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गीता दर्शन भाग-14
खयाल में ले लें।
न तो आसक्त साक्षी हो सकता है, विटनेस हो सकता है, न विरक्त साक्षी हो सकता है, क्योंकि दोनों का राग है। राग शब्द आपने कभी खयाल किया कि इसका क्या मतलब होता है ? इसका मतलब होता है, रंग, कलर। राग का मतलब होता है, रंग। दोनों के चित्त रंगे हुए हैं उसी से, जिस पर उनकी नजर है। आसक्त का चित्त रंगा हुआ है रुपए से मित्र की तरह । विरक्त का चित्त रंगा हुआ है रुपए से शत्रु की तरह। अनासक्त का चित्त रंगा हुआ नहीं है। रुपया उस पर कोई प्रतिबिंब ही नहीं बनाता; रुपया उसको रंगता ही नहीं। रुपया वहां और अनासक्त यहां। उन दोनों के बीच डिस्टेंस होता है। अर्थात अनासक्त साक्षी होता है। वह देखता है कि यह स्त्री है, यह रुपया है; बात खतम हो गई। मैं मैं हूं; यह रुपया है; यह मकान है; यह स्त्री है; यह पुरुष है।
बुद्ध एक जंगल में बैठे हैं। रात है पूर्णिमा की। गांव से कुछ मनचले युवक एक वेश्या को लेकर चले आए हैं। पूर्णिमा की रात, झील का तट । उन्होंने आकर खूब शराब पी ली। उस वेश्या को नग्न कर दिया, उसके वस्त्र छिपा दिए। जब वे शराब में काफी बेहोश हो गए, तो वह वेश्या निकल भागी। लेकिन नग्न, कपड़े तो उसे मिले नहीं । जब आधी रात बीते उन्हें थोड़ा होश आया, तब उन्हें खयाल हुआ कि हम जिसको मानकर कि है, राग-रंग कर रहे हैं, वह नदारद है । वे उस वेश्या को मानकर बातें किए जा रहे थे, गीत गाए जा रहे थे, नाचे चले जा रहे थे! आधी रात गए उन्हें पता चला कि हम बड़ी भूल में पड़े हैं, वह स्त्री तो नदारद है। वह यहां है नहीं। बड़ी मुश्किल में पड़े, अब उसे कहां खोजें! निकले।
थोड़ी ही दूर एक वृक्ष के नीचे बुद्ध बैठे हैं। रात है, पूर्णिमा का चांद है। वह देख रहे हैं चांद को । यहां तक रास्ता एक ही है, इसलिए स्त्री यहां से तो निकली ही है। तो उन्होंने जाकर हिलाया और कहा कि सुनो, एक नग्न स्त्री, सुंदर वेश्या यहां से भागती हुई गई है, जरूर तुमने देखी होगी । बुद्ध ने कहा, तुम मुझे बड़ी मुश्किल में डालते हो, क्योंकि आदमी को वही दिखाई पड़ता है, जो वह देखना चाहता है। उन्होंने कहा, अंधे तो हो नहीं। आंख तो है ही। यहां से एक सुंदर स्त्री निकली है, हजारों की भीड़ में भी दिखाई पड़ जाए, ऐसी स्त्री है। यहां तो जंगल का सन्नाटा है।
उन्होंने कहा, कोई निकला जरूर कोई निकला जरूर, क्योंकि मैं देखता था चांद को, तो कोई छाया बीच से गुजरी। लेकिन स्त्री थी या पुरुष था, कहना मुश्किल है। क्योंकि जब तक मेरा पुरुष
बहुत आतुर था स्त्रियों के लिए, तभी तक फर्क भी कर पाता था। | अब फर्क करने का कोई कारण भी तो नहीं रहा है। और सुंदर थी या असुंदर, यह तो और भी कठिन सवाल है। क्योंकि जब से अपने | को जाना, तब से न कुछ सुंदर रहा, न कुछ असुंदर रहा। चीजें जैसी हैं, हैं । कुछ को लोग सुंदर कहते, कुछ को लोग असुंदर कहते । वह उनकी अपनी पसंदगियों के ढंग हैं। क्योंकि एक ही चीज को कोई सुंदर कहता है और कोई असुंदर कहता है। जब से अपनी कोई पसंदगी ही न रही, कोई नापसंदगी न रही, तो न कुछ सुंदर रहा, न कुछ असुंदर रहा।
उन्होंने कहा, हम भी कहां के पागल से उलझ गए हैं। हम खोजें। | इस आदमी से कुछ सहारा न मिलेगा। बुद्ध खूब हंसने लगे और | उन्होंने कहा, कब तक उसे खोजते रहोगे ? अच्छा हो कि इतनी अच्छी रात है, अपने को ही खोजो। और वह मिल भी जाएगी, तो | क्या मिलेगा? अपने को खोज लो, तो शायद कुछ मिल भी जाए।
पता नहीं, उन्होंने सुना या नहीं सुना ! नहीं सुना होगा। आदमी बहुत बहरा है । दिखाई पड़ता है, सुनता हुआ, सुनता नहीं है। | दिखाई पड़ता है, देखता हुआ, देखता नहीं है। दिखाई पड़ता है, | समझता हुआ, समझता नहीं है। यह जो बुद्ध ने कहा, यह अनासक्त की चित्तदशा का गुण है। देखते हुए भी भेद नहीं करता, क्या सुंदर है, क्या असुंदर है। करते हुआ भी भेद नहीं करता, जीते हुए भी भेद नहीं करता, क्या पकडूं, क्या छोडूं ! क्या लाभ है, क्या हानि है ! साक्षी की तरह, एक विटनेस की तरह, एक गवाह की तरह जिंदगी में चलता है।
राम अमेरिका गए। एक जगह से निकल रहे थे, कुछ लोगों ने पत्थर फेंके और गालियां दीं। लौटकर - बहुत हंसते हुए वापस लौटे - मित्रों से कहने लगे, आज तो बड़ा मजा आ गया। राम को | आज बड़ी गालियां पड़ीं! कुछ लोगों ने पत्थर भी मारे । पिटोगे, गालियां खाओगे। लोग कहने लगे, किस की बात कर रहे हैं आप ! | तो उन्होंने कहा, इस राम की बात कर रहा हूं। इस राम की, अपनी छाती की तरफ हाथ करके कहा, इस राम की बात कर रहा हूं। आज इन पर काफी गालियां पड़ीं, आज इन पर काफी पत्थर पड़े। लोगों ने कहा, आप पर ही पड़े न ? राम ने कहा, नहीं, हम तो देखते थे। हम पर पड़े नहीं, हम देखते थे। हम साक्षी थे, हम सिर्फ गवाह थे। | हमने देखा कि पड़ रहे हैं। हमने देखा कि गालियां दी जा रही हैं। | तीन थे वहां गाली देने वाले थे; जिसको गाली दी जा रही थीं, वह था; और एक और भी था, मैं भी था वहां, जो देख रहा था।
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