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________________ Im दलीलों के पीछे छिपा ममत्व और हिंसा -Am में लगा है। अपने को ही दो हिस्सों में करके, क्या ठीक, क्या ठीक | | पास होता है, एक लाख आदमी मरेंगे। एक लाख आदमी मरेंगे, यह नहीं, इसका उत्तर-प्रत्युत्तर कर रहा है। विचारशील आदमी चौबीस | सुनकर कुछ भी पता नहीं चलता। एक लाख आदमियों को सामने घंटे अपने भीतर चर्चा कर रहा है स्वयं से ही। खड़ा करिए, खड़े हो जाइए मंच पर, देखिए कि ये एक लाख आदमी वह चर्चा अर्जुन के भीतर चलती रही होगी। समझा-बुझाकर वह मरेंगे! तब इनकी एक लाख पत्नियां भी दिखाई पड़ती हैं, इनके अपने को युद्ध के मैदान पर ले आया है कि नहीं, लड़ना उचित है। लाखों बच्चे भी दिखाई पड़ते हैं। इनकी बूढ़ी मां भी होंगी, इनके पिता लेकिन युद्ध की पूरी स्थिति का उसे पता नहीं था। भी होंगे। इनकी न मालूम क्या-क्या जिम्मेवारियां होंगी। इन एक पिछले महायुद्ध में जिस आदमी ने हिरोशिमा पर एटम बम | लाख को मारने की जिम्मेवारी अगर हिरोशिमा पर बम डालने वाले गिराया, उसे कुछ भी पता नहीं है कि क्या होगा! उसे इतना ही पता | को सामने होती, तो मैं भी सोचता हूं कि वह आदमी कहता, इससे है कि एक बटन दबा देनी है और नीचे एटम गिर जाएगा। उसे यह | मैं मर जाना पसंद करूंगा; यह आज्ञा मैं नहीं मानता। उसके सामने भी पता नहीं है कि इस एटम से एक लाख आदमी मरेंगे। उसे कुछ | भी सवाल उठता, इनको मारना है, क्या नौकरी के लिए? भी पता नहीं है। उसे सिर्फ एक आर्डर है, एक आज्ञा है, जो उसे पूरी | अर्जुन को सवाल उठा; सामने था सब चित्र। उसे सब दिखाई करनी है। और आज्ञा यह है कि उसे जाकर हवाई जहाज से एक बटन | | पड़ने लगा, ये विधवाएं रोती-बिलखती दिखाई पड़ने लगीं। इनमें दबा देनी है। हिरोशिमा के ऊपर वह बटन दबाकर लौट आया। | न मालूम कितने उसके प्रियजन थे, उनकी विधवाएं होंगी, उनके . जैसे सारी दुनिया को पता चला, ऐसे ही उसको भी पता चला | | बच्चे तड़फेंगे, रोएंगे। यह सब लाशों से भर जाएगा मैदान। यह कि एक लाख आदमी मर गए हैं। फिर उसकी नींद हराम हो गई। इतना साफ उसे दिखाई पड़ा कि अपने को समझा-बुझाकर लाया फिर वह आदमी रात-दिन लाखों मुर्दे देखने लगा। उसके प्राण | था कि लड़ना उचित है, वह सब डांवाडोल हो गया। उसके दूसरे थरथराने लगे, कंपने लगे। उसके हाथ-पैर में कंपन होने लगा। मन ने कहना शुरू किया कि यह तू क्या करने जा रहा है! यह तो फिर तो अंततः उसने हमले करने शुरू कर दिए अपने पर; नाड़ी पाप होगा। इससे बड़ा पाप और क्या हो सकता है? और इसलिए काट डाली एक दिन, सिर पर हथौड़ी मार ली। फिर तो उसे | कि राज्य मिल जाए, और इसलिए कि धन मिल जाए, और इसलिए पागलखाने में रखना पड़ा। फिर तो उसने दूसरों पर भी हमले शुरू | कि थोड़ा सुख मिल जाए, इन सबको मारने की तेरी तैयारी है? कर दिए। फिर तो उसे जंजीरों में रखना पड़ा। उसकी नींद बिलकुल | निश्चित ही वह विचारशील आदमी रहा होगा। उसके मन ने चली गई। और वह आदमी एक ही अपराध की ग्लानि से भर गया, | | इनकार करना शुरू कर दिया। लेकिन इनकार में दूसरा मन भीतर गिल्ट एक ही उसको पकड़ गई कि मैंने लाख आदमी मारे हैं। बैठा हुआ है। और वह दूसरा मन भी बोल रहा है कि अगर कोई लेकिन उसे कोई पता नहीं था। रेशनलाइजेशन मिल जाए, अगर मिल जाए कि नहीं, इसमें कोई अब जो हमारी यद्ध की व्यवस्था है. बिलकल इनामन है। अब | हर्ज नहीं है; यह उचित है बिलकुल, यह औचित्य मालूम पड़ जाए, उसमें पता नहीं चलता, मारने वाले को भी पता नहीं चलता कि वह | तो वह अपने को इकट्ठा कर ले, एकजुट कर ले, युद्ध में उतर जाए। लाख आदमियों की मौत का बटन दबा रहा है। लेकिन महाभारत | कृष्ण से पूछते वक्त अर्जुन को भी पता नहीं है कि उत्तर क्या में स्थिति और थी, सब चीजें सामने थीं। युद्ध सीधा मानवीय था, | | मिलेगा? और कृष्ण से पूछते वक्त अर्जुन को भी साफ नहीं है कि ह्यूमन था। आमने-सामने सब खड़े थे। अर्जुन देख सकता था रथ | | स्थिति बाद में क्या बनेगी? कृष्ण जैसे आदमी प्रिडिक्टेबल नहीं पर खड़ा होकर कि क्या होगा परिणाम! उसे दिखाई पड़ने लगा, होते। कृष्ण जैसे आदमियों के उत्तर निश्चित नहीं होते, रेडीमेड नहीं इनमें फलां मित्र है, वह मरेगा, उसके छोटे बच्चे हैं घर पर। | होते। कृष्ण जैसे आदमी के साथ पक्का नहीं है कि वे क्या कहेंगे! ___ ध्यान रहे, युद्ध अब जो है, वह इनह्यूमन हो गया है, अमानवीय | लेकिन अर्जुन के साथ पक्का है कि वह दो बातें चाह रहा है। या हो गया है। इसलिए अब बड़ा खतरा है। क्योंकि लड़ने वाले को तो यह सिद्ध हो जाए कि यह युद्ध उचित है, नीतिसम्मत है, धार्मिक भी साफ पता नहीं चलता कि क्या होगा! जो हो रहा है, बिलकुल है, लाभ होगा, कल्याण होगा, श्रेयस मिलेगा, इस लोक में, अंधेरे में हो रहा है। और जो आदमी तय करते हैं उसको, उनके परलोक में सुख मिलेगा, तो वह युद्ध में कूद जाएगा। और अगर पास भी फिगर होते हैं, आदमी नहीं होते हैं, आंकड़े होते हैं। उनके | यह सिद्ध हो जाए कि नहीं हो सकता, तो युद्ध से भाग जाए। उसके
SR No.002404
Book TitleGita Darshan Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year1996
Total Pages512
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size22 MB
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