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ॐ गीता दर्शन भाग-26
तो गृहस्थ ही पीठ करके खड़ा हो गया; मन जरा भी नहीं बदला।
कृष्ण कहते हैं, कर्म तो तू कर, कर्ता मत रह जा। कृष्ण कहते हैं, गृहस्थ तो तू रह, और संन्यासी हो जा। और कहते हैं, ऐसा पूर्वपुरुषों ने भी किया है। यह सिर्फ भरोसे के लिए, आश्वासन के लिए-कि तू घबड़ा मत! ऐसा मत सोच कि ऐसा कभी नहीं किया गया है। ऐसा पहले भी किया गया है।
सच में ही इस पृथ्वी पर जो लोग ठीक से जाने हैं, उन्होंने कर्ता को छोड़ दिया और कर्म को जारी रखा है।
ठीक संन्यासः कर्ताहीन, कर्म-सहित। ठीक संन्यासः अहंकार-मुक्त, कर्म-संयुक्त। ठीक संन्यासः स्वयं को छोड़ देता, शेष सबको जारी रखता है। ऐसे ठीक-ठीक संन्यास की, सम्यक संन्यास की, ऐसे राइट रिमंसिएशन की कृष्ण अर्जुन को शिक्षा देते हैं।
शेष हम रात बात करेंगे। पांच मिनट आप रुकेंगे। पांच मिनट कीर्तन में सम्मिलित हों। कर्ता को छोड़कर नाचें। पांच मिनट आनंद से भरें। और विदा हो जाएं।