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________________ Om गीता दर्शन भाग-1 AM कहीं न कहीं भिन्न हैं। अगर आप बिलकुल भिन्न नहीं हैं, तो | सौंदर्य भी है जगत में, रंग-बिरंगापन भी है जगत में। व्यक्तित्व नहीं है, आत्मा नहीं है। मनुष्य के पास जब तक आत्मा | वर्ण की व्यवस्था इस रंग-बिरंगेपन को, इस वैविध्य को है, तब तक वर्ण का सत्य झुठलाया नहीं जा सकता है। हम इनकार | | अंगीकार करती है। ऊंच-नीच की बात गलत है। और जो लोग कर सकते हैं। ऊंच-नीच बनाए रखने के लिए वर्ण की व्यवस्था का समर्थन कर एक आदमी कह सकता है कि हम ग्रेविटेशन को नहीं मानते, | | रहे हैं, वे लोग खतरनाक हैं। लेकिन मैं वह बात नहीं कह रहा हूं। जमीन की कशिश को नहीं मानते। मत मानिए! इससे सिर्फ आपकी | मैं कुछ और ही बात कह रहा हूं। मैं यह कह रहा हूं, आदमी चार टांग टटेगी। इससे ग्रेविटेशन का सत्य गलत नहीं होता। एक प्रकार के हैं। हम चाहे मानें और चाहे हम न मानें। . आदमी कह सकता है कि हम आक्सीजन के सत्य को नहीं मानते; आज अमेरिका में तो कोई वर्ण व्यवस्था नहीं है। लेकिन सभी हम श्वास लेंगे नहीं। तो ठीक है, मत लीजिए। इससे सिर्फ आप | | लोग वैज्ञानिक नहीं हैं। और वैज्ञानिक शुद्ध ब्राह्मण है। आइंस्टीन मरेंगे, आक्सीजन नहीं मरती। जीवन के नियम को इनकार किया में और ब्राह्मण में कोई भी फर्क नहीं है। आज पश्चिम का वैज्ञानिक जा सकता है, लेकिन इससे जीवन का नियम नष्ट नहीं होता, सिर्फ ठीक वही है, जैसा ब्राह्मण था। सारी खोज उसकी सत्य की है, और हम नष्ट होते हैं। सत्य की खोज के लिए वह सब तकलीफें झेलने को राजी है। हां, जीवन के नियम पर हम झूठी व्यवस्थाएं भी खड़ी कर सकते | | लेकिन सभी लोग सत्य की खोज के लिए उत्सुक नहीं हैं। राकफेलर हैं। और तब झूठी व्यवस्थाओं के कारण जीवन का नियम भी ब्राह्मण नहीं है। और न मार्गन ब्राह्मण है। और न रथचाइल्ड ब्राह्मण बदनाम हो जाता है। हमने जो हाइरेरिकल व्यवस्था निर्मित की है। वे वैश्य हैं शुद्धतम, शुद्धतम वैश्य हैं। धन ही उनकी खोज है। ऊंचे-नीचे की, उससे बदनामी पैदा हुई; उससे वर्ण की व्यवस्था धन ही उनकी आकांक्षा है, धन ही सब कुछ है। लेकिन एक बहुत दूषित हुई। उससे वर्ण की व्यवस्था गंदी हुई, कंडेम्ड हुई। आज वह बड़ा वर्ग है सारी पृथ्वी पर, जो लड़ने के लिए उत्सुक और आतुर कंडेम्ड है. लेकिन वर्ण का सत्य कभी भी कंडेम्ड नहीं है। है। उसकी लड़ाई के ढंग भले बदल जाएं, लेकिन वह लड़ने क और मैं आपसे कहना चाहूंगा कि यह पहली सदी है, जब लिए उत्सुक और आतुर है। पश्चिम के मनोविज्ञान ने पुनः इस बात को साफ करना शुरू कर नीत्से ने कहा है कि जब कभी मैं रास्ते पर सिपाहियों की संगीने दिया है कि दो व्यक्तियों के बीच पूरी समानता, पूरी एकता, पूरा धूप में चमकती हुई देखता हूं, और जब कभी मैं सैनिकों के जूतों एक-सा पन कभी भी सिद्ध नहीं किया जा सकता। और दुर्भाग्य का | की आवाज सड़क पर लयबद्ध सुनता हूं, तो मुझे लगता है, इससे होगा वह दिन, जिस दिन विज्ञान सब आदमियों को बराबर कर श्रेष्ठ कोई भी संगीत नहीं है। अब यह जो नीत्से है, इसको मोजार्ट देगा, क्योंकि उसी दिन आदमी की आत्मा नष्ट हो जाएगी। | बेकार है, बीथोवन बेकार है; इसके लिए वीणा बेकार है। यह इसलिए वर्ण के सत्य में कहीं भी अंतर नहीं पड़ा है; पड़ेगा भी कहता है, जब चमकती हुई संगीनें सुबह के सूरज में दिखाई पड़ती नहीं; पड़ना भी नहीं चाहिए; पड़ने भी नहीं देना। लड़ना भी पड़ेगा । हैं, तो उनकी चमक में जो गीत है, इससे सुंदर कोई गीत नहीं है। आज नहीं कल आदमी को, कि हम अलग हैं, भिन्न हैं, और हमारी | और जब सैनिक रास्ते पर चलते हैं, और उनके जूतों की लयबद्ध भिन्नता कायम रहनी चाहिए। हालांकि राजनीति भिन्नता को तोड़ आवाज में जो भाव है, वह किसी संगीत में नहीं है। यह आदमी जो डालने की पूरी चेष्टा में लगी है। | भाषा बोल रहा है, वह ब्राह्मण की नहीं है। यह आदमी जो भाषा सब भिन्नता टूट जाए और आदमी मशीन जैसा व्यवहार करे, तो बोल रहा है, वह शूद्र की नहीं है। यह आदमी जो भाषा बोल रहा राजनीतिज्ञों के लिए बड़ी सरल और सुलभ हो जाएगी बात। तब है, वह क्षत्रिय की है। यह रहेगा। इस आदमी को हम इनकार करेंगे, डिक्टेटोरियल हुआ जा सकता है, तब तानाशाही लाई जा सकती । तो यह बदला लेगा। है, तब टोटेलिटेरियन हुआ जा सकता है। तब व्यक्तियों की कोई किसी आदमी को इनकार नहीं किया जा सकता। प्रत्येक आदमी चिंता करने की जरूरत नहीं है, व्यक्ति हैं ही नहीं। लेकिन जब तक को उसके टाइप के फुलफिलमेंट के लिए, उसके व्यक्तित्व के रूप व्यक्ति भिन्न हैं, तभी तक लोकतंत्र है जगत में। जब तक व्यक्तियों के अनुसार, अनुकूल, समाज में सुविधा होनी चाहिए। शूद्र भी हैं। में आत्मा है, तभी तक रस भी है जगत में, वैविध्य भी है जगत में, कई दफा शूद्र अगर दूसरे घर में पैदा हो जाए, तो बहाने खोजकर 3901
SR No.002404
Book TitleGita Darshan Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year1996
Total Pages512
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size22 MB
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