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________________ - गीता दर्शन भाग-1 में आ सकता है, जब आपको अध्यात्म का अनुभव हो जाए। तब है, वहां किसी समाधान की क्या जरूरत है? आप उपनिषद में पढ़कर कह सकते हैं कि ठीक है, ऐसा मैंने भी | | अध्यात्म स्वयं समाधान है। इसलिए अध्यात्म के द्वार का नाम जाना है। तो उपनिषद जो है, वह गवाही बन सकता है, विटनेस हो | हमने रखा है समाधि। सकता है। लेकिन जब आप जान लें, तब। समाधि का मतलब है, यहां से समाधान शुरू होता है, यहां से और मजा यह है कि जब आप जान लें, तो उपनिषद की गवाही | | अब समस्याएं नहीं होंगी। समाधि का मतलब है, यहां से अब की कोई जरूरत नहीं होती। आप ही जानते हैं, तो आप जो कहते | | समाधान शुरू होता है, अब समस्या नहीं; अब आगे प्रश्न नहीं हैं, वही उपनिषद हो जाता है। होंगे; अब आगे प्रश्न का कोई उपाय नहीं है। दरवाजे का नाम तो उपनिषद जो है, वह ज्यादा से ज्यादा गवाही बन सकता है | | समाधि रखा है। इसका मतलब यह है कि दरवाजे पर आ गए, अब सिद्ध के लिए। और सिद्ध के लिए कोई गवाही की जरूरत नहीं है। | इसके पार समाधान का जगत है। वहां समाधान ही समाधान होंगे, गीता साधक के लिए उपयोगी हो सकती है। सिद्ध के किसी काम | | वहां अब कोई समस्या नहीं होगी। लेकिन समाधि के द्वार तक बड़ी की गीता नहीं है। लेकिन असली सवाल तो साधक के लिए है। | समस्याएं होंगी। और वे सब समस्याएं मानसिक हैं। और साधक का असली सवाल आध्यात्मिक नहीं है। अगर ठीक से समझें, तो मतलब है, दि माइंड इज़ दि प्राब्लम, अर्जुन का असली सवाल आध्यात्मिक नहीं है। अर्जुन का मन ही समस्या है। जिस दिन मन नहीं है, उस दिन कोई समस्या नहीं असली सवाल मानसिक है, साइकोलाजिकल है। उसकी समस्या | | है। और अध्यात्म का मतलब है, वह अनुभव, जहां मन नहीं है। ही मानसिक है। इसलिए अगर कोई यह कहे कि उसकी समस्या | इसलिए मैं जब गीता को मनस-शास्त्र कहता हूं, तो अधिकतम तो मानसिक है और कष्ण उसका आध्यात्मिक हल कर रहे हैं. तो | | जो शास्त्र के संबंध में कहा जा सकता है, दि मैग्जिमम, वह मैं कह उन दोनों के बीच फिर कोई कम्युनिकेशन नहीं हो सकता। जहां | | रहा हूं। उससे आगे कहा नहीं जा सकता। और जो लोग उसे समस्या है, वहीं समाधान को होना चाहिए, तभी सार्थक होगा। आध्यात्मिक बनाएंगे, वे पिटवा देंगे, वे उसे फिंकवा देंगे। क्योंकि अर्जुन की समस्या मानसिक है, उसकी समस्या आध्यात्मिक नहीं | अध्यात्म की कोई समस्या नहीं है किसी की, सबकी समस्या मन है। उसका उलझाव मानसिक है। की है। . __ अब यह बड़े मजे की बात है, आध्यात्मिक समस्या होती ही और जब मैं कहता हूं, कृष्ण को मैं कहता हूं मनोविज्ञान का नहीं। जहां अध्यात्म है, वहां समस्या नहीं है। और जहां तक पहला उदघोषक, तो अधिकतम जो कहा जा सकता है, वह मैं कह समस्या है, वहां तक अध्यात्म नहीं है। मामला ठीक ऐसा ही है, | रहा हूं। हां! मनःसंश्लेषक, आत्मा का कोई संश्लेषण नहीं होता। जैसे कि मेरे घर में अंधेरा है और मैं आप से कहूं, अंधेरा है। आप | सारा खेल मन का है। सारा उपद्रव मन का है, मन के पार न कोई कहें कि मैं दीया ले जाकर देखता हं. कहां है। और आप दीया ले उपद्रव है. न कोई समस्या है। इसलिए मन के पार को कोई शास्त्र नहीं जाएं और अंधेरे को मैं न बता पाऊं। आप कहें, बताओ, कहां है? | | है। सब गुरु-शिष्य मन तक हैं, मन के पार कोई गुरु-शिष्य नहीं अब मैं दीया ले आया, अंधेरा कहां है? अब मैं मुश्किल में पड़ | है। मन के पार न अर्जुन है, न कृष्ण हैं। मन के पार जो है, उसका जाऊंगा, तो मैं आपसे कहूं कि कृपा कर दीया बाहर रखकर आइए। | कोई नाम नहीं है। सब मन के भीतर की सारी बात है। और इसलिए आप कहें कि दीया बाहर रख आऊंगा, तो अंधेरे को देखूगा कैसे? |गीता बहुत विशिष्ट है। . क्योंकि रोशनी चाहिए देखने के लिए। तो फिर एक ही बात मैं आप आध्यात्मिक वक्तव्य बहत हैं, कीमती हैं। लेकिन वक्तव्य हैं, से कहूंगा कि फिर अंधेरा नहीं देखा जा सकता, क्योंकि जहां रोशनी | | बेयर स्टेटमेंट्स हैं। एक आदमी कहता है, ऐसा है। लेकिन इससे है, वहां अंधेरा नहीं है और जहां अंधेरा है, वहां रोशनी नहीं है। कोई हल नहीं होता। हमारी समस्याएं किसी और तल पर हैं। हमारी और इन दोनों के बीच कोई कम्युनिकेशन नहीं है। मुसीबतें किसी और तल पर हैं। उस तल पर ही बात होनी चाहिए। आध्यात्मिक समस्या जैसी कोई समस्या होती ही नहीं। सब कृष्ण ने ठीक उस तल से बात की है, जा समस्याएं मानसिक हैं। अध्यात्म समस्या नहीं, समाधान है। जहां अपने तल से बात करें, तो गीता अध्यात्म-शास्त्र होती। लेकिन तब अध्यात्म है, वहां कोई समस्या नहीं है। और जहां कोई समस्या नहीं | अर्जुन को नहीं समझाया जा सकता था। अर्जुन कहता, माफ करें, किष्ण д6
SR No.002404
Book TitleGita Darshan Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year1996
Total Pages512
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size22 MB
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