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________________ Im+ समर्पित जीवन का विज्ञान -AAM पास इसलिए जो मांगने जाता है, वह अपने हाथ से ही खोने का | मुश्किल मालूम होती है। जब तक मैं बाहर रहता हूं, तब तक तो कारण बन जाता है। मांग का खयाल रहता है। जैसे ही मंदिर में प्रविष्ट होता हूं और तीसरी बात भी खयाल रखें, जब भी हम मांगते हैं, तो हम गलत काली की मूर्ति सामने आती है, तो खुद ही सम्राट हो जाता हूं। ही मांगते हैं। हम सही मांग ही नहीं सकते। हम सही इसलिए नहीं | | उनकी मौजूदगी में मांगने का सवाल ही नहीं उठता; गुंजाइश भी मांग सकते कि हमें सही का कुछ पता ही नहीं है। हम सही इसलिए | नहीं रह जाती। तीसरी बार, और तीसरी बार भी यही हुआ। और नहीं मांग सकते कि हम खुद सही नहीं हैं। और यह और मजे की। रामकृष्ण ने कहा, कैसा है तू! विवेकानंद ने कहा कि आप क्यों मेरी बात है कि जो सही है, उसे मांगना नहीं पड़ता है; क्योंकि जो सही | नाहक परीक्षा ले रहे हैं! मैं जानता हूं कि अगर मांग लूं, तो ये द्वार है, उसे तत्काल मिलना शुरू हो जाता है। जो ठीक है, उस पर | मेरे लिए सदा के लिए बंद हो जाएंगे। संपदा बरसने लगती है जीवन के सब रूपों में। जो गलत है, वही | ये द्वार तो उन्हीं के लिए खुले हैं, जो मांगते नहीं हैं। और फिर वंचित रह जाता है; और वही मांगता है। और उसकी मांग भी गलत | जो उसकी मर्जी! जो ठीक है, वही हो रहा है। जो होना चाहिए, वही ही होगी; वह सही मांग नहीं सकता है। गलत आदमी गलत ही | हो रहा है। उससे अन्यथा चाहने का कोई कारण भी नहीं है। मांग सकता है। । कृष्ण इस सूत्र में कहते हैं कि बिना मांगे, बिना मांगे यज्ञ की एक छोटी-सी घटना से आपको समझाऊं। विवेकानंद के पिता भांति जो जीवन को जीता, यज्ञरूपी कर्म में जो प्रविष्ट होता, दिव्य मर गए। कर्ज छोड़ गए बहुत। चुकाने का कोई उपाय नहीं। शक्तियां उसे बिना मांगे सब दे जाती हैं। लेकिन हमें अपने पर खाने-पीने तक की सुविधा नहीं। घर में इतना मुश्किल से जुटा पाते | भरोसा ज्यादा, जरूरत से ज्यादा, खतरनाक भरोसा है। या तो हम कि एक बार एक जन का भोजन हो पाए। और दो थे घर में; मां थी | कोशिश करते हैं, पा लें, तब हमारा कर्म यज्ञरूपी नहीं हो पाता। और विवेकानंद थे। तो मां उन्हें खिला दे और खुद भूखी रह जाए, | और या फिर हम मांगते हैं कि मिल जाए, तब आकांक्षा से दूषित पानी पीकर। तो विवेकानंद उससे कहते कि आज फलां मित्र के घर | हो जाता है और दिव्य शक्तियों से हमारे संबंध टूट जाते हैं। निमंत्रण है, मैं वहां जा रहा है; सिर्फ इसलिए कि वह खाना खा । इसलिए ध्यान रखें, जो प्रार्थना भी मांग के साथ जुड़ी है, वह लेगी। और वे सड़कों पर चक्कर लगाकर वापस बडी खशी से घर प्रार्थना नहीं रह जाती। जिस प्रार्थना में भी रंचमात्र मांग है, वह लौटें और उन भोजन की चर्चा करें, जो उन्होंने किए नहीं हैं। कोई | प्रार्थना प्रार्थना नहीं रह गई। जो प्रार्थना निस्पृह, निपट प्रार्थना है, मित्र के घर निमंत्रण था नहीं। लेकिन यह कितने दिन चलता! | | जिसमें कोई मांग नहीं, सिर्फ धन्यवाद है उसका, जो मिला है। रामकृष्ण को खबर लगी, तो रामकृष्ण ने कहा, तू कैसा पागल | | उसकी मांग नहीं, जो मिलना चाहिए। इसलिए ठीक प्रार्थना सदा है! तू जा और काली से मांग ले। मांग क्यों नहीं लेता है! जो ही धन्यवाद होती है। और गलत प्रार्थना सदा ही मांग होती है। चाहिए, मिल जाएगा; मांग ले। विवेकानंद को रामकृष्ण ने वस्तुतः मंदिर में ठीक आदमी वही है प्रार्थना करने गया, जो धन्यवाद देने धक्का दे दिया मंदिर में कि तू जा और मां से मांग ले। क्षण बीते, गया है कि परमात्मा कितना दिया है! गलत आदमी वह है, जो घड़ी बीती। रामकृष्ण बार-बार झांककर भीतर देखें; विवेकानंद मांगने गया है कि फलां चीज नहीं दी, फलां चीज नहीं दी, यह और खड़े हैं। वे बड़े हैरान हुए कि इतनी-सी बात मांगनी है, इतनी देर! मिलनी चाहिए। मांग प्रार्थना में जहर हो जाती है, धन्यवाद प्रार्थना फिर विवेकानंद लौटे, तो रामकृष्ण ने कहा, मांगा? तो विवेकानंद ने कहा, अरे! काली के सामने पहुंचा, तो मांग की बात ही भूल | | यज्ञरूपी कर्म, धन्यवादपूर्वक परमात्मा जो कर रहा है, जो करा गई! तो रामकृष्ण ने कहा, पागल, भेजा तुझे मांगने को था; फिर रहा है, उसकी परम स्वीकृति, टोटल एक्सेप्टिबिलिटी है। और तब से जा। विवेकानंद फिर गए, और फिर घड़ी बीती, रामकृष्ण दरवाजे | | बड़े रहस्य की बात है कि सब मिल जाता है। सीक यी फर्स्ट दि पर बैठे राह देखते रहे और विवेकानंद फिर वहां से आनंदित लौटे। | किंगडम आफ गॉड, देन आल एल्स शैल बी एडेड अनटु यू, पहले रामकृष्ण ने कहा, लगता है कि मांग पूरी हो गई। मिल गया? मांग खोज लो परमात्मा का राज्य और फिर से चला आता लिया? विवेकानंद ने कहा, कौन-सी मांग? रामकृष्ण ने कहा, तू है। जिसे कभी नहीं मांगा, वह मिल जाता है। जिसे मांग-मांगकर पागल तो नहीं है! तुझे मांगने भेजा था। विवेकानंद ने कहा, बड़ी भी कभी नहीं पाया था, वह बिन मांगें मिल जाता है। यह तो पहला में आमत बन जाता है। 1355
SR No.002404
Book TitleGita Darshan Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year1996
Total Pages512
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size22 MB
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