाल दिया। बुद्ध कोई प्रतिकर्म करते, तो वह आदमी हम रिएक्ट ही करते हैं। हमारा सब करना हमारे भीतर से उत्तर तैयार लेकर आया होगा। प्रतिकर्म की हम सब की तैयारी है। सहज-जात नहीं होता, स्पांटेनियस नहीं होता। हमारा सब करना | | बुद्ध अगर पूछते, क्यों थूका? तो शायद वह उत्तर तैयार करके लाया हमसे बाहर से उत्पादित होता है, बाहर से पैदा किया गया होता है। | हो। जैसे परीक्षा में लोग अपने उत्तर तैयार करके ले जाते हैं, ऐसे हम किसी ने धक्का दिया, तो क्रोध आ जाता है। किसी ने | जिंदगी में एक-एक कदम रिहर्सल पहले कर लेते हैं। पहले तैयारी फूलमालाएं पहनाईं, तो अहंकार खड़ा हो जाता है। किसी ने गाली कर लेते हैं कि अगर थूकूँगा, तो कोई यह कहेगा, तो मैं यह कहूंगा। दी, तो गाली निकल आती है। किसी ने प्रेम के शब्द कहे, तो लेकिन जो तैयारी होती है, वह प्रतिकर्म की होती है। गदगद हो प्रेम बहने लगता है। लेकिन ये सब प्रतिकर्म हैं। बुद्ध जैसा आदमी तो कभी-कभी हजारों वर्षों में मिलता है। तो | 801
SR No.002405
Book TitleGita Darshan Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year1996
Total Pages464
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
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