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________________ परमात्मसमर्पित कर्म 4 गुलाम ही रहना है, तो फिर ठीक तरह से, पूरी तरह से ही गुलाम हो जाना उचित है; जब मालिक होने का कोई उपाय ही नहीं है। शरीरवादी सदा से यही कहते रहे हैं। इस देश में भी शरीरवादी थे। सच तो यह है, अधिक लोग शरीरवादी ही हैं। अधिक लोग चार्वाक से सहमत ही हैं। अधिक लोग मार्क्स से सहमत ही हैं। अधिक लोग फ्रायड से सहमत ही हैं। अधिक लोग इस बात से राजी ही हैं कि हम शरीर से ज्यादा कुछ भी नहीं हैं। इसलिए शरीर की मांग ही हमारी जिंदगी है और शरीर की वासना ही हमारी आत्मा है। इसलिए जहां ले जाएं अंधी इंद्रियां और जहां ले जाएं अंधी वासनाएं, हमें वहीं भागते चले जाना है। आदमी का कोई वश नहीं है। यह बात अगर एक बार कोई मानने को राजी हो जाए, तो वह सदा के लिए अपनी आत्मा खो देता है। क्योंकि आत्मा पैदा ही तब होती है, जब वासना पीछे हो और स्वयं का होना आगे हो । आत्मा का जन्म ही तब होता है, जब वासना छाया बन जाए। जब तक वासना आगे होती है और हम छाया होते हैं, तब तक हममें आत्मा पैदा नहीं होती है। सिर्फ संभावना होती है, पोटेंशियलिटी होती है, एक्चुएलिटी नहीं होती है। तब तक आत्मा हमारे लिए बीज की तरह होती है, वृक्ष की तरह नहीं होती है। कृष्ण कह रहे हैं, वह आदमी श्रेष्ठ है अर्जुन, जो अपनी इंद्रियों को मन के वश में कर लेता है। मन के वश में इंद्रियों को करिएगा कैसे? हमें तो एक ही रास्ता दिखाई पड़ता है कि लड़ो, इंद्रियों को दबा दो, तो इंद्रियां वश में हो जाएंगी। दबाने से कोई इंद्रिय वश में नहीं होती। दबाने से सिर्फ इंद्रियां परवर्ट होती हैं, विकृत होती हैं और सीधी मांगें तिरछी मांगें बन जाती हैं; और हम सीधे न चलकर पीछे के दरवाजों से पहुंचने लगते हैं; और पाखंड फलित होता है। दबाना मार्ग नहीं है । फिर क्या मार्ग है? मनुष्य की वासनाएं तब तक उसे पकड़े रहती हैं, जब तक उसके पास संकल्प, विल न हो, जब तक उसके पास संकल्प जैसी सत्ता का जन्म न हो। इस संकल्प के संबंध में थोड़ा गहरे उतरना आवश्यक है, क्योंकि इसके बिना कोई आदमी कभी वासनाओं पर वश नहीं पा सकता है। संकल्प का क्या अर्थ है ? संकल्प का अर्थ इंद्रियों का दमन नहीं, संकल्प का अर्थ स्वयं के होने का अनुभव है। संकल्प का अर्थ है, स्वयं की मौजूदगी का अनुभव । आपको भूख लगी है, शरीर कहता है कि भूख लगी है; आप कहते हैं कि सुन ली मैंने आवाज, लेकिन अभी अभी मैं भोजन करने को राजी नहीं हूं। और अगर आप पूरे मन से यह बात कह सकें कि अभी मैं भोजन करने को राजी नहीं हूं, तो शरीर तत्काल मांग बंद कर देता है। तत्काल मांग बंद कर देता है। जैसे ही शरीर को पता चल जाए कि आपके पास शरीर से ऊपर भी संकल्प है, वैसे ही शरीर तत्काल मांग बंद कर देता है। आपकी कमजोरी ही शरीर की ताकत बन जाती है। आपकी ताकत ही शरीर की कमजोरी जाती है। लेकिन हम कभी शरीर से भिन्न अपनी कोई घोषणा नहीं करते हैं। कभी छोटे-छोटे प्रयोग करके देखना जरूरी है। बहुत छोटे प्रयोग, जिनमें आप शरीर से भिन्न अपने होने की घोषणा करते हैं। सारे धर्मों ने इस तरह के प्रयोग विकसित किए हैं। लेकिन करीब-करीब सभी प्रयोग नासमझ लोगों के हाथ में पड़कर व्यर्थ हो जाते हैं । उपवास इसी तरह का प्रयोग था, जो मनुष्य के संकल्प को जन्माने के लिए था। आदमी अगर कह सके कि नहीं, भोजन नहीं, पूरे मन से, तो शरीर मांग बंद कर देता है। और जब पहली दफा यह पता चलता है कि शरीर के अतिरिक्त भी मेरी कोई स्थिति है, तो आपके भीतर एक नई ऊर्जा, एक नई शक्ति जन्मने लगती है, अंकुरित होने लगती है। नींद आ रही है और आपने कहा कि नहीं, मैं नहीं सोना चाहता हूं। और अगर यह टोटल है, अगर यह बात पूरी है, अगर यह पूरे मन से कही गई है, तो शरीर तत्काल नींद की आकांक्षा छोड़ | देगा। आप अचानक पाएंगे कि नींद खो गई है और जागरण पूरा आ गया है। लेकिन हम जिंदगी में कभी इसका प्रयोग नहीं करते हैं। हम कभी शरीर से भिन्न होने का कोई भी प्रयोग नहीं करते हैं। शरीर जो कहता है, हम चुपचाप उसको पूरा करते जाते हैं। मैं यह नहीं कह रहा हूं कि शरीर जो कहे, उसे आप पूरा न करें। | लेकिन कभी-कभी किन्हीं क्षणों में अपने अलग होने का अनुभव भी करना जरूरी है। और एक बार आपको यह अनुभव होने लगे कि आप, शरीर से भिन्न भी आपका कुछ होना है, तो आप हैरान हो जाएंगे, उसी दिन से आपके मन की ताकत आपकी इंद्रियों पर फैलनी शुरू हो जाएगी। | 337 गुरजिएफ, एक अदभुत फकीर, अभी कुछ दिन पहले था। जैसा मैंने पिछली चर्चा में आपसे कहा कि अगर इस युग में हम सांख्य का कोई ठीक-ठीक व्यक्तित्व खोजना चाहें, तो कृष्णमूर्ति हैं। और अगर हम योग का कोई ठीक-ठीक व्यक्तित्व खोजना चाहें, तो वह
SR No.002404
Book TitleGita Darshan Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year1996
Total Pages512
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size22 MB
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