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- पूर्व की जीवन-कलाः आश्रम प्रणाली -AM
होने का क्षण आ सकता है।
ढलते हैं। हां, तब बाप नहीं ढालता, तब सड़क की होटल ढाल कृष्ण यह कह रहे हैं कि और हजारों-लाखों लोग अर्जुन, तुझे | देती है; तब मां नहीं ढालती, लेकिन फिल्म अभिनेत्री ढाल देती है; देखकर जीते हैं। अर्जुन साधारण व्यक्ति नहीं है। अर्जुन असाधारण | तब गीता नहीं ढालती, लेकिन सुबह का अखबार ढाल देता है। व्यक्तियों में से है। उस सदी के असाधारण लोगों में से है। अर्जुन और हम किसी बच्चे को जिंदगी के सारे इंप्रेशन से, प्रभावों से मुक्त को लोग देखेंगे। अर्जुन जो करेगा, वह अनेकों के लिए प्रमाण हो | कैसे रख सकते हैं? पचास साल में मनोवैज्ञानिकों ने जो कहा, तो जाएगा। अर्जुन जैसा जीएगा, वैसा करोड़ों के लिए अनुकरणीय हो सारी दुनिया के मां-बाप, कम से कम शिक्षित मां-बाप, बहुत डर जाएगा। तो कृष्ण कहते हैं, तुझे देखकर जो लाखों लोग जीते हैं, | गए। जितनी जिस मुल्क में शिक्षा बढ़ी, मां-बाप बहुत डर गए। अगर तू भागता है, वे भी जीवन से भाग जाएंगे। अगर तू पलायन एक जमाना था कि बच्चे घर में घुसते थे, तो डरते हुए घुसते थे। करता है, वे भी पलायन कर जाएंगे। अगर तू विरक्त होता है, वे आज अमेरिका में बाप घर में घुसता है, तो बच्चों से डरा हुआ घुसता भी विरक्त हो जाएंगे।
है कि कोई मनोवैज्ञानिक भल न हो जाए कि कहीं बच्चा बिगडन तो अर्जुन, उचित ही है कि तू अनासक्त हो जा, तो शायद उनमें जाए, न्यूरोटिक न हो जाए, कहीं पागल न हो जाए, कहीं दिमाग भी अनासक्ति का खयाल पहुंचे। तेरी अनासक्ति की सुगंध उनके | | खराब न हो जाए, कहीं कुछ गड़बड़ न हो जाए, तो बाप डरा हुआ भी नासापुटों को पकड़ ले। तेरी अनासक्ति का संगीत, हो सकता घुसता है घर में! मां डरती है अपने बच्चों से कुछ कहने में कि कहीं है, उनके भी हृदय के किसी कोने की वीणा को झंकृत कर दे। तेरी | कोई ऐसी चीज न पैदा हो जाए कि कांप्लेक्स पैदा हो जाए दिमाग में, अनासक्ति का आनंद, हो सकता है, उनके भीतर भी अनासक्ति के | ग्रंथि हो जाए; कहीं बीमार न हो जाए। सब डरे हुए हैं। फूल के खिलने की संभावना बन जाए। तो तू उन पर ध्यान रख। लेकिन इससे हुआ क्या? अठारहवीं सदी और उन्नीसवीं सदी में यह सिर्फ तेरा ही सवाल नहीं है। क्योंकि तू सामान्यजन नहीं है, तू | जो बच्चे थे, उनसे बेहतर बच्चे हम पैदा नहीं कर पाए। बच्चे तो असामान्य है; तुझे देखकर न मालूम कितने लोग चलते, उठते और ढाले ही गए, लेकिन मां-बाप जो कि बहुत प्रेम से ढालते, मां-बाप बैठते हैं। तू उनका भी खयाल कर। और अगर तू अनासक्त हो | जो कि बहुत केअर और कंसर्न से ढालते, उन्होंने नहीं ढाला। सके, तो उन सबके लिए भी तेरा जीवन मंगलदायी हो सकता है। | | लेकिन बाजार ढाल रहा है उनको, अखबार ढाल रहे हैं, पत्रिकाएं
इस संबंध में दो बातें अंत में आपसे और कहूं। इधर पिछले | ढाल रही हैं, डिटेक्टिव्स ढाल रहे हैं, फिल्में ढाल रही हैं। पचास-साठ वर्षों में पश्चिम के मनोवैज्ञानिकों ने कुछ इस तरह की | सारी दुनिया, आज दुनिया का बाजार, एक जमाना था कि नब्बे भ्रांति पैदा की-उनको भी अब भ्रांति मालूम पड़ने लगी जिसमें | | प्रतिशत स्त्रियों से चलता था। आज दुनिया का बाजार पचास उन्होंने मां-बाप को, शिक्षकों को, सबको समझाया कि बच्चों को | | प्रतिशत बच्चों से चल रहा है। और बच्चों को परसुएड किया जा इमिटेशन से बचाओ। यह बात थोड़ी दूर तक सच थी। और थोड़ी | रहा है। क्योंकि कोई भी नई चीज पकड़ानी है, तो पिता को पकड़ाना दूर तक जो बातें सच होती हैं, कभी-कभी खतरनाक होती हैं, | जरा मुश्किल पड़ती है; बच्चे को पकड़ाना आसान पड़ती है; वह क्योंकि थोड़ी दूर के बाद वे सच नहीं होतीं। इसमें थोड़ी दूर तक | जल्दी पकड़ लेता है। और उसके घर में कोई शिष्ट, कोई बात सच थी कि बच्चों को हम ढालें न, उनको पैटर्नाइज न करें। अनुशासन नहीं है, इसलिए वह बाहर से जो भी सीखने मिलता है, उनको ऐसा न करें कि एक ढांचा दे दें और जबर्दस्ती ढालकर रख | | उसे सीख लेता है। अगर आज सारी दुनिया में बच्चे बगावती हैं, दें। तो पश्चिम के मनोवैज्ञानिकों ने बहत जोर से जोर दिया कि तो उसका कल कारण इतना है केआटिक हैं. अराजक हैं. तो बच्चों को ढालो मत; बच्चों को कोई दिशा मत दो; बच्चों को कोई | | उसका कुल कारण इतना है कि हम उनके लिए कोई भी आधार, डिसिप्लिन, कोई अनुशासन मत दो; क्योंकि उससे बच्चों की | कोई भी अनुशासन, कोई भी दृष्टि, कोई भी दिशा देने में समर्थ
आत्मा का जो प्रामाणिक रूप है, वह प्रकट नहीं हो सकेगा। बच्चे नहीं रहे हैं। और मां-बाप डरते हैं कि कहीं बच्चे उनकी नकल न इमिटेटिव हो जाएंगे।
करने लगे। कृष्णमूर्ति ने भी इस पर भारी जोर दिया। लेकिन यह बात थोड़ी |
| लेकिन बच्चे नकल करेंगे ही। कभी लाख में एकाध बच्चा होता दूर तक ही सच है। क्योंकि अगर बच्चे न ढाले जाएं, तो भी बच्चे | है, जो नकल नहीं करता और खुद जीता है। लेकिन वह कभी होता
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