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________________ 13कर्ता का भ्रम +m बादलों के बीच जरा-सा रोता है, करवट लेता है, वह जाग जाती है। अब पूछे कि यह जीवेषणा किसकी है? यह जीवेषणा अगर जरूर कोई मन का हिस्सा पहरा दे रहा है रात के गहरे में भी। तूफान हमारी ही हो, तो शायद कभी-कभी हम चूक भी जाएं। यह को नहीं सुनता, लेकिन बच्चे की आवाज सुनाई पड़ जाती है। जीवेषणा परमात्मा की ही है, अन्यथा हम चूक जाएं कभी-कभी। हिप्नोटिस्ट कहते हैं—जो लोग सम्मोहन की गहरी खोज करते इसलिए जो भी गहरे हिस्से हैं जीवन के, वे हम पर नहीं छोड़े गए हैं, वे कहते हैं कि कितना ही किसी आदमी को सम्मोहित, हैं। वे हमारे कर्म नहीं, हमारी क्रियाएं बन गए हैं। जैसे अगर श्वास हिप्नोटाइज कर दिया जाए, लेकिन उससे भी गहरे में उसकी इच्छा | | लेना आपके ही हाथ में हो कि आप श्वास लें तो लें; न लें तो न के विपरीत काम नहीं करवाया जा सकता है। लें-जैसे पैर का चलना, चलें तो चलें, न चलें तो न चलें-ऐसा __ जैसे एक, एक सती स्त्री को, जिसके मन में एक पुरुष के | अगर श्वास लेना भी आपके हाथ में हो, तो आदमी दिन में अलावा दूसरे पुरुष का कभी कोई खयाल नहीं आया। कठिन है | | दस-बीस दफा मर जाए; जरा चूके और मरे। बहुत, अस्वाभाविक है बहुत, करीब-करीब असंभव है। इसीलिए __तो आपके हाथ में जो बिलकुल व्यर्थ की बातें हैं, जिनके तो सती का मूल्य भी है। अगर बहुत सरल, संभव और स्वाभाविक | हेर-फेर से कोई खास फर्क नहीं पड़ता, वे ही दिखाई पड़ती हैं। होता, तो इतना मूल्य नहीं हो सकता था। अगर उसे हिप्नोटाइज | बाकी सब महत्वपूर्ण गहरी जीवनधारा के हाथ में, परमात्मा के हाथ किया जाए, बेहोश कर दिया जाए, कोई मैक्स कोली या कोई उसे में हैं। वे आपके हाथ में नहीं हैं। नहीं तो आप तो कई दफे भूलबेहोश कर दे परा और गहरी बेहोशी में उससे कहे कि नाचो वह कर जाएं। भल गए. दो मिनट श्वास न ली। दस रुपए का नोट खो नाचे। उससे कहे, दूध दुहो-वह दूध दुहे। उससे कहे कि गया; दस मिनट भूल गए, श्वास न ली; पत्नी गुस्से में आ गई, भागो-वह भागे। लेकिन उससे कहे कि इस पुरुष को आलिंगन | | भूल गए, दो मिनट हृदय न धड़काया-गए। करो—फौरन हिप्नोटिज्म टूट जाएगा, फौरन बेहोशी टूट जाएगी। नहीं, आपके चेतन मन पर वह निर्भर नहीं है, अचेतन पर निर्भर वह स्त्री खड़ी हो जाएगी कि आप क्या बात कह रहे हैं! भागती थी, है। और अचेतन एक तरफ आपसे जुड़ा है और एक तरफ परमात्मा दौड़ती थी, रोती थी, हंसती थी, यह सब करती थी। लेकिन कहा, से जुड़ा है। अचेतन एक तरफ आपसे जुड़ा है और दूसरी तरफ गहरे इस पुरुष का आलिंगन करो। आलिंगन नहीं होगा, सम्मोहन टूट | में परमात्मा से जुड़ा है। जाएगा। क्यों ? इतने गहरे में भी, इतने गहरे में भी, इतने अचेतन इसलिए जब हम कहते हैं, परमात्मा स्रष्टा है, क्रिएटर है, तो में भी, उसकी जो गहरी से गहरी मनोभावना है, वह मौजूद है। नहीं, | उसका यह मतलब नहीं होता, जैसा कि लोग समझ लेते हैं। मानने यह नहीं हो सकता। | वाले भी और न मानने वाले भी, दोनों ही गलत समझते हैं। उसका मनुष्य के भीतर जो भी चल रहा है, उसमें हमारा सहारा है। | यह मतलब नहीं है कि किसी तिथि-तारीख में, किसी मुहूर्त को सहारे का मतलब, हमारी गहरी आकांक्षा है कि हम जीएं, इसलिए | | देखकर परमात्मा ने दुनिया बना दी। उसका यह मतलब नहीं है। नींद में भी जीने का काम चलता है, बेहोशी में भी चलता है। | मानने वाले भी ऐसा ही समझते हैं, विरोध करने वाले भी ऐसा ही __ मैं एक स्त्री को देखने गया, जो नौ महीने से बेहोश है, कोमा में | समझते हैं। वे दोनों ही एक से नासमझ हैं। पड़ी है। और चिकित्सक कह रहे थे कि वह तीन साल तक बेहोश परमात्मा स्रष्टा है, उसका मतलब केवल इतना ही है कि इस पड़ी रहेगी। ठीक नहीं हो सकेगी, लेकिन ऐसी ही बेहोश पड़ी | क्षण भी उसकी शक्ति ही सृजन कर रही है और जीवन को चला रहेगी। ऐसे ही इंजेक्शंस से, दवाएं और भोजन और ये सब दिया | | रही है। इस क्षण भी, अभी भी, वही है। गहरे में वही निर्मित करता जाता रहेगा। कभी मर जाएगी। बड़ी हैरानी की बात है कि वह नौ | है। अगर सागर में लहर उठती है, तो वह उसी की लहर है। अगर महीनों से बेहोश पड़ी है। तो मैंने कहा कि और जब जीने की अब | | हवाओं में आंधी आती है, तो वह उसी की आंधी है। अगर प्राणों कोई लौटने की आशा ही नहीं है, फिर क्या कारण होगा? उन्होंने | | में जीवन आता है, तो वह उसी का जीवन है। अगर मस्तिष्क के कहा, हम कुछ भी नहीं कह सकते। लेकिन मनसविद कहेगा कि | | जड़ सेल्स में बुद्धि चमकती है, तो वह उसी की बुद्धि है। जीने की आकांक्षा अभी भी गहरे में है। जीवेषणा, अचेतन से ऐसा नहीं है कि किसी इतिहास के किसी क्षण में—जैसा ईसाई अचेतन में जीवेषणा अभी भी है। वह जीवेषणा चलाए जा रही है। कहते हैं कि जीसस से चार हजार चार वर्ष पहले-एक तिथि 331 .
SR No.002404
Book TitleGita Darshan Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year1996
Total Pages512
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size22 MB
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