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________________ - गीता दर्शन भाग-1-AM वक्तव्य बोल रहा है। डबल, दोहरे वक्तव्य बोल रहा है। बोल कुछ से यह साफ न हो जाए कि यह-यह नर्क का मार्ग है, तब तक यह और रहा है, चाह कुछ और रहा है। है कुछ और, कह कुछ और | साफ नहीं हो पाता है कि स्वर्ग का मार्ग क्या है। रहा है। उसकी दुविधा कहीं और गहरे में है, प्रकट कहीं और कर भौतिक सुख, आध्यात्मिक सुख तक पहुंचाने में एक निषेधात्मक रहा है। चेतावनी का, निगेटिव चेतावनी का काम करते हैं। बार-बार हम इसे हमें समझकर चलना है, तभी हम कृष्ण के उत्तरों को समझ | | खोजते हैं भौतिक सुख को और बार-बार असफल होते हैं। सकेंगे। जब तक हम अर्जुन के प्रश्नों की दुविधा और अर्जुन के | बार-बार चाहते हैं और बार-बार नहीं पाते हैं। बार-बार आकांक्षा प्रश्नों का उलझाव न समझ लें, तब तक कृष्ण के उत्तरों की गहराई करते हैं और बार-बार वापस गिर जाते हैं। और कृष्ण के उत्तरों के सुलझाव को समझना मुश्किल है। यूनानी कथाओं में सिसिफस की कथा है। कामू ने उस पर एक | किताब लिखी है, दि मिथ आफ सिसिफस। सिसिफस को सजा दी है देवताओं ने कि वह एक पत्थर को खींचकर पहाड़ के शिखर प्रश्न : भगवान श्री, स्वजनों की हत्या में अर्जुन ने जो | तक ले जाए। और सजा का दूसरा हिस्सा यह है कि जैसे ही वह न च श्रेयोऽनुपश्यामि कहा, वहां वह प्रेयस से स्पष्टतः शिखर पर पहुंचेगा-पसीने से लथपथ, हांफता, थका, पत्थर को दूर ही रहता है। क्या केवल भौतिक उपयोग का | घसीटता-वैसे ही पत्थर उसके हाथ से छूटकर वापस खड्ड में गिर संदर्भ है? और यदि ऐसा है, तो वह सच्चा आस्तिक | जाएगा। फिर वह नीचे जाए, फिर पत्थर को खींचे और चोटी तक कैसे बनेगा? ले जाए। और फिर यही होगा. और फिर-फिर यही होता रहेगा। | अब यह सजा है। और यह इटरनिटी तक होता रहेगा। यह अंत तक होता रहेगा। अनंत तक होता रहेगा। र्जुन जहां है, वहां भौतिक सुख से ही संबंध हो सकता | | अब वह सिसिफस है कि फिर जाता है खाई में, फिर उठाता है 1 है। आस्तिक का भौतिक सुख से संबंध नहीं होता, | | पत्थर को। जब वह पत्थर को उठाता है, तो फिर इसी आशा से कि ऐसा नहीं है। आस्तिक का भौतिक सख से संबंध इस बार सफल हो जाएगा। अब की बार तो पहंचा ही देगा शिखर होता है, लेकिन जितना ही वह खोजता है, उतना ही पाता है कि पर। बता ही देगा देवताओं को कि बड़ी भूल में थे। देखो, भौतिक सुख असंभावना है। भौतिक सुख की खोज असंभव होती | | सिसिफस ने पत्थर पहुंचा ही दिया। फिर खींचता है। महीनों का है, तभी आध्यात्मिक सुख की खोज शुरू होती है। तो भौतिक सुख | अथक श्रम; किसी तरह टूटता, मरता ऊपर शिखर पर पहुंचता है। का भी आध्यात्मिक सुख की खोज में महत्वपूर्ण कांट्रिब्यूशन है, | पहुंच नहीं पाता कि पत्थर हाथ से छूट जाता है और फिर खाई में उसका बहुत महत्वपूर्ण दान है। सबसे महत्वपूर्ण दान भौतिक सुख | गिर जाता है। फिर सिसिफस उतर आता है। का यही है कि वह अनिवार्य रूप से विषाद में और फ्रस्ट्रेशन में ले आप कहेंगे, बड़ा पागल है। खाई में क्यों नहीं बैठ जाता? जाता है। अगर इतना आपको पता चल गया, तो आपकी जिंदगी में धर्म अब यह बड़े मजे की बात है कि जिंदगी में वे ही सीढ़ियां हमें | | की शुरुआत हो जाएगी। क्योंकि हम सब सिसिफस हैं। कहानी परमात्मा के मंदिर तक नहीं पहुंचातीं, जो परमात्मा के मंदिर से ही अलग-अलग होगी, पहाड़ अलग-अलग होंगे, पत्थर अलगजुड़ी हैं। वे सीढ़ियां भी परमात्मा के मंदिर की सीढ़ियों तक पहुंचाती अलग होंगे, लेकिन सिसिफस हम सब हैं। हम वही काम बार-बार हैं, जो परमात्मा के मंदिर से नहीं जुड़ी हैं। अब यह बड़ी उलटी-सी | | किए चले जाते हैं, बार-बार शिखर से छूटता है पत्थर और खाई मालूम पड़ेगी। स्वर्ग तक पहुंचने में वही सीढ़ी काम नहीं में गिर जाता है। लेकिन बड़ा मजेदार है आदमी का मन, वह आती, जो स्वर्ग से जुड़ी है। उससे भी ज्यादा और उससे भी पहले, बार-बार अपने को समझा लेता है कि कुछ भूल-चूक हो गई इस वह सीढ़ी काम आती है, जो नर्क से जुड़ी है। असल में जब तक बार मालूम होता है। अगली बार सब ठीक कर लेंगे। फिर शुरू कर नर्क की तरफ की यात्रा पूरी तरह से व्यर्थ न हो जाए, तब तक स्वर्ग | | देता है। और ऐसी भूल-चूक अगर एक-दो जन्म में होती हो तो भी की तरफ की कोई यात्रा प्रारंभ नहीं होती। जब तक बहुत स्पष्ट रूप ठीक है। जो जानते हैं, वे कहेंगे, अनंत जन्मों में ऐसा ही, ऐसा ही, बात मालू
SR No.002404
Book TitleGita Darshan Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year1996
Total Pages512
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size22 MB
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