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________________ Sim+ पूर्व की जीवन-कलाः आश्रम प्रणाली HAM दोनों से अलग। | करता; यद्यपि जो कर्म आसक्त करता, विरक्त उससे उलटे कर्म अनासक्ति इन दोनों का मध्यबिंदु है, दि मिडिल प्वाइंट। ठीक | | करता। अगर आसक्त धन कमाने का काम करता, तो विरक्त धन इन दोनों के बीच में, जहां न तो अट्रैक्शन काम करता और न | छोड़ने का, त्यागने का काम करता। अगर आसक्त पदों का लोलुप रिपल्सन काम करता है। बहुत अदभुत बिंदु है अनासक्ति का, जहां | | होता और पदों की सीढ़ियां चढ़ने के लिए दीवाना होता, तो विरक्त से न तो हम किसी चीज के लिए आतुर होकर पागल होते हैं और | | पदों से भागने के लिए आतुर और उत्सुक होता, सीढ़ियां उतरने न आतुर होकर बचने के लिए पागल होते हैं। नहीं, जहां हम किसी | को। आसक्त और विरक्त दोनों कर्म में रत होते, लेकिन दोनों के चीज के प्रति कोई रुख ही नहीं लेते; जहां किसी चीज के प्रति हमारी | रत होने का ढंग विपरीत होता, एक-दूसरे की तरफ पीठ किए होते। कोई दुष्टि ही नहीं रहती: हम बस साक्षी ही होते हैं। अनासक्त का अनासक्त क्या करेगा? अर्थ है, विरक्त भी नहीं, आसक्त भी नहीं। अनासक्त न तो आसक्त की तरह कर्म करता और न विरक्त की विरक्त होना बहुत आसान है, आसक्ति का ही दूसरा हिस्सा है, तरह। अनासक्त के कर्म करने की क्वालिटी बदल जाती है। इसे इसलिए। और जिस चीज में भी हमारी आसक्ति होती है, उसमें ही समझ लें। आज नहीं कल हमारी विरक्ति अपने आप हो जाती है। आज एक विरक्त का काम करने का रुख, दिशा बदल जाती है, उलटी हो मकान में बहुत आसक्ति है, कल वह मिल जाएगा, परसों उसमें | जाती है। भीतरी चित्त जरा भी नहीं बदलता, कर्म की दिशा प्रतिकूल रहेंगे, दस दिन बाद भूल जाएगा, आसक्ति खो जाएगी। फिर हो जाती है। अगर आसक्त सीधा खड़ा है, तो विरक्त शीर्षासन धीरे-धीरे विरक्ति आ जाएगी। जिस दिन आपको कोई दूसरा मकान लगाकर खड़ा हो जाता है। और कोई फर्क नहीं होता, भीतर आदमी दिख जाएगा आसक्ति को पकड़ने के लिए, उसी दिन इस मकान वही का वही होता है। क्वालिटी जरा भी नहीं बदलती, गुण जरा से विरक्ति हो जाएगी। जिस चीज से भी हम आकर्षित होते हैं, भी नहीं बदलता, भीतर आदमी वही का वही होता है। किसी न किसी दिन उससे विकर्षित होते हैं। जो चीज भी हमें | | एक आदमी है, उसके सामने रुपया ले जाओ, तो उसके मुंह में खींचती है, किसी दिन हम उससे हटते हैं। आकर्षण और विकर्षण, | | पानी आने लगता है। एक दूसरा आदमी है, उसके पास रुपया ले अट्रैक्शन और रिपल्सन एक ही प्रक्रिया के दो हिस्से हैं। अनासक्ति | जाओ, तो वह आंख बंद कर लेता है और राम-राम जपने लगता इस पूरी प्रक्रिया के पार है, ट्रांसेंडेंट है। इन दोनों प्रक्रियाओं के | | है। ये दोनों एक-से आदमी हैं। रुपया दोनों के लिए सिग्नीफिकेद ऊपर, अलग, अतीत है। है, महत्वपूर्ण है। हां, एक के लिए महत्वपूर्ण है, लार टपकती है। अनासक्त का मतलब कि न हमें अब खींचती है चीज, न हमें | | एक के लिए महत्वपूर्ण है, घबड़ाकर आंख बंद हो जाती है। लेकिन हटाती है; न हमें बुलाती है, न हमें भगाती है। हम खड़े रह गए। | दोनों शीर्षासन एक-दूसरे के प्रति कर रहे हैं। लेकिन रुपए के बुद्ध ने इस अनासक्ति के लिए उपेक्षा शब्द का प्रयोग किया है। मामले में दोनों का गुणधर्म एक है। दोनों रुपए में बहुत उत्सुक अर्थ यही है, न इस तरफ, न उस तरफ; दोनों तरफ से उपेक्षा है। हैं—एक पक्ष में, एक विपक्ष में; एक मित्र की तरह, एक शत्रु की न आसक्ति, न विरक्ति, दोनों तरफ से इंडिफरेंस है। न तो धन | | तरह-लेकिन रुपये के प्रति उपेक्षा नहीं है। खींचता, न धन भगाता। कृष्ण ने अनासक्ति का प्रयोग किया है, | | एक है, जो स्त्री के पीछे भागता; एक है कि स्त्री दिखी कि महावीर ने वीतराग शब्द का प्रयोग किया है। राग, विराग, | भागा। इन दोनों में बुनियादी गुणात्मक फर्क नहीं है। इनके कृत्य में वीतराग। महावीर ने वीतराग शब्द का प्रयोग किया है, जहां न राग फर्क है दिशा का। इनके चित्त में फर्क नहीं है। इनके चित्त का बिंदु, हो, न विराग हो, वीतराग हो। दोनों के पार हो जाए। बुद्ध कहते | इनके चित्त का आब्जेक्ट, इनके चित्त का विषय एक ही है, वही हैं, जहां न आकर्षण, न जहां विकर्षण; उपेक्षा हो, इंडिफरेंस हो; कामवासना है। एक पक्ष में, एक विपक्ष में। दोनों बराबर हो जाएं। कृष्ण कहते हैं, अनासक्ति, जहां न आसक्ति . ___ अनासक्त का गुणधर्म बदलता है। अनासक्त दोनों काम कर हो, न विरक्ति हो; दोनों ही न रह जाएं। सकता है। जो विरक्त करता है, वह भी कर सकता है: जो लेकिन आसक्त भी कर्म करता और विरक्त भी कर्म करता। आसक्त करता है. वह भी कर सकता है। लेकिन करने वाला चित्त अनासक्त क्या करेगा? आसक्त भी कर्म करता, विरक्त भी कर्म बिलकुल और ढंग का होता है। उस चित्त का क्या फर्क है, वह 377
SR No.002404
Book TitleGita Darshan Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year1996
Total Pages512
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size22 MB
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