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________________ Sam गीता दर्शन भाग-1 AM सामने दो विकल्प स्पष्ट हैं। और उन दोनों के बीच उसका मन डोल मांगने जाता है। जब भी कोई आदमी सलाह मांगने जाता है, तब रहा है, और दोनों के बीच उसके भीतर मन का बंटाव है। लड़ना जानना चाहिए, वह भीतर से इतना बंट गया है कि अब उसके भीतर भी चाहता है! अगर उसका मन लड़ना ही न चाहता हो, तो कृष्ण से उसे उत्तर नहीं मालूम पड़ रहा है। ऐसी उसकी दशा है। वह से पूछने की कोई भी जरूरत नहीं है। अपनी उसी दशा का वर्णन कर रहा है। अभी मैं एक गांव में था। एक यवक मेरे पास आए और उन्होंने मुझ से पूछा कि मैं संन्यास लेना चाहता हूं। आपकी क्या सलाह है? मैंने कहा, जब तक मेरी सलाह की जरूरत हो, तब तक तुम प्रश्नः भगवान श्री, आपने अभी संन्यास के बारे में संन्यास मत लेना। क्योंकि संन्यास कोई ऐसी बात नहीं है कि मेरी कुछ कहा। तो यहां जीवन जागृति केंद्र के बुक स्टॉल सलाह से लिया जा सके। जिस दिन तुम्हें ऐसा लगे कि सारी दुनिया पर अभिनव संन्यास योजना नामक एक पुस्तिका भी भी कहे कि संन्यास मत लो, तब भी तुम्हें लेने जैसा लगे, तभी तुम बिक रही है, तो उसमें कहीं लिखा है कि आप गुरु लेना। तो ही संन्यास के फूल में आनंद की सुगंध आ सकेगी, नहीं गवाह बनते हैं, तो वह भी स्पष्ट करें। और साथ अन्यथा नहीं आ सकेगी। में और भी एक सवाल है। अर्जुन और कृष्ण दोनों वह अर्जुन सलाह नहीं मांगता, अगर उसको साफ एक मन हो युद्ध में खड़े हैं, युद्धारंभ में ही गीता के अठारह जाता कि गलत है. चला गया होता। उसने कष्ण से कहा होता कि अध्याय सुनने में अर्जुन कैसे प्रवृत्त हो सकता है और सम्हालो इस रथ को, ले जाओ इन घोड़ों को जहां ले जाना हो, और कृष्ण कैसे गीता-प्रवचन सुनाने को व्यस्त हो सकते जो करना हो करो, मैं जाता हूं। और कृष्ण कहते कि मैं कोई सलाह हैं? सारी सेनाएं भी वहां मौजूद थीं। तो क्या सब देता हूं, तो वह कहता कि बिना मांगी सलाह न दुनिया में कभी मानी | कृष्णार्जुन संवाद, प्रश्नोत्तर सुनने में ही व्यस्त थे? गई न मानी जाती है। अपनी सलाह अपने पास रखें। क्या वह टाइम साइकोलाजिकल टाइम था या कोई नहीं, लेकिन वह सलाह मांग रहा है। सलाह मांग रहा है, वही दूसरा था? बता रहा है कि उसका दोहरा मन है। अभी उसको भी भरोसा है कि कोई सलाह मिल जाए तो युद्ध कर ले; यह भरोसा है उसके भीतर। इसलिए कृष्ण से पूछ रहा है। अगर यह भी पक्का होता कि युद्ध कष्ण से इतनी लंबी चर्चा निश्चित ही प्रश्नवाची है। करना उचित है, तब कृष्ण से कोई सलाह लेने की जरूरत न थी, yा निश्चय ही प्रश्न उठता है। युद्ध के मैदान पर, जहां कि युद्ध की सब तैयारी हो गई थी। योद्धा तैयार हों लड़ने को, जूझने को, वहां ये अठारह अर्जुन डांवाडोल है; अर्जुन बंटा है, इसलिए वह सारे सवाल | | अध्याय, यह इतनी लंबी किताब, अगर कृष्ण ने बिलकुल उस तरह उठा रहा है। उसके सवाल महत्वपूर्ण हैं। और जो आदमी भी थोड़ा | से कही हो, जैसे कि गीता-भक्त दोहराते हैं, तो भी काफी समय विचार करते हैं, उन सबकी जिंदगी में ऐसे सवाल रोज ही उठते लग गया होगा। अगर बिना रुके और बिना अर्जुन की तरफ देखे, हैं—जब मन बंट जाता है, और दोहरे उत्तर एक साथ आने लगते आंख बंद करके बोलते ही चले गए हों, तब भी काफी वक्त लग हैं, और सब निर्णय खो जाते हैं। अर्जुन संशय की अवस्था में है। जाएगा। यह कैसे संभव हुआ होगा? डिसीसिवनेस खो गई है। दो बातें इस संबंध में। निरंतर यह सवाल गूंजता रहा है। इसलिए जब भी आप किसी से सलाह मांगते हैं, तब वह सदा ही इस कुछ लोगों ने तो यह कह दिया कि गीता महाभारत में प्रक्षिप्त है, बात की खबर होती है कि अपने पर भरोसा खो गया है. सेल्फ वह बाद में डाल दी गई है. यह हो नहीं सकता। कछ लोगों ने कहा कांफिडेंस खो गया है। अब अपने से कोई आशा नहीं उत्तर की। | कि वहां संक्षिप्त में बात हुई होगी, फिर उसको विस्तार से बाद में क्योंकि अपने से दो उत्तर एक-से बलपूर्वक आ रहे हैं, एक-सी | कवि ने फैला दिया है। एम्फेसिस लेकर आ रहे हैं। दोनों में तय करना मुश्किल है। कभी दोनों ही बातें मेरे लिए सही नहीं हैं। मेरे लिए तो गीता घटी है, एक ठीक, कभी दूसरा ठीक मालूम पड़ता है। तभी आदमी सलाह और वैसी ही घटी है जैसी सामने है। लेकिन घटने के क्रम को थोड़ा
SR No.002404
Book TitleGita Darshan Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year1996
Total Pages512
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size22 MB
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