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________________ - गीता दर्शन भाग-14 साधारणतः, साधारणतः तो यज्ञ से बचे हुए अन्न को अगर | कभी देते हैं, तो तभी देते हैं, जब वह व्यर्थ होता है हमारे लिए। हम शाब्दिक अर्थों में लें, जैसा कि भूल से लिया जाता | जब वह हमारे लिए किसी अर्थ का नहीं होता और सिर्फ बोझ बनता रहा है, तो जो यज्ञ की प्रक्रिया है, सबको बांट देने के | है, तब हम देते हैं। ठीक है, न देने से तो अच्छा ही है; लेकिन बाद; यज्ञ में जो भी है सबको बांट देने के बाद, जो बच रहा, उसे निकृष्ट दान है। न देने से तो अच्छा है, अदान से तो बेहतर है; लेने वाला श्रेष्ठ पुरुष है। सबको बांट देने के बाद जो बच रहा! | | क्योंकि हो सकता है, किसी के काम पड़ जाए। लेकिन दान से जो ___ जो पहले ही ले ले और फिर जो बच रहे उसे बांट दे, वह निकृष्ट व्यक्तित्व का फूल खिलता है, वह इससे खिलने वाला नहीं है। पुरुष है। घर में मेहमान आए, तो पहले घर के लोग खा लें और क्योंकि आप सिर्फ कचरा फेंक रहे हैं। आप कुछ भी मूल्यवान नहीं फिर मेहमान को जो बच रहे, दे दें, तो वह निकृष्ट परिवार है। दे रहे हैं। देने में आपके भीतर कहीं भी आपको अपने लिए कोई मेहमान को पहले दे दें, फिर जो बच रहे, जो बच रहे; अगर कुछ कटौती नहीं करनी पड़ रही है। देने में आपके भीतर कहीं भी कोई भी न बच रहे, तो उसी को भोजन मानकर सो जाएं, तो वह श्रेष्ठ प्रेम, कहीं भी कोई प्रेम नहीं है। यह अर्थ है। पुरुष है, वह श्रेष्ठ परिवार है। ___ और अगर कोई व्यक्ति इसका स्मरण रखे, तो धीरे-धीरे हैरान सामान्य अर्थ तो यह है। लेकिन और गहरे में जिस यज्ञ का मैं | होगा कि जो हम सोचते हैं कि बचा लेंगे और उससे आनंद पाएंगे, अर्थ कर रहा हूं, ऐसा कर्म, जो परमात्मा को समर्पित है। ऐसे कर्म हमें पता ही नहीं है। एक बार उसे देकर भी देखें और हैरान होंगे कि से जो भी उपलब्ध हो, पहले बांट देना; और जब कोई लेने वाला | चीजें बचाने से उतना आनंद कभी भी नहीं देतीं, जितना देने से दे न बचे, तो जो बच रहे, उसको अपने लिए स्वीकार कर लेना, तो जाती हैं। मगर वह हमें पता नहीं चलता, क्योंकि हमने कभी उसका ऐसा पुरुष श्रेष्ठ है। जो भी मिले, उसे पहले बांट देना। कोई प्रयोग नहीं किया है जीवन में। वह हमारे लिए अपरिचित गली मोहम्मद की जिंदगी में इस सूत्र की सीधी व्याख्या है। और कई | | है, उस रास्ते हम कभी गुजरे नहीं। डा मजेदार....कि कष्ण का सत्र और मोहम्मद के जीवन में इस जीवन में जो भी श्रेष्ठतम अनभव हैं, वे सभी किसी न किसी व्याख्या होती है। जिंदगी इतनी ही रहस्यपूर्ण है। लेकिन हिंदू- | अर्थों में देने से पैदा होते हैं। प्रेम का अनुभव है, वह देने का मुसलमान, जो पागलों के गिरोह हैं, वे नहीं समझ पाते। मोहम्मद | अनुभव है। केवल वे ही लोग प्रेम अनुभव कर पाते हैं, जो दे सकते ने कह रखा था अपनी पत्नी को, अपने परिवार के लोगों को, अपने | | हैं। अन्यथा अनुभव नहीं कर पाते। प्रार्थना का अनुभव है, वह देने मित्रों को, प्रेम करने वालों को कि अगर तुम घर में भोजन बनाओ, का अनुभव है। वे ही लोग अनुभव कर पाते हैं, जो चरणों में अपने तो जहां तक उसकी सुगंध पहुंचे, समझो वहां तक निमंत्रण हो को परमात्मा के दे पाते हैं। एक वैज्ञानिक को एक आनंद की प्रतीति गया। निमंत्रण देने तुम गए नहीं, लेकिन तुम्हारे घर में बने हुए होती है, क्योंकि वह अपने समस्त जीवन को विज्ञान के लिए दे भोजन की सुगंध जहां तक पहुंच गई, वहां तक निमंत्रण हो गया। | पाता है। एक चित्रकार को एक आनंद का अनुभव होता है, क्योंकि उन सबको खबर कर आना कि आ जाओ। | वह अपने समस्त जीवन को कला को दे पाता है। एक संगीतज्ञ को यह जो सुगंध भी पहुंचे, तो निमंत्रण हो जाए! तो पहले उन | | आनंद अनुभव होता है, क्योंकि वह अपना समस्त, सब कुछ सबको खिला देना, फिर बच रहे, तो खुद खा लेना। सारे जीवन के | | संगीत को दे पाता है। जहां भी इस जगत में आनंद का अनुभव है, लिए। जीवन में जो भी मिले, जिसने अपने जीवन को ही यज्ञ बना | वहां पीछे सदा दान खड़ा ही रहता है, चाहे वह दान दिखाई पड़ता लिया, जीवन में जो भी मिले-चाहे ज्ञान, चाहे धन, चाहे अन्न, हो या न दिखाई पड़ता हो। चाहे शक्ति—जो भी जीवन में मिले, उसे पहले बांट देना। और ___ इसलिए कृष्ण कहते हैं, श्रेष्ठ है वह पुरुष, जो पहले बांट देता, जब कोई और लेने वाला न बचे, तो जो आखिरी हिस्सा बच फिर जो बचता है, उसे ही अपना भाग, उसे ही अपना भाग मान जाए-यदि बच जाए तो वह अपने लिए उपयोग कर लेना। | लेता है। जो बच जाता है, उसे ही अपना भाग मान लेता है। लेकिन ऐसा व्यक्तित्व श्रेष्ठ है। सदा ही बहुत बच जाता है उनके पास, जो बहुत देने में समर्थ हैं। ___ लेकिन हमारा सारा व्यक्तित्व निकृष्ट है। अगर कभी हम बांटते और जो बहुत रोकने में समर्थ हैं, उनके पास कभी कुछ भी नहीं हैं, तो तभी बांटते हैं, जब वह हमारे काम का नहीं होता। अगर बचता है। 3581
SR No.002404
Book TitleGita Darshan Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year1996
Total Pages512
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size22 MB
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