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________________ im+ गीता दर्शन भाग-1 AM गरजिएफ ने कहा कि अब तम उस जगह आ गए हो मौन की. | नहीं बोले। और जितने उनके शब्द हैं, वे उन्होंने नहीं बोले। उनके जहां बिना शब्द के बातचीत की जा सकती है। अब मैं तुमसे सीधे पास लोग खड़े रहते थे, महावीर उनसे बोलते-ऊपर से नहीं, बोल सकता हूं, शब्दों की अब कोई जरूरत नहीं है। | क्योंकि हजारों लोग सुनने आए होते, उनको कुछ सुनाई न अभी रूस के एक दूसरे वैज्ञानिक फयादोव ने एक हजार मील | पड़ता—फिर वह आदमी जोर से बोलता कि महावीर ऐसा कहते हैं। दूर बिना किसी माध्यम के संदेश भेजने के प्रयोग में सफलता पाई ___ इसलिए महावीर की वाणी को शून्य वाणी, शब्दहीन वाणी कहा है। आप भी पा सकते हैं, बहुत कठिन मामला नहीं है। कभी एक गया है। उन्होंने सीधा कभी नहीं बोला। किसी से भीतर से बोला छोटा-सा प्रयोग घर में कर लें। छोटे बच्चे को चुन लें। अंधेरा कर | और किसी ने उसे बाहर प्रकट किया। करीब-करीब ऐसे ही जैसे लें कमरे में, दूसरे कोने में उसे बैठा दें, एक कोने में आप बैठ जाएं। इस माइक से मैं बोल रहा हूं और आप सुन रहे हैं। माइक की तरह और उस बच्चे से कह दें कि तू आंख बंद कर ले और ध्यान मेरी | एक आदमी का भी उपयोग हो सकता है। तरफ रख। और सुनने की कोशिश कर कि मैं कुछ बोल तो नहीं कृष्ण और अर्जुन के बीच जो बात हुई थी, अगर संजय ने न रहा हूं। और एक ही शब्द अपने भीतर बार-बार दोहराए चले सुनी होती तो खो गई होती। बहुत-सी और बातें भी बहुत बार हुई जाएं : गुलाब, गुलाब, गुलाब। बोलें मत; भीतर दोहराए चले हैं और खो गई हैं। महावीर के बहुत वचन उपलब्ध नहीं हैं। जाएं। घंटे, आधा घंटे में वह बच्चा बोलने लगेगा कि आप गुलाब बुद्ध ने एक दिन अपने सारे भिक्षुओं को इकट्ठा किया। और हाथ बोल रहे हैं। और आप भीतर ही बोलें, आप बाहर मत बोलें। में एक कमल का फूल लेकर वे वहां आए। फिर बैठ गए और उस इससे उलटा भी हो सकता है, लेकिन जरा देर लगेगी। अगर कमल के फूल को देखने लगे और देखते रहे। लोग हैरान हो गए, बच्चा वहां बैठकर अपने मन में एक शब्द सोचे और आप पकड़ना | थोड़ी देर में बेचैनी शुरू हो गई, कोई खांसा होगा, किसी ने करवट चाहें, तो शायद दो-तीन दिन लग जाएंगे। बच्चा जल्दी पकड़ लेगा। बदली होगी, क्योंकि बहुत देर हो गई। वे चुप क्यों बैठे हैं! बोलें, आदमी, जिसको हम जिंदगी कहते हैं, उसमें बिगड़ने के सिवाय और बोलें, बोलें। फिर आखिर आधा घंटा बीतने लगा, तो बेचैनी बहुत कुछ भी नहीं करता। बूढ़े बिगड़े हुए बच्चों से अतिरिक्त और कुछ बढ़ गई। किसी ने खड़े होकर कहा, आप क्या कर रहे हैं? हम भी नहीं होते। लेकिन बच्चा घंटे, आधा घंटे में पकड़ना शुरू कर आपको सुनने आए हैं। आप बोलते नहीं! बुद्ध ने कहा, मैं बोल देगा। एक ही शब्द दोहराएं और अगर एक पकड लिया जाए तो रहा है. सनो. सनो। लेकिन लोगों ने कहा, आप कछ बोलते न फिर अभ्यास से पूरा वाक्य पकड़ा जा सकता है। क्या सुनें? कृष्ण और अर्जुन के लिए ध्यान में रखना जरूरी है कि यह चर्चा, । तभी एक भिक्षु, जिसका नाम था महाकाश्यप, वह हंसने लगा। बाहर हुई चर्चा नहीं है। यह चर्चा गहरी है और यह चर्चा बिलकुल | तो बुद्ध ने उसे बुलाकर वह फूल दे दिया। और कहा कि सुनो, जो भीतरी है। इसलिए इसमें युद्ध के आसपास खड़े लोग भी गवाह | | शब्द से बोला जा सकता था, वह मैं तुमसे कह चुका; और जो नहीं थे। और इसलिए हो सकता है यह भी कि जिन्होंने महाभारत | | शब्द से नहीं बोला जा सकता था, भीतर ही बोला जा सकता था, लिखा, उन्होंने पहले गीता उसमें न जोड़ी हो। यह हो सकता है। | वह मैंने महाकाश्यप से कह दिया है। अब तुम्हें पूछना हो तो यह हो सकता है कि इतिहासकार ने, जिसने लिखी है, उसने न | महाकाश्यप से पूछ लेना। जोड़ी हो, लेकिन संजय सुन पा रहा है। क्योंकि संजय, जो देख महाकाश्यप से बद्ध ने क्या कहा, यह अब तक बुद्ध के भिक्षु पाता है इतनी दूर, वह सुन भी पा सकता है। असल में दुनिया को | | पूछते हैं एक-दूसरे से। क्योंकि वह महाकाश्यप से जब भी किसी संजय से पहली दफा गीता सुनने को मिली है, कृष्ण से सुनने को | ने पूछा, तो वह हंसने लगा और उसने कहा, जब बुद्ध न कह सके, पहली दफा नहीं मिली। पहली दफा अर्जुन ने सुनी है, वह सुनना | | तो मैं क्यों उपद्रव में पडूं! उसने कहा कि कहना होता तो बुद्ध ही बहुत भीतरी है। उस सुनने का बाहरी कोई प्रमाण नहीं था। । | तुम से कह देते। और जब वे भूल-चूक नहीं किए, तो मैं करने और दूसरी बात आपसे कहना चाहूंगा कि यह टेलीपैथिक | वाला नहीं हूं। कम्युनिकेशन है। गीता एक अंतर्संवाद है, जिसमें शब्दों का ऊपर | फिर महाकाश्यप ने किसी को फिर मौन से कहा, फिर उस उपयोग नहीं हुआ है। महावीर के संबंध में कहा जाता है कि वे कभी आदमी ने भी किसी से नहीं कहा-और ऐसे छः आदमियों की | 62
SR No.002404
Book TitleGita Darshan Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year1996
Total Pages512
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size22 MB
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