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________________ am+ विषाद और संताप से आत्म-क्रांति की ओर AM खोली और उसने कहा, हे परमात्मा! यदि कोई परमात्मा हो, तो से यानी आत्मभाव से दूर हो जाता है, स्वभाव से बड रसेल क्षमा मांगता है; यदि कोई बड रसेल की आत्मा हो; वियोग होता है। तो गीता के प्रथम अध्याय को क्षमा मांगता है, यदि कोई पाप किए गए हों; क्षमा मांगता है, यदि अर्जुन-विषादयोग कहा गया है, वह कैसे? विषाद क्षमा संभव हो। का योग से क्या संबंध है? या गीता में योग शब्द सारा जीवन हमारा यदि से घिरा है। बड रसेल साफ है, | किस अर्थ में प्रयुक्त किया गया है? ईमानदार है। हम इतने साफ नहीं हैं। अर्जुन भी साफ नहीं है, बहुत कनफ्यूज्ड है, बहुत उलझा हुआ है। चित्त की गांठ उसकी बहत इरछी-तिरछी है। वह कह रहा है. | + षादयोग! योग के बहुत अर्थ हैं। और योग के ऐसे भी सुख तो मिल सकता है, लेकिन यदि अपने न मरें। वह कहता है, पि अर्थ हैं, जो साधारणतः योग से हमारी धारणा है, राज्य कल्याणकारी है मिल जाए तो, यदि अपने न मरें। यह यदि ही ___उसके ठीक विपरीत हैं। यह ठीक ही सवाल है कि उसकी गांठ है। और जो आदमी ऐसा कहता है, उसे—सुख, | | विषाद कैसे योग हो सकता है? आनंद योग हो सकता है; विषाद राज्य, धन, यश-उनका मोह नहीं टूट गया है; उनकी आकांक्षा कैसे योग हो सकता है? . नहीं टूट गई है। उनकी अभीप्सा नहीं टूट गई है। पीछे वह बहुत | ___ लेकिन विषाद इसलिए योग हो सकता है कि वह आनंद का ही तैयार है, सब मिल जाए, लेकिन उसके यदि भी पूरे होने चाहिए। | शीर्षासन करता हुआ रूप है, वह आनंद ही सिर के बल खड़ा है। ___ इसीलिए कृष्ण को निरंतर पूरे समय उसके साथ श्रम करना पड़ आप अपने पैर के बल खड़े हों, तो भी आदमी हैं, और सिर के बल रहा है। वह श्रम उसके सेल्फ-कंट्राडिक्टरी, उसके आत्म-विरोधी | | खड़े हो जाएं, तो भी आदमी हैं। जिसको हम स्वभाव से विपरीत चिंतन के लिए करना पड़ रहा है। क्योंकि पूरे समय यह दिखाई पड़ | जाना कहते हैं, वह भी स्वभाव का उलटा खड़ा हो जाना है, रहा है कि वह जो कह रहा है, वही चाह रहा है। जिससे भाग रहा | इनवर्शन है। जिसको हम विक्षिप्तता कहते हैं, वह भी स्वभाव का है, उसी को मांग रहा है। जिससे बचना चाह रहा है, उसी को | | विकृत हो जाना है, परवर्शन है। लेकिन है स्वभाव ही। आलिंगन कर रहा है। सोने में मिट्टी मिल जाए, तो अशुद्ध सोना ही कहना पड़ता है। अर्जुन की यह दशा ठीक से समझ लेनी चाहिए। ऐसा अर्जुन अशुद्ध है, इसलिए पूछा जा सकता है कि जो अशुद्ध है, उसे सोना हम सबके भीतर है। जिसे हम एक हाथ से धकाते हैं, उसे दूसरे | क्यों कह रहे हैं? लेकिन सोना ही कहना पड़ेगा। अशुद्ध होकर भी हाथ से खींचते रहते हैं। जिसे हम एक हाथ से खींचते हैं. उसे दसरे सोना है। और इसलिए भी सोना कहना पडेगा कि कि अशुद्धि जल से धकाते रहते हैं। एक कदम बाएं चलते हैं, तो तत्काल एक कदम सकती है और सोना वापस सोना हो सकता है। दाएं चल लेते हैं। एक कदम परमात्मा की तरफ जाते हैं, तो एक | विषादयोग इसलिए कह रहे हैं कि विषाद है, विषाद जल सकता कदम तत्काल संसार की तरफ उठा लेते हैं। | है, योग बच सकता है। आनंद की यात्रा हो सकती है। कोई भी यह जो अर्जुन है, ऐसी बैलगाड़ी की तरह है, जिसमें दोनों तरफ | | इतने विषाद को उपलब्ध नहीं हो गया कि स्वरूप को वापस लौट बैल जुते हैं। वह दोनों तरफ खिंच रहा है। वह कह रहा है, सुख तो | | न सके। विषाद की गहरी से गहरी अवस्था में भी स्वरूप तक है, इसलिए मन भागता है। वह कह रहा है, लेकिन अपनों को | | लौटने की पगडंडी शेष है। उस पगडंडी के स्मरण के लिए ही योग मारना पड़ेगा, इसलिए मन लौटता है। यह स्व-विरोध है, स्मरण | रखने योग्य है, क्योंकि अर्जुन की पूरी चित्त-दशा इसी स्व-विरोध | और वह जो विषाद है, वह भी इसीलिए हो रहा है। विषाद क्यों का फैलाव है। | हो रहा है? एक पत्थर को विषाद नहीं होता। नहीं होता, इसलिए कि उसे आनंद भी नहीं हो सकता है। विषाद हो इसलिए रहा है, | वह भी एक गहरे अर्थ में आनंद का स्मरण है। इसलिए विषाद हो प्रश्नः भगवान श्री, विषादग्रस्त अर्जुन के चित्त की रहा है। वह भी इस बात का स्मरण है, गहरे में चेतना कहीं जान दशा हमने देखी। अब विषाद होने से व्यक्ति स्वभाव रही है कि जो मैं हो सकता हूं, वह नहीं हो पा रहा हूं; जो मैं पा 37
SR No.002404
Book TitleGita Darshan Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year1996
Total Pages512
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size22 MB
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