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________________ 20+ समर्पित जीवन का विज्ञान AAM सारी दुनिया में हमने वृक्ष काट डाले। जब हमने वृक्ष काट डाले, हूं-जो इस मुल्क ने अकेले हिम्मत की है कहने की—वह यह है तब हमको पता चला कि हम मुश्किल में पड़ गए। क्योंकि वृक्ष कट कि अगर हम भी ठंडे हो जाएं, तो सूरज भी कुछ गवां देगा। अब गए, तो बादल अब वर्षा नहीं करते। लेकिन हमें पहले पता नहीं यह जरा कठिन पड़ता है समझना। लेकिन यह भी समझ में आ था कि वृक्ष काटने से बादल वर्षा नहीं करेंगे। हमने कहा, क्या सकेगा। अगर जीवन इंटररिलेटेड है, अगर पति के मरने से पत्नी करना है! जमीन साफ करो। लेकिन वे वृक्ष बादलों को निमंत्रित | में कुछ कम हो जाता है, तो पत्नी के मरने से पति में भी कुछ कम करते थे। अब वे वृक्ष निमंत्रण नहीं भेजते बादलों को। अब बादल | | होगा। अगर सूरज के मिटने से पृथ्वी ठंडी हो जाती है, तो पृथ्वी के चले जाते हैं, उनको कोई रोकता नहीं। ठंडे होने से सूरज में भी कुछ टूटेगा और बिखरेगा। जीवन संयुक्त ___ अभी हमने जब चांद पर पहली दफा अपना अंतरिक्ष यान भेजा, है, जुड़ा हुआ है। तो हमें पता नहीं कि हमने क्या-क्या किया है। वह पता चलने में | । तो जब कृष्ण कहते हैं, अन्न से बनता है मनुष्य, तो वे यह कह शायद पचास वर्ष लगेंगे। क्योंकि पृथ्वी के दो सौ मील के बाद, | | रहे हैं कि पदार्थ और चेतना में कोई बुनियादी भेद नहीं है, दोनों एक जहां हवा समाप्त होती है, वहां एक बड़ी पर्त-अनेक-अनेक ही चीज हैं। पदार्थ से ही बनती है आत्मा। इसका मतलब सिर्फ गैसेस की बनी हुई पर्त, जो सदा से पृथ्वी को घेरे हुए है—उसकी | | इतना है कि पदार्थ भी पदार्थ नहीं है। वह भी छिपी हुई, लेटेंट एक मोटी पर्त, एक दीवार की तरह मोटी पर्त पूरी पृथ्वी को घेरे हुए | आत्मा है। वह भी गुप्त आत्मा है। आप अन्न खाते हैं, वह खून है। उस पर्त के कारण सूरज की वही किरणें पृथ्वी तक आ पाती हैं, | | बनता है, हड्डियां बनता है, चेतना बनता है, होश बनता है, बुद्धि जो जीवन के लिए हितकर हैं। और वे किरणें बाहर रह जाती हैं, जो | | बनता है। निश्चित ही जो अन्न बनता है, वह उसमें छिपा है। वह हितकर नहीं हैं। लेकिन अब वैज्ञानिकों को पता चला है कि जितने भी जीवन है। कहना चाहिए वह भी बिल्ट इन जी जीवन है उसके हमने अंतरिक्ष यान भेजे हैं, जहां-जहां से हमने भेजे हैं, वहां-वहां भीतर, जो आपमें आकर फैल जाता और खिल जाता है। विंडोज पैदा हो गई हैं। जहां-जहां से वह पर्त तोड़कर यान गया है, अन्न आता है वर्षा से, वर्षा आती है यज्ञ से। क्यों? यज्ञ का यहां वहां खिड़कियां पैदा हो गई हैं। उन खिड़कियों से सूरज की वे क्या अर्थ है? किरणें भी भीतर आने लगीं, जो कि जीवन के लिए अत्यंत | । यहां कृष्ण यह कह रहे हैं कि जब मनुष्य अच्छे काम करता है खतरनाक हैं। और जब मनुष्य परमात्मा पर समर्पित होकर जीता है, तो परमात्मा कृष्ण यह कह रहे हैं इस छोटे-से सूत्र में कि जीवन एक संयुक्त | | उसकी फिक्र करता है सब तरफ से। पूरी प्रकृति उसकी चिंता करती घटना है। आकाश में बादल भी चलता है, तो वह भी हमारे प्राणों । है सब तरफ से। बादल वर्षा डालते हैं, वृक्ष फलों से भर जाते हैं, की धड़कन से जुड़ा है। सूरज भी चलता है, तो वह भी हमारे हृदय नदियां बहती हैं, सूरज चमकता है, जीवन में एक मौज और एक के किसी हिस्से से संयुक्त है। अभी सूरज ठंडा हो जाए, तो हम खुशी और एक रंग और एक सुगंध होती है। और जब आदमी बुरा यहीं सब ठंडे हो जाएंगे। दस करोड़ मील दूर है सूरज। हमको पता होना शुरू होता है और आदमी जब अहंकार से भरता है और ही नहीं चलेगा कि कब ठंडा हो गया। क्योंकि वहां से कोई अखबार आदमी कहने लगता है, मैं ही सब कुछ हूं, कोई परमात्मा नहीं, तब भी नहीं निकलता! वहां से कोई सूचना भी नहीं आएगी। पर हमको जीवन सब तरफ से विकृत होना शुरू हो जाता है। यह भी पता नहीं चलेगा कि वह ठंडा हो गया, क्योंकि उसके ठंडे यज्ञ का अर्थ है, परमात्मा को समर्पित लोग, परमात्मा को होने के ठीक आठ मिनट बाद हम भी ठंडे हो जाएंगे। ठीक आठ | समर्पित कर्मी जीवन को ऐसा सामंजस्य, ऐसी हार्मनी देते हैं कि मिनट बाद। आठ मिनट बाद–इसलिए इतनी देर लगेगी-कि | | सारी प्रकृति उनके लिए अपना सब कुछ लुटाने को तैयार हो जाती आठ मिनट तक उसकी पुरानी किरणें हमारे काम आती रहेंगी, जो | | है। अब इसको भी मैं एक छोटा-सा उदाहरण देकर आपके खयाल चल चुकी हैं उसके ठंडे होने के पहले। आठ मिनट बाद हम ठंडे | | में लाना चाहूं, तो आए, शायद आ जाए। हो जाएंगे। आक्सफोर्ड युनिवर्सिटी में एक छोटी-सी प्रयोगशाला है, इससे उलटा भी सच है। अगर सूरज से हम जुड़े हैं और अगर डिलाबार। वहां वे कुछ बहुत गहरे प्रयोग कर रहे हैं। उसमें से एक सूरज के बिना हम ठंडे हो जाएंगे, तब दूसरी बात आपसे कहता प्रयोग मैं आपको याद दिलाना चाहता हूं। वह प्रयोग है कि उन्होंने 363
SR No.002404
Book TitleGita Darshan Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year1996
Total Pages512
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size22 MB
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