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yam+ विचारवान अर्जुन और युद्ध का धर्मसंकट HAR
जो वक्तव्य देते हैं, ऐसे ही होते हैं। बीच में अज्ञात उतरता चलता अपने को छोड़ दे, मिटा दे, तो तत्काल जान लेता है; अज्ञात के है और सब कहानी बदलती चलती है। अगर हम जिंदगी को पीछे साथ एक हो जाता है। बूंद नहीं जान सकती कि सागर क्या है, जब से लौटकर देखें तो हम कहेंगे. जो भी हमने सोचा था. वह सब | तक कि बूंद सागर के साथ खो न जाए। व्यक्ति नहीं जान सकता गलत हुआः जहां सफलता सोची थी, वहां असफलता मिली; जो | कि परमात्मा की इच्छा क्या है। जब तक व्यक्ति अपने को व्यक्ति पाना चाहता था, वह नहीं पाया जा सका; जिसके मिलने से सुख बनाए है, तब तक नहीं जान सकता है। व्यक्ति अपने को खो दे, सोचा था, वह मिल गया और दुख पाया; और जिसके मिलने की तो फिर परमात्मा की इच्छा ही शेष रह जाती है, क्योंकि व्यक्ति की कभी कामना भी न की थी, उसकी झलक मिली और आनंद के कोई इच्छा शेष नहीं रह जाती। तब जानने का सवाल ही नहीं उठता। झरने फूटे। सब उलटा हो जाता है।
तब व्यक्ति वैसे ही जीता है, जैसे अज्ञात उसे जिलाता है। तब लेकिन इतने बुद्धिमान आदमी इस जगत में कम हैं, जो निष्पत्ति व्यक्ति की कोई आकांक्षा, तब व्यक्ति की कोई फलाकांक्षा, तब को पहले ध्यान में लें। हम सब प्रारंभ को ही पहले ध्यान में लेते व्यक्ति की कोई अपनी अभीप्सा, तब व्यक्ति की समग्र की हैं। काश! हम अंत को पहले ध्यान में लें तो जिंदगी की कथा आकांक्षा के ऊपर अपनी थोपने की कोई वृत्ति शेष नहीं रह जाती, बिलकल और हो सकती है। लेकिन अगर दर्योधन अंत को पहले क्योंकि व्यक्ति शेष नहीं रह जाता। ध्यान में ले ले, तो युद्ध नहीं हो सकता। दुर्योधन अंत को ध्यान में | जब तक व्यक्ति है, तब तक अज्ञात क्या चाहता है, नहीं जाना नहीं ले सकता; अंत को मानकर चलेगा कि ऐसा होगा। इसलिए | जा सकता। और जब व्यक्ति नहीं है, तब जानने की कोई जरूरत वह कह रहा है बार-बार कि यद्यपि सेनाएं उस तरफ महान हैं, | नहीं; जो भी होता है, वह अज्ञात ही करवाता है। तब व्यक्ति एक लेकिन जीत हमारी ही होगी। मेरे योद्धा जीवन देकर भी मुझे जिताने इंस्ट्रमेंट हो जाता है, तब व्यक्ति एक साधनमात्र हो जाता है। के लिए आतुर हैं।
कृष्ण पूरी गीता में आगे अर्जुन को यही समझाते हैं कि वह अपने . लेकिन हम अपनी सारी शक्ति भी लगा दें, तो भी असत्य जीत | को छोड़ दे अज्ञात के हाथों में; समर्पित कर दे। क्योंकि वह जिन्हें नहीं सकता। हम सारा जीवन भी लगा दें, तो भी असत्य जीत नहीं | सोच रहा है कि ये मर जाएंगे, वे अज्ञात के द्वारा पहले ही मारे जा सकता; इस निष्पत्ति का दुर्योधन को कोई भी बोध नहीं हो सकता चुके हैं। कि वह जिन्हें सोचता है कि इनकी मृत्यु के लिए मैं है। और सत्य, जो कि हारता हुआ भी मालूम पड़ता हो, अंत में | जिम्मेवार हो जाऊंगा, उनके लिए वह बिलकुल भी जिम्मेवार नहीं जीत जाता है। असत्य प्रारंभ में जीतता हुआ मालूम पड़ता है, अंत | होगा। अगर वह अपने को बचाता है, तो जिम्मेवार हो जाएगा। में हार जाता है। सत्य प्रारंभ में हारता हुआ मालूम पड़ता है, अंत | अगर अपने को छोड़कर साधनवत, साक्षीवत लड़ सकता है, तो में जीत जाता है। लेकिन प्रारंभ से अंत को देख पाना कहां संभव उसकी कोई जिम्मेवारी नहीं रह जाती है। है! जो देख पाता है, वह धार्मिक हो जाता है। जो नहीं देख पाता व्यक्ति अपने को खो दे समष्टि में, व्यक्ति अपने को समर्पित है, वह दुर्योधन की तरह अंधे युद्ध में उतरता चला जाता है। कर दे, छोड़ दे अहंकार को, तो ब्रह्म की इच्छा ही फलित होती है।
अभी भी वही फलित हो रही है। ऐसा नहीं कि हम उससे भिन्न
फलित करा लेंगे। लेकिन हम भिन्न फलित कराने में लड़ेंगे, टूटेंगे, प्रश्न: भगवान श्री, एक तो अज्ञात का विल होता है, | नष्ट होंगे। एक व्यक्ति का अपना विल होता है। दोनों में | । एक छोटी-सी कहानी मैं निरंतर कहता रहा हूं। मैं कहता रहा हूं कांफ्लिक्ट होते हैं। तो व्यक्ति कैसे जान पाए कि | कि एक नदी में बहुत बाढ़ आई है और दो छोटे-से तिनके उस नदी अज्ञात का क्या विल है, अज्ञात की क्या इच्छा है? | में बह रहे हैं। एक तिनका नदी में आड़ा पड़ गया है और नदी की
बाढ़ को रोकने की कोशिश कर रहा है। और वह चिल्ला रहा है
बहुत जोर से कि नहीं बढ़ने देंगे नदी को, यद्यपि नदी बढ़ी जा रही 17 छते हैं, व्यक्ति कैसे जान पाए कि अज्ञात की क्या है। वह चिल्ला रहा है कि रोककर रहेंगे, यद्यपि रोक नहीं पा रहा । इच्छा है? व्यक्ति कभी नहीं जान पाता। हां, व्यक्ति है। वह चिल्ला रहा है कि नदी को हर हालत में रोककर ही रहूंगा,