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गीता दर्शन भाग-28
जो धर्म कभी नष्ट नहीं होता, उसकी संस्थापना की क्या जरूरत अधर्म, जो नहीं है; धर्म, जो सदा है। है? और जो अधर्म कभी होता ही नहीं, उसके मिटाने की क्या | सूरज स्रोत है प्रकाश का। अंधेरे का स्रोत पता है, कहां है? कहीं जरूरत है? लेकिन ऐसा भी है।
| भी नहीं है। सूरज से आ जाती है रोशनी। अंधेरा कहां से आता है? अंधेरा है। अंधेरा है नहीं। रोज मिटाना पड़ता है, और है बिलकुल फ्राम नो व्हेयर। कोई सोर्स नहीं है। नहीं! अंधेरे का कोई अस्तित्व नहीं है। अंधेरा एक्झिस्टेंशियल नहीं कभी आपने पूछा, अंधेरा कहां से आता है? कौन डाल देता है है। अंधेरा कोई चीज नहीं है। फिर भी है।
इस पृथ्वी पर अंधेरे की चादर? कौन आपके घर को अंधेरे से भर __ यह मजा है, यह पैराडाक्स है जिंदगी का, अंधेरा है नहीं, फिर | देता है ? प्रकाश का तो स्रोत है—सूरज। अंधेरे का स्रोत कहां है? भी है। काफी है। घना होता है। डरा देता है। प्राण कंपा देता है। | स्रोत नहीं है, क्योंकि है ही नहीं अंधेरा, नहीं तो स्रोत भी होता।
और नहीं है! अंधेरा सिर्फ प्रकाश की अनुपस्थिति है। सिर्फ एब्सेंस कहीं से आता, कहीं जाता। जब सुबह सूरज आ जाता है, तो अंधेरा है। जैसे कमरे में आप थे और बाहर चले गए; तो हम कहते हैं, कहां चला जाता है? कहीं सिकुड़कर छिप जाता है ? कहीं नहीं अब आप कमरे में नहीं हैं। अंधेरा इसी तरह है। अंधेरे का मतलब सिकुड़ता, कहीं नहीं जाता। है ही नहीं; कभी था नहीं। अंधेरा कभी इतना ही है कि प्रकाश नहीं है।
नहीं है, फिर भी रोज उतर आता है! प्रकाश सदा है, फिर भी रोज इसलिए अंधेरे को तलवार से काट नहीं सकते। अंधेरे को गठरी सांझ जलाना पडता और खोजना पडता है। में बांधकर फेंक नहीं सकते। दुश्मन के घर में जाकर अंधेरा डाल ऐसा ही धर्म और अधर्म है। अंधेरे की भांति है अधर्म; प्रकाश नहीं सकते, कि डाल दो इसके घर में अंधेरा, दुश्मन के। अंधेरा | की भांति है धर्म। रोज, प्रतिदिन खोजना पड़ता है। . डाल नहीं सकते। अंधेरा घर के बाहर निकालना हो, तो धक्का | | युग-युग में, कृष्ण कहते हैं, लौटना पड़ता है। मूल स्रोत से धर्म देकर निकाल नहीं सकते। धक्का देते-देते आप घर के बाहर को फिर वापस पृथ्वी पर लौटना पड़ता है। सूर्य से फिर प्रकाश को निकल जाओगे, अंधेरा पीछे ही रहेगा।
| वापस लेना पड़ता है। यद्यपि जब प्रकाश नहीं रह जाता सूर्य का, ___ अंधेरा है नहीं। सब्स्टेंशियल नहीं है। अंधेरे में कोई सब्स्टेंस नहीं | तो हम मिट्टी के दीए जला लेते हैं। केरोसिन की कंदील जला लेते है। कोई कंटेंट नहीं है। अंधेरे में कोई वस्तु नहीं है। अंधेरा अवस्तु हैं। उससे काम चलाते हैं। लेकिन काम ही चलता है। कहां सूरज! है, नो-थिंग है, नथिंग है। अंधेरे में कुछ है नहीं। लेकिन फिर भी - कहां कंदीलें! बस, काम ही चलता है। है। रात प्राण कंप जाते हैं अंधेरे में। डर लगता है जाने में। इतना तो | | तो जब कृष्ण जैसे व्यक्तित्व नहीं होते पृथ्वी पर, तब छोटे-मोटे है कि डरा दे। इतना तो है कि कंपा दे। इतना तो है कि गड्ढे में गिरा | दीए, कंदीलें केरोसिन की, धुआं भी काफी निकलता है उनमेंदे। इतना तो है कि हाथ-पैर टूट जाएं।
| रोशनी कम ही निकलती है, धुआं ही ज्यादा निकलता है लेकिन अब यह बड़ी मुश्किल की बात है। जो नहीं है, उसके होने से | | उनसे भी काम चलाना पड़ता है। तथाकथित साधु-संतों की भीड़ आदमी गड्ढे में गिर जाता है। अब यह कहना नहीं चाहिए, क्योंकि | | ऐसी है, केरोसिन आयल, मिट्टी का तेल। मगर रात में बड़ी कृपा एब्सर्ड है। जो नहीं है, उसके होने से आदमी गड्ढे में गिर जाता है! | है उसकी। रात में बड़ी कृपा है उसकी, थोड़ा-सा धीमा-धीमा, जो नहीं है, उसके होने से हाथ-पैर टूट जाते हैं ! जो नहीं है, उसके | | दो-चार-दस फीट पर रोशनी पड़ती रहती है। लेकिन बार-बार होने से चोर चोरी कर ले जाते हैं। जो नहीं है, उसके होने से हत्यारा | | अंधेरा सघन हो जाता है, और बार-बार करुणावान चेतनाओं को हत्या कर देता है!
| लौट आना पड़ता है, जो आकर फिर सूरज से भर दें। कई बार ऐसा नहीं तो है बिलकुल। वैज्ञानिक भी कहते हैं, नहीं है। उसका कोई | | भी होता है कि सूरज जैसी चेतनाओं को आमने-सामने नहीं देखा अस्तित्व नहीं है। अस्तित्व है प्रकाश का। अब जिसका अस्तित्व | जा सकता। है, उसको रोज लाना पड़ता है। रोज सांझ दीया जलाओ। न __ आपने कभी खयाल किया, सूरज को कभी आप आमने-सामने जलाओ, तो अंधेरा खड़ा है।
नहीं देखते, दीए को मजे से देखते हैं। इसलिए साधु-संतों से तो कृष्ण कहते हैं, धर्म संस्थापनार्थाय! धर्म की संस्थापना के | | सत्संग चलता है, कृष्ण जैसे लोगों के आमने-सामने मुश्किल हो लिए; दीए को जलाने के लिए, अधर्म के अंधेरे को हटाने के लिए। जाती है। एनकाउंटर हो जाता है, झंझट हो जाती है, कई दफे तो
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