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गीता दर्शन भाग-1 AM
गाण्डीवं संसते हस्तात्त्वक्वैव परिदह्यते । | सुख इस जगत में संभव नहीं है। बड़ा पैराडाक्सिकल, बड़ा उलटा न च शक्नोम्यवस्थातुं भ्रमतीव च मे मनः । । ३०।।
दिखाई पड़ता है। जो सोचता है. इस जगत में सख मिल सकता है. निमित्तानि च पश्यामि विपरीतानि केशव। | कुछ शर्ते भर पूरी हो जाएं, वह केवल नए-नए दुख खोजता चला न च श्रेयोऽनुपश्यामि हत्वा स्वजनमाहवे ।।३१।। | जाता है। असल में हर दुख को खोजना हो तो सुख बनाकर ही
नकांक्षे विजयं कृष्ण न च राज्यं सुखानि च। | खोजना पड़ता है। दुख के खोजने की तरकीब ही यही है कि उसे किं नो राज्येन गोविन्द किं भोगैजीवितेन वा ।। ३२ ।। | सुख मानकर खोजना पड़ता है। जब तक खोजते हैं तब तक सुख तथा हाथ से गांडीव धनुष गिरता है और त्वचा भी बहुत | मालूम पड़ता है, जब मिल जाता है तब दुख मालूम पड़ता है। जलती है तथा मेरा मन भ्रमित-सा हो रहा है। इसलिए मैं | लेकिन मिल जाने के बाद कोई उपाय नहीं है। खड़ा रहने को भी समर्थ नहीं हूं। और हे केशव! लक्षणों __ अर्जुन अगर कहे कि सुख संभव कहां है? संसार में कल्याण को भी विपरीत ही देखता हूं तथा युद्ध में अपने कुल को संभव कहां है? राज्य में प्रयोजन कहां है? अगर वह ऐसा कहे तो मारकर कल्याण भी नहीं देखता। हे कृष्ण! मैं विजय को उसका प्रश्न बेशर्त है, अनकंडीशनल है। तब उत्तर बिलकल और नहीं चाहता और राज्य तथा सुखों को भी नहीं चाहता। होता। लेकिन वह यह कह रहा है, अपनों को मारकर सुख कैसे
हे गोविंद! हमें राज्य से क्या प्रयोजन है, मिलेगा? सुख तो मिल सकता है, अपने न मारे जाएं तो सुख लेने अथवा भोगों से और जीवन से भी क्या प्रयोजन है। | को वह तैयार है। कल्याण तो हो सकता है, राज्य में प्रयोजन भी हो
सकता है, लेकिन अपने न मारे जाएं तो ही राज्य में प्रयोजन हो
सकता है। 27 र्जुन बड़ी सशर्त बात कह रहा है; बहुत कंडीशनल, | । राज्य व्यर्थ है, सुख व्यर्थ है, महावीर या बुद्ध को जैसा खयाल 1 शर्त से बंधा उसका वक्तव्य है। सुख के भ्रम से वह | | हुआ, अर्जुन को वैसा खयाल नहीं है। अर्जुन के सारे वक्तव्य
मुक्त नहीं हुआ है। लेकिन वह कह रहा है कि अपनों उसकी विरोधी मनोदशा की सूचना देते हैं। वह जिस चीज को कह को मारकर जो सुख मिलेगा, ऐसे सुख से क्या प्रयोजन? अपनों रहा है, बेकार है, उस चीज को बेकार जान नहीं रहा है। वह जिस ' को मारकर जो राज्य मिलेगा, ऐसे राज्य से क्या प्रयोजन? अगर चीज को कह रहा है, क्या प्रयोजन? क्या फायदा? वह पूरे वक्त अपनों को बिना मारे राज्य मिल जाए, और अपनों को बिना मारे मन में जान रहा है कि फायदा है, प्रयोजन है, सिर्फ उसकी शर्त पूरी सुख मिल जाए, तो अर्जुन लेने को तैयार है। सुख मिल सकता है, होनी चाहिए। उसका यदि अगर पूरा हो जाए, इफ अगर पूरी हो इसमें उसे कोई संदेह नहीं है। कल्याण हो सकता है, इसमें उसे कोई जाए, तो सुख मिलेगा, इसमें उसे कोई भी संदेह नहीं है। संदेह नहीं है। अपनों को मारने में उसे संदेह है।
___ मैंने एक मजाक सुनी है। मैंने सुना है कि बऍड रसेल मर रहा इस मनोदशा को समझ लेना उपयोगी है। हम सब भी ऐसे ही | | है। मजाक ही है। एक पादरी यह खबर सुनकर कि बड रसेल मर शों में सोचते हैं। वेहेंगर ने एक किताब लिखी है, दि फिलासफी | रहा है, भागा हुआ पहुंच गया कि हो सकता है यह जीवनभर का आफ ऐज इफ। जैसे सारा जीवन ही यदि पर खड़ा है। यदि ऐसा हो | | निष्णात नास्तिक, शायद मरते वक्त मौत से डर जाए और भगवान तो सुख मिल सकेगा, यदि ऐसा न हो तो सख नहीं मिल सकेगा। को स्मरण कर ले। पर उस पादरी की मरते हुए बर्टेड रसेल के पास यदि ऐसा हो तो कल्याण हो सकेगा, यदि ऐसा न हो तो कल्याण | भी जाने की सामने हिम्मत नहीं पड़ती है। वह भीड़ में, जो मित्रों की नहीं हो सकेगा। लेकिन एक बात निश्चित है कि सुख मिल सकता इकट्ठी हो गई थी, पीछे डरा हुआ खड़ा है कि कोई मौका अगर मिल है, शर्त पूरी होनी चाहिए। और मजे की बात यही है कि जिसकी | | जाए, तो वह बडूंड रसेल को कह दे कि अभी भी माफी मांग लो। शर्त है, उसे सुख कभी नहीं मिल सकता है। क्यों? क्योंकि जिसे | | और तभी बड रसेल ने करवट बदली और कहा, हे परमात्मा! सुख का भ्रम नहीं टूटा, डिसइलूजनमेंट नहीं हुआ, जिसका सुख | | तो उसने सोचा, यह ठीक मौका है। इसके मुंह से भी परमात्मा का का मोह भंग नहीं हुआ, उसे सुख नहीं मिल सकता है। | नाम निकला है! तो वह पास गया और उसने कहा कि ठीक अवसर
सुख मिलता है केवल उसे, जो इस सत्य को जान लेता है कि है, अभी भी क्षमा मांग लो परमात्मा से। तो बर्टेड रसेल ने आंख