SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 404
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ Sam गीता दर्शन भाग-1 -IN इसलिए तौलें किससे! तौलने का कोई उपाय नहीं है। हां, एक ही | अनैतिक है। है भी, क्योंकि बाप भी फिर बचकाना है। बेटा शादी उपाय है। एक आदमी एक स्त्री के साथ संबंधित होता है; नहीं सुख करके आ जाए, वह बच्चे पैदा करे और बाप भी बच्चे पैदा कर रहा पाता, तो सोचता है कि शायद दूसरी स्त्री से संबंधित होने में सुख | | हो उस घर में, बहुत शर्म की बात है। बेटा क्या सोचेगा? बाप मिले। तौलने का एक ही उपाय है, इस स्त्री से नहीं मिलता, तो चाइल्डिश है, बाप बचकाना है, प्रौढ़ नहीं है। अभी तक वासना से. दूसरी से मिले; दूसरी से नहीं मिलता, तीसरी से मिले। इस पुरुष | काम से मुक्त नहीं हो पाया! से नहीं मिलता, दूसरे पुरुष से मिले; दूसरे से नहीं मिलता, तीसरे | इसलिए इस मुल्क का एक खयाल था कि जिस घर में बेटा से मिले। तौलने का और कोई उपाय नहीं है। व्यक्ति बदलो, तो | | विवाहित हो जाए, उसी दिन बाप समझे कि वानप्रस्थ हो गया, मां शायद मिल जाए। लेकिन अवस्था बदलो, तो शायद मिल जाए, समझे कि वानप्रस्थ हो गया। वानप्रस्थ का मतलब समझते हैं? इसकी हमारे मन में कोई कल्पना पैदा नहीं होती। क्योंकि और जिसका मुंह जंगल की तरफ हो गया। अभी जंगल चले नहीं जाना किसी अवस्था का हमें पता ही नहीं है। | है। सिर्फ टुवर्ड्स दि फारेस्ट, अभी सिर्फ मुंह हो गया जंगल की इसलिए वासना के जगत में यात्रा करने के पहले ब्रह्मचर्य का तरफ वानप्रस्थ। जंगल की तरफ प्रस्थान की तैयारी अब उसे कर अनुभव अनिवार्य है, अन्यथा वासना मरने तक, कब्र तक नहीं लेनी है। अभी अगर वह जंगल चला जाए, तो क्रम में बाधा पड़ेगी। छोड़ेगी पीछा। क्योंकि तुलना का कोई उपाय नहीं रह जाएगा। और बच्चे अभी ब्रह्मचर्य के आश्रम से घर लौट रहे हैं। इस बाप ने ब्रह्मचर्य के सुख को, शांति को, आनंद को जिसने जाना; ब्रह्मचर्य | पच्चीस साल में जिंदगी का जो अनुभव लिया है, वह उन बच्चों की शक्ति को, ब्रह्मचर्य की ऊर्जा को, ब्रह्मचर्य के आह्लाद को | | को देना जरूरी है। अन्यथा वह अनुभव उन्हें कहां से मिलेगा। इसने जिसने जाना और ब्रह्मचर्य जिसके प्राणों में नृत्य किया, संगीत बजा | | जिंदगी से जो जाना है, वह बच्चों को संभाल देना जरूरी है। इसने ब्रह्मचर्य का, उसके सामने जब वासना की दुनिया आएगी, तो वह | जिंदगी से जो पाया है, वह बच्चों को सौंप देना जरूरी है। घर की, तौल सकेगा कि बहत फीकी है। फीकी भी कहना बेकार है, उसमें ज्ञान की, अनुभव की सारी चाबियां बच्चों को दे देनी हैं। अब यह कुछ बहुत स्वाद नहीं है। अत्यंत साधारण है। तब वह इसे कर्तव्य | वानप्रस्थ हो जाएगा, बच्चों को देता जाएगा। की भांति निभा पाएगा। ठीक है; जगत, परमात्मा, जीवन का क्रम, । और पचहत्तर साल की उम्र में तो इसके बच्चों के बच्चे जंगल ' ठीक है। वह पैदा किया गया है, वह किसी को पैदा कर जाए। वह | से आने शुरू हो जाएंगे। तब तक इसके बच्चे पचास साल के हो जगह भर दे। लेकिन विक्षिप्त होकर कामवासना उसे पकड़ने वाली | गए होंगे। अब तो वे भी वानप्रस्थ होने के करीब आ गए। अब यह नहीं है। उनसे नमस्कार ले लेगा और जंगल चला जाएगा। अब यह इसलिए इस देश के शास्त्र कह सके कि जो व्यक्ति संतान के | संन्यासी हो जाएगा। यह जीवन की संध्या आ गई। संसार को देखने लिए ही संभोग में उतरता है, वह यद्यपि पुराने अर्थ में ब्रह्मचारी नहीं | की यात्रा पूरी हुई। सुबह हुई, दोपहर हुई, अब सांझ होने लगी। रहा, लेकिन फिर भी ब्रह्मचारी है। संतान के लिए ही जो सूरज लौटने लगा अपने घर वापस। अब ये पच्चीस साल इसके काम-संभोग में उतरता है, वह भी ब्रह्मचारी है, यह इस देश के | | प्रभु-स्मरण के हैं। शास्त्र कह सके। यह कह सके इसीलिए कि कामवासना के लिए | और बड़े मजे की बात, ये पच्चीस साल, ये वानप्रस्थ के बाद सीधा कोई कामवासना में नहीं उतरता, जो एक बार ब्रह्मचर्य को | संन्यास के आश्रम में गया हुआ व्यक्ति ही, जो बच्चे समाज से जान ले। उसके लिए कामवासना सिर्फ कर्तव्य, एक ड्यूटी है, | आएंगे, उनके लिए गुरु का काम कर देगा। और जिस समाज में जिसे निभा देना और मुक्त हो जाना है—पच्चीस वर्ष। पचास वर्ष | || बूढ़े गुरु न हों, उस समाज में गुरु होते ही नहीं। आज विद्यार्थी और की उम्र में उसके बच्चे आश्रम से लौटने के योग्य होने लगेंगे। गुरु के बीच दो-चार साल का भी फासला होता है। कभी-कभी पचास वर्ष में उसके बच्चे आश्रम से लौटने के योग्य होने लगेंगे। नहीं भी होता, और कभी-कभी विद्यार्थी भी उम्र में ज्यादा हो जाता उसके बच्चे पच्चीस वर्ष के होने के करीब आ जाएंगे। | है। अब अगर विद्यार्थी उम्र में ज्यादा हो गुरु से, तो वे संबंध निर्मित इस देश ने एक और गहरी बात खोजी और वह यह कि एक ही | | नहीं हो सकते, जो पचहत्तर साल जीवन की सारी अनुभूतियों को घर में बाप भी संभोग करे और बेटा भी संभोग करे, यह बहुत | लिए गए आदमी के साथ छोटे बच्चों के हो सकते थे। 374
SR No.002404
Book TitleGita Darshan Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year1996
Total Pages512
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size22 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy