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________________ mm गीता दर्शन भाग-1 - इंट्रिंजिकली इंपासिबल है। यह कृष्ण के व्यक्तित्व में बात आ ही | | मरती हैं, मारने से कोई इंद्रिय कभी नहीं मरती। इसलिए मैं कहता नहीं सकती। जो आदमी बांसरी बजा रहा है. जो आदमी रात है कि रूपांतरण के लिए यह वक्तव्य है। मार चांद-तारों के नीचे नाच रहा है, इस आदमी के मुंह से इंद्रियों को | | को। और जिस इंद्रिय को मारेंगे, वही इंद्रिय सबसे ज्यादा सशक्त कुचलने की बात समझ में नहीं आती। यह मोर-मुकुट लगाकर | | हो जाएगी। सच तो यह है कि जो इंद्रिय मरती है, उसी इंद्रिय पर खड़ा हुआ आदमी, यह प्रेम से भरपूर व्यक्तित्व, यह जीवन को | | सारी इंद्रियों की शक्ति दौड़कर लग जाती है। नियम है हमारे शरीर उसकी सर्वांगता में स्वीकार करने वाला चित्त, यह मारने की बात! का एक कि शरीर का जो हिस्सा हम कमजोर कर लेते हैं, पूरा शरीर इसके मारने की बात का मतलब कुछ और है। नहीं तो, यह उसे सहारा देने लगता है। देना ही चाहिए। कमजोर को सहारा निरंतर अर्थ लिया गया है। मिलना ही चाहिए। और अर्थ हम वही ले लेते हैं, जो हम लेना चाहते हैं। इंद्रियां | | शरीर की जिस इंद्रिय से आप लड़ेंगे और कमजोर करेंगे, पूरा दुख में ले जाती हैं, यह सच है। इसलिए जो दुख में ले जाता है, | शरीर उस इंद्रिय को सहायता देगा और वही इंद्रिय आपके भीतर सब उसको हम मार डालें वायलेंटली, यह हमारा मन होता है। जो दुख | कुछ हो जाएगी। यानी ऐसा हो जाएगा कि अगर आप कामवासना में ले जाता है, काट डालो। आंख रूप पर मोहित करती है, फोड़ से लड़े, तो आपके भीतर कामवासना की इंद्रिय ही आपका व्यक्तित्व दो। कान संगीत में डांवाडोल होते हैं, फोड़ दो। लग सकता है | हो जाएगी। सब कुछ वही हो जाएगी। अगर आप लोभ से लड़े, तर्कयुक्त। ठीक है, जो दुख में ले जाता है, उसे मिटा दो। लेकिन | क्रोध से लड़े, ईर्ष्या से लड़े-जिससे भी आप लड़े-तो उसका जो हमें पता नहीं कि जो दुख में ले जाता है, उसमें भी हमारी ऊर्जा छिपी | | केंद्र आपके भीतर है, वही सबसे ज्यादा सेंसिटिव, संवेदनशील हो है; जो दुख में ले जाता है, उसमें भी हम छिपे हैं। उस छिपे हुए को | | जाएगा और आप उसी में घिरे हुए जीएंगे। भी अगर हमने कुचल दिया, तो हम ही कुचल जाएंगे। ___ मैंने अभी एक...थियोडर रैक; एक बहुत बड़े मनोवैज्ञानिक ने इसलिए त्यागी-तपस्वी-तथाकथित, दि सोकाल्ड-जिसको | अपने संस्मरण लिखे। उसने एक बहुत अदभुत बात लिखी है। उसने पता नहीं है, वह आमतौर से खुद के साथ हिंसा करता रहता है। लिखा है, योरोप में ऐसे छोटे-छोटे द्वीप हैं। एक छोटा द्वीप है, जिस कहीं कोई रूपांतरण नहीं होता है, सिर्फ हिंसा होती है। और अगर | | पर अब तक किसी स्त्री ने पैर नहीं रखा। क्योंकि वह कैथोलिक हम दूसरे के साथ हिंसा करें, तो हम अदालत में पहुंचा दिए जाएं। | मोनेस्ट्री है; कैथोलिक ईसाइयों के साधु सिर्फ उस द्वीप पर रहते हैं। और अपने साथ करें...तो अभी तक दुनिया में इतना न्याय नहीं है छोटा-सा दस-बारह मील के घेरे का द्वीप है। पिछले पांच सौ वर्ष कि हम उस आदमी को अदालत में पहुंचाएं, जो अपने साथ हिंसा | से एक भी स्त्री उस पर पैर नहीं रख सकी है, क्योंकि स्त्री को मनाही करता है। है उस द्वीप पर आने की। और उस द्वीप पर जो पुरुष एक दफा उतर ___ अब यह बड़े मजे की बात है! आपकी छाती पर छुरा रख दं, तो | | जाता है साधना के लिए, वह फिर जिंदा हालत में वहां से नहीं लौट अदालत। और अपनी छाती पर छुरा रख लूं, तो सम्मान है! सकता। पांच सौ वर्ष से शुद्ध पुरुषों का समाज है। पागलपन है। छुरा दोनों हालत में छाती पर रखा जाता है। इससे | लेकिन थियोडर रैक ने लिखा है कि एक बड़ी अजीब बात वहां क्या फर्क पड़ता है कि वह किसकी छाती है। आंखें आपकी फोड़ | दिखाई पड़ती है और वह यह कि उस द्वीप के जो भी निवासी हैं, दूं, तो मुझे सम्मान मिलना चाहिए न, क्योंकि मैंने आपकी इंद्रियां जो भी साधु वहां तपश्चर्या कर रहे हैं, उनके स्वप्न जितने स्त्रियों मारने में सहायता दी! आत्मज्ञान का रास्ता दे रहा है। लेकिन कोई | | से भरे हुए हैं, उतने दुनिया में किसी भी, पृथ्वी के किसी कोने में राजी न होगा। लेकिन अपनी फोड़ लूं, तो आप ही मेरे पैर छूने किसी के भी स्वप्न उतने भरे हुए नहीं हैं। और इससे भी बड़े मजे आएंगे कि यह आदमी परम तपस्वी है, इसने आंखें फोड़ ली! की बात लिखी है और वह यह, वह यह लिखी है कि उन पुरुषों में लेकिन अगर आपकी आंखें फोड़ना अपराध है, तो मेरी आंखें से कुछ पुरुष स्त्रियों जैसे चलते हैं और स्त्रियों जैसे बोलते हैं। फोड़ना कैसे पुण्य हो जाएगा? | उसमें उसने कारण खोजा है कि जिंदगी पोलर है। अगर स्त्रियां - इंद्रियों के विरोध में यह वक्तव्य नहीं है, इंद्रियों के रूपांतरण के | | बिलकुल न होंगी, तो कुछ पुरुष स्त्रियों का एक्ट करने लगेंगे और लिए यह वक्तव्य है। और मजा यह है कि रूपांतरण से ही इंद्रियां कुछ पुरुष उन स्त्रीरूपी पुरुषों के साथ प्रेम के एक्ट करने लगेंगे। 466
SR No.002404
Book TitleGita Darshan Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year1996
Total Pages512
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size22 MB
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