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im+ गीता दर्शन भाग-1 -
संभावना दुर्योधन के मन में भी है। अर्जुन युद्ध से भाग सकता है, | अगर भीम केंद्र पर रहता, तो शायद दुर्योधन जो कहता है कि हम इसकी कोई गहरी अचेतन प्रतीति दुर्योधन के मन में भी है। अगर विजयी हो सकेंगे, हो सकता था। लेकिन दुर्योधन की दृष्टि सही युद्ध टिकेगा, तो भीम पर टिकेगा। युद्ध के लिए भीम जैसे कम सिद्ध नहीं हुई। और आकस्मिक तत्व बीच में उतर आया। वह भी बुद्धि के, लेकिन ज्यादा शक्तिशाली लोगों पर भरोसा किया जा सोच लेने जैसा है। सकता है।
कृष्ण का खयाल ही न था। कि अर्जुन अगर भागने लगे, तो अर्जुन बुद्धिमान है। और जहां बुद्धि है, वहां संशय है। और कृष्ण उसे युद्ध में रत करवा सकते हैं। हम सबको भी खयाल नहीं जहां संशय है, वहां द्वंद्व है। अर्जुन विचारशील है। और जहां | होता। जब हम जिंदगी में चलते हैं, तो एक अज्ञात परमात्मा की विचारशीलता है, वहां पूरे पर्सपेक्टिव, पूरे परिप्रेक्ष्य को सोचने | तरफ से भी बीच में कुछ होगा, इसका हमें कभी खयाल नहीं होता।
की क्षमता है; वहां युद्ध जैसी भयंकर स्थिति में आंख बंद करके हम जो भी हिसाब लगाते हैं, वह दृश्य का होता है। अदृश्य भी उतरना कठिन है। दुर्योधन भरोसा कर सकता है-युद्ध के बीच में इंटरपेनिट्रेट कर जाएगा, अदृश्य भी बीच में उतर आएगा, लिए-भीम का।
इसका हमें भी कोई खयाल नहीं होता। भीम और दुर्योधन के बीच गहरा सामंजस्य है। भीम और कृष्ण के रूप में अदृश्य बीच में उतर आया है और सारी कथा दुर्योधन एक ही प्रकृति के, बहुत गहरे में एक ही सोच के, एक ही बदल गई है। जो होता, वह नहीं हुआ; और जो नहीं होने की ढंग के व्यक्ति हैं। इसलिए अगर दुर्योधन ने ऐसा देखा कि भीम | संभावना मालूम होती थी, वह हुआ है। और अज्ञात जब उतरता है केंद्र है दूसरी तरफ, तो गलत नहीं देखा, ठीक ही देखा। और गीता | तो उसके प्रिडिक्शन नहीं हो सकते, उसकी कोई भविष्यवाणी नहीं भी पीछे सिद्ध करती है कि अर्जुन भागा-भागा हो गया है। अर्जुन हो सकती। इसलिए जब कृष्ण भागते हुए अर्जुन को युद्ध में धक्का पलायनवादी दिखाई पड़ा है, वह एस्केपिस्ट मालूम पड़ा है। अर्जुन | देने लगे, तो जो भी इस कथा को पहली बार पढ़ता है, वह शॉक जैसे व्यक्ति की संभावना यही है। अर्जुन के लिए यह युद्ध भारी | खाए बिना नहीं रह सकता; उसको धक्का लगता है। पड़ा है। युद्ध में जाना, अर्जुन के लिए अपने को रूपांतरित करके | ___ जब इमर्सन ने पहली बार पढ़ा, तो उसने किताब बंद.कर दी; ही संभव हो सका है। अर्जुन एक नए तल पर पहुंचकर ही युद्ध के | | वह घबड़ा गया। क्योंकि अर्जुन जो कह रहा था, वह सभी लिए राजी हो सका है।
| तथाकथित धार्मिक लोगों को ठीक मालूम पड़ेगा। वह ठीक ___ भीम जैसा था, उसी तल पर युद्ध के लिए तैयार था। भीम के | | तथाकथित धार्मिक आदमी का तर्क दे रहा था। जब हेनरी थारो ने लिए युद्ध सहजता है, जैसे दुर्योधन के लिए सहजता है। इसलिए इस जगह आकर देखा कि कृष्ण उसे युद्ध में जाने की सलाह देते दुर्योधन भीम को केंद्र में देखता है, तो आकस्मिक नहीं है। लेकिन हैं, तो वह भी घबड़ा गया। हेनरी थारो ने भी लिखा है कि मुझे ऐसा • यह युद्ध के प्रारंभ की बात है। युद्ध की निष्पत्ति क्या होगी, अंत | भरोसा नहीं था, खयाल भी नहीं था कि कहानी ऐसा मोड़ लेगी कि क्या होगा, यह दुर्योधन को पता नहीं है। हमें पता है।
कृष्ण और युद्ध में जाने की सलाह देंगे! गांधी को भी वहीं तकलीफ और ध्यान रहे, अक्सर ही जीवन जैसा प्रारंभ होता है, वैसा थी, उनकी पीड़ा भी वहीं थी। अंत नहीं होता। अक्सर अंत सदा ही अनिर्णीत है, अंत सदा ही | लेकिन जिंदगी किन्हीं सिद्धांतों के हिसाब से नहीं चलती। अदृश्य है। अक्सर ही जो हम सोचकर चलते हैं, वह नहीं होता।। | जिंदगी बहुत अनूठी है। जिंदगी रेल की पटरियों पर दौड़ती नहीं, अक्सर ही जो हम मानकर चलते हैं, वह नहीं होता। जीवन एक | गंगा की धारा की तरह बहती है; उसके रास्ते पहले से तय नहीं हैं। अज्ञात यात्रा है। इसलिए जीवन के प्रारंभिक क्षणों में किसी भी | | और जब परमात्मा बीच में आता है, तो सब डिस्टर्ब कर देता है; घटना के प्रारंभिक क्षणों में जो सोचा जाता है, वह अंतिम जो भी तैयार था, जो भी आदमी ने निर्मित किया था, जो आदमी निष्पत्ति नहीं बनती। और हम भाग्य के निर्माण की चेष्टा में रत हो की बुद्धि सोचती थी, सब उलट-फेर हो जाता है। सकते हैं, लेकिन भाग्य के निर्णायक नहीं हो पाते हैं; निष्पत्ति कुछ इसलिए बीच में परमात्मा भी उतर आएगा इस युद्ध में, इसकी और होती है।
दुर्योधन को कभी कल्पना न थी। इसलिए वह जो कह रहा है, खयाल तो दुर्योधन का यही था कि भीम केंद्र पर रहेगा। और प्रारंभिक वक्तव्य है। जैसा कि हम सब आदमी जिंदगी के प्रारंभ में