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________________ गीता दर्शन भाग - 14 आपने क्षणभर में जो सपना देखा है, अगर लिखिएगा तो आपको डेढ़ घंटा लगेगा। आप कहेंगे, बड़ी अजीब बात है । देखा क्षणभर में और लिखने में डेढ़ घंटा लग रहा है! क्या कारण है? क्या वजह है? तीसरी बात इसलिए और आपको खयाल में दे दूं। वजह यह है कि जब आपके भीतर कोई घटना घटती है, तब वह साइमलटेनियस घटती है, वह युगपत घटती है। जैसे मैं आपको देख रहा हूं, तो मैं आपको इकट्ठा देख रहा हूं एक ही क्षण में। लेकिन अगर आपकी गिनती करने आऊं, तो एक-एक की गिनती करूंगा । और तब लीनियर हो जाएगा; एक रेखा में मुझे आपकी गिनती करनी पड़ेगी; उसमें घंटों लग जाएंगे। आपको जब देखा, तो मैंने सबको देखा आपको। वह एक क्षण में एक साथ हो गया। लेकिन जब गिना और कहीं आपके नाम लिखूं रजिस्टर पर, तो बहुत घंटे लग जाएंगे। तो जब आप सपने को देखते हैं, तो युगपत घट जाता है। जब आप उसको लिखते हैं कागज पर, तब आप लंबाई में लिखते हैं, युगपत नहीं रह जाता। एक-एक घटना लिखनी पड़ती है। तब वह लंबी हो जाती है, समय ज्यादा ले लेती है। गीता जब लिखी गई या संजय ने जब कही धृतराष्ट्र को कि ऐसी-ऐसी बात हो रही है वहां कृष्ण और अर्जुन के बीच, तब उसमें वक्त लगा होगा उतना ही, जितना वक्त अभी गीता पढ़ते वक्त आपको लगेगा —उतना ही । लेकिन कृष्ण और अर्जुन बीच समय कितना लगा, यह तब तक आपको खयाल में आना मुश्किल है, जब तक आपको टेलीपैथी का थोड़ा-सा अनुभव न हो। हमारे हिसाब से समय का कोई मूल्य नहीं है वहां । इसलिए हो सकता है, किसी भी योद्धा को पता भी न चला हो कि कृष्ण और अर्जुन के बीच क्या घटा ! एक क्षण में हो गया हो। रथ जाकर खड़ा हुआ हो; अर्जुन निढाल होकर बैठ गया हो और एक क्षण में यह सारी बात हो गई हो, जो हुई है। एक छोटी-सी कहानी, फिर हम दूसरा श्लोक लें। सुना है मैंने, नारद के जीवन में एक कहानी है। यह जगत माया है, यह जगत माया है— बड़े-बड़े ज्ञानियों से नारद ने सुना है। फिर स्वयं भगवान से जाकर उन्होंने पूछा कि मेरी समझ में नहीं आता; है, वह माया कैसे हो सकता है? जो है, वह है ! वह माया कैसे हो सकता है? उसके इलूजरी, उसके माया होने का क्या मतलब है ? धूप तपती है तेज, आकाश में सूरज है, दोपहर है। भगवान ने कहा कि मुझे बड़ी प्यास लगी है— फिर पीछे समझाऊं - थोड़ा पानी ले आ 64 नारद पानी लेने गए। गांव में प्रवेश किया। दोपहर है, लोग अपने घरों में सो रहे हैं। एक दरवाजे पर दस्तक दी। एक युवती बाहर आई । नारद भूल गए भगवान को कोई भी भूल जाए। जिसको सदा याद किया जा सकता है, उसको याद करने की इतनी जल्दी भी क्या है ! भूल गए। और जब भगवान को ही भूल गए, कहा, उनकी प्यास का क्या सवाल रहा! किसलिए आए थे, याद न रहा। लड़की को देखते रहे; मोहित हो गए। निवेदन किया कि मैं विवाह का प्रस्ताव लेकर आया हूं। पिता बाहर थे। उस लड़की ने पिता को आ जाने दें, तब तक आप विश्राम करें। विश्राम किया। पिता आए । राजी हो गए। विवाह हो गया। फिर चली कहानी। बच्चे हुए, चार-छह बच्चे पैदा हो गए। काफी वक्त लगा। पिता मर भी गया, ससुर मर भी गए। बूढ़े हो गए नारद । पत्नी भी बूढ़ी हो गई, बच्चों की लाइन लग गई। बाढ़ आ गई। वर्षा के दिन हैं। गांव डूब गया। अब अपने पत्नी-बच्चों को बचाकर किसी तरह बाढ़ पार कर रहे हैं। बूढ़े हैं, शक्ति नहीं है पास। बड़ी मुश्किल में पड़ गए हैं। पत्नी को बचाते हैं, तो बच्चे बहे जाते हैं; बच्चों को बचाते हैं, तो पत्नी बही जाती है। बाढ़ है तेज और सबको बचाने में सब बह हैं। नारद अकेले थके-मांदे तट पर जाकर लगते हैं। आंखें बंद हैं, आंसू बह रहे हैं। और कोई पूछता है कि उठो; बड़ी देर लगा दी; सूरज ढलने के करीब हो गया और हम प्यासे ही बैठे हैं। पानी अब तक नहीं लाए ? नारद ने आंख खोली; देखा, भगवान खड़े हैं। उन्होंने कहा, अरे, मैं तो भूल ही गया। मगर इस बीच तो बहुत कुछ हो गया। आप कहते हैं, अभी सिर्फ सूरज ढल रहा है? उन्होंने कहा, सूरज ही ढल रहा है। चारों तरफ देखा, बाढ़ का कोई पता नहीं है। पूछा, बच्चे - पत्नी ? भगवान ने कहा, कैसे बच्चे, कैसी पत्नी ? कोई सपना तो नहीं देखते थे? भगवान ने कहा कि तुम पूछते थे कि जो है, वह माया कैसे हो सकता है? जो है, वह माया नहीं है। लेकिन जो है, उसे समय के माध्यम से देखने से वह सब माया हो जाता है। और जो है, उसे समय के अतिरिक्त, समय का अतिक्रमण | करके देखने से वह सब सत्य हो जाता है। संसार समय के माध्यम से देखा गया सत्य है । सत्य समय शून्य माध्यम से देखा गया संसार है। यह जो घटना घटी है, यह घटना आंतरिक है और समय की परिधि के बाहर है।
SR No.002404
Book TitleGita Darshan Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year1996
Total Pages512
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size22 MB
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