SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 384
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ गीता दर्शन भाग-1 इष्टान्भोगान्हि वो देवा दास्यन्ते यजमाविताः । | में होता क्या है? इच्छा करने में होता क्या है? जैसे ही हम मांगते तैर्दतानप्रदायभ्यो यो भुक्तेस्तेन एव सः।। १२ ।। | हैं, हमारा हृदय सिकुड़ जाता है मांग के आस-पास, और चेतना यज्ञशिष्टाशिनः सन्तो मुच्यन्ते सर्वकिल्बिवैः । | के द्वार तत्काल बंद हो जाते हैं। मांगें और देखें। भिखारी कभी भी भुजते ते त्वचं पापा ये पचन्त्यात्मकारणात् ।। १३ ।।। | फूल की तरह खिला हुआ नहीं होता; हो नहीं सकता। भिखारी सदा तथा यज्ञ द्वारा प्रेरित हुए देवता लोग तुम्हारे लिए, बिना मांगे | | सिकुड़ा हुआ, अपने में बंद, क्लोज्ड। जब भी हम कुछ मांगते हैं, ही प्रिय भोगों को देंगे। उनके द्वारा दिए हुए भोगों को जो । | तो मन एकदम बंद हो जाता है। जब हम कुछ देते हैं, तब मन पुरुष उनके लिए बिना दिए ही भोगता है, खुलता है। दान से तो मन खुलता है और मांग से मन बंद होता है। वह निश्चय चोर है। | तो जब कोई परमात्मा के सामने भी, दिव्य शक्तियों के सामने भी यज्ञ से शेष बचे हुए अन्न को खाने वाले श्रेष्ठ पुरुष सब | मांगने खड़ा हो जाता है, तो उसे पता नहीं कि मांगने के कारण ही पापों से छूटते हैं और जो पापी लोग अपने शरीर पोषण के | उसके हृदय के द्वार बंद हो जाते हैं, वह पाने से वंचित रह जाता है। लिए ही पकाते हैं, वे तो पाप को ही खाते हैं। जीसस का एक और वचन मुझे स्मरण आता है, जिसमें उन्होंने | कहा है, भिखारियों के लिए नहीं, सम्राटों के लिए है। जीसस ने कहा है, जिनके पास है, उन्हें और दे दिया जाएगा; और जिनके 1 ध्यात्मिक विवाद का इस सूत्र को हम जन्मदाता कह | | पास नहीं है, उनसे और भी छीन लिया जाएगा। बड़ी उलटी बात पा सकते हैं। इस सूत्र में दो बातें कही गई हैं। एक तो है। जिनके पास है, उन्हें और भी दे दिया जाएगा; और जिनके पास सबसे पहली बात और बहुत महत्वपूर्ण, यज्ञरूपी कर्म | | नहीं है, उनसे और भी छीन लिया जाएगा। और जब भी आप मांगते से दिव्य शक्तियां प्रसन्न होकर बिना मांगे ही सब कुछ देती हैं। | | हैं, तब आप खबर देते हैं, मेरे पास नहीं है। और जब भी आप देते जीवन के रहस्यात्मक नियमों में से एक नियम यह है कि जो हैं, तब आप खबर देते हैं, मेरे पास है। असल में इस सूत्र का भी मांगा जाएगा, वह नहीं मिलेगा; जो नहीं मांगा जाएगा, वही मिलता | अर्थ यही है कि जो बांटता है, उसे मिल जाएगा; और जो बटोरता है। जिसके पीछे हम दौड़ते हैं, उसे ही खो देते हैं; और जिसको हम है, वह खो देगा। दौड़ना छोड़ देते हैं जिसके पीछे, वह हमारे पीछे छाया की तरह | | भिखारी बटोर रहा है। भिखारी के चित्त की दो-चार बातें और चला आता है। इस नियम को न समझ पाने से जीवन में बड़ा दुख | खयाल में ले लेनी चाहिए, क्योंकि एक अर्थ में हम सब भिखारी और बड़ी पीड़ा है। और साधारण जीवन में शायद कभी हमें ऐसा | हैं। दानी होना बड़ा असंभव है। भिखारी होना बिलकुल आसान भ्रम भी हो जाए कि मांगने से भी कुछ मिल जाता है, लेकिन दिव्य है। लेकिन कठिनाई यही है कि भिखारियों को कभी कुछ नहीं मिल शक्तियों से तो कभी भी मांगने से कुछ नहीं मिलता है। दिव्य पाता और देने वालों को सदा सब कुछ मिल जाता है। शक्तियों के लिए जो अपने हृदय में द्वार खोल देता है, उसे सब | जैसे ही कोई मांगता है-वैसे ही उसका मन तो सिकुड़ता ही है, मिल जाता है, लेकिन बिना मांगे ही। | चित्त के द्वार तो बंद हो ही जाते हैं जैसे ही कोई मांगता है, वैसे जीसस का एक वचन है, जिसमें जीसस ने कहा है, सीक यी | | ही भीतर डर भी समा जाता है कि पता नहीं मिलेगा या नहीं मिलेगा! फ दि किंगडम आफ गॉड, देन आल एल्स शैल बी एडेड अनटु | मांगने वाला कभी निर्भय नहीं हो सकता। मांग के साथ भय, फिअर यू-तुम पहले प्रभु के राज्य को खोज लो और शेष सब फिर तुम्हें | | हमेशा मौजूद होता है। मांगा कि भय खड़ा है। और परमात्मा से अपने आप ही मिल जाएगा। लेकिन हम शेष सबको खोजते हैं, | केवल वे ही जुड़ सकते हैं, जो निर्भय हैं; जो भयभीत हैं, वे नहीं प्रभु के राज्य को नहीं। और शेष सब तो हमें मिलता ही नहीं, प्रभु जुड़ सकते। का राज्य भी खो जाता है। जिसे जीसस ने किंगडम आफ गॉड कहा। ___ जब भी आप मांगेंगे, तभी प्राण कंप जाएंगे और भयभीत हो है, प्रभु का राज्य कहा है, उसे ही कृष्ण दिव्य शक्ति, देवता कह | | जाएंगे और डर पकड़ जाएगा, पता नहीं मिलेगा या नहीं। यह जो | डर है, यह भी मन को बंद कर देगा। और यह जो डर है, यह जैसे ही हम मांगते हैं...मांगने में होता क्या है? कामना करने परमात्मा और स्वयं के बीच फासला पैदा कर देता है। परमात्मा के 354
SR No.002404
Book TitleGita Darshan Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year1996
Total Pages512
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size22 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy