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________________ m+ गीता दर्शन भाग-1 AM किया। कोई व्यक्ति सीधा आ जाता है पूछने, साथ में उसके दो मित्र | काम करता रहेगा; हड्डियां निर्मित होती रहेंगी, पुराने सेल मरते रहेंगे, आ जाते हैं। तो मैं निरंतर जानकर हैरान हुआ हूं कि जो व्यक्ति | | निकलते रहेंगे, नए सेल बनते रहेंगे। रात मैं सोया रहूंगा, क्रिया जारी सीधा सवाल पूछता है, वह कम समझ पाता है; और वे दो लोग | रहेगी। उसको हम कर्म न कह सकेंगे, क्योंकि मैं तो बिलकुल भी जो साथ में चुपचाप बैठे रहते हैं, पूछने नहीं आते, वे ज्यादा नहीं था, अहंकार को तो मौका नहीं था। असल में जिस क्रिया से समझकर जाते हैं। क्योंकि जो आदमी सीधा सवाल पूछता है, वह | हम अहंकार को जोड़ने में सफल हो जाते हैं, उसको कर्म कहने लगते बहत कांशस हो जाता है. बहत ईगो से भर जाता है। उसका सवाल हैं। और जिस क्रिया में हम अहंकार को नहीं जोड़ पाते. उसको हम है। और जब उसे समझाया जा रहा होता है, तब वह समझने की | क्रिया कहते हैं, उसको हम फिर कर्म नहीं कहते। लेकिन गहरे में कोई कोशिश में कम और नए सवाल के चिंतन में ज्यादा होता है। जब भी क्रिया मात्र क्रिया नहीं है: क्रिया भी कर्म है। उससे कहा जा रहा है, तब वह उसके खिलाफ और पक्ष-विपक्ष में | - यह क्यों? ऐसा क्यों? क्योंकि रात जब मैं सो रहा हूं, या मुझे सोचता हुआ होता है। वह पूरा का पूरा डूब नहीं पाता। लेकिन दो | | बेहोश कर दिया गया है-समझ लें कि मुझे मार्फिया दे दिया गया लोग शांत पास बैठे हैं, न उनका सवाल है, न ही उनका कोई | है, अब मैं बिलकुल बेहोश पड़ा हूं तो भी तो खून अपना काम सवाल है, वे बाहर हैं। वे परिधि पर हैं। वे चुपचाप मौजूद हैं, वे करेगा, हड्डियां अपना काम करेंगी, पेट अपना काम करेगा, श्वास आब्जर्वर्स हैं। उनके मन में ज्यादा शीघ्रता से चली जाती है बात।। चलती रहेगी, फेफड़े-फुफ्फस अपना काम करेंगे। सब काम जारी कृष्ण अर्जुन को सीधा नहीं कह रहे हैं कि तू मिथ्या में पड़ रहा | रहेगा। मैं तो बिलकुल बेहोश हूं। तो इसको कैसे कर्म से जोड़ा जा है। क्योंकि हो सकता है, ऐसा कहने से अहंकार मजबूत हो जाए। सकता है? और अर्जुन कहे, मिथ्या में? कभी नहीं; मैं और मिथ्या में! आप | इसलिए जोड़ना पड़ेगा, इसलिए जोड़ना जरूरी है कि मेरे जीने कैसी बात करते हैं? समझाना फिर मुश्किल होता चला जाएगा। की आकांक्षा, लस्ट फार लिविंग, जीवेषणा, मेरी गहरी से गहरी कृष्ण कहते हैं, मिथ्या में पड़ जाता है ऐसा व्यक्ति, जिसकी इंद्रियों | बेहोशी में भी मौजूद है। और मेरी जीवेषणा के कारण ही ये सारी को दबा लेता है जो और भीतर जिसका मन रूपांतरित नहीं होता। तो क्रियाएं चलती हैं। अगर मेरी जीवेषणा छूट जाए, तो स्वस्थ शरीर मन जाता है पश्चिम, इंद्रियां हो जाती हैं पूरब, फिर उसके भीतर का भी इसी वक्त बंद हो जाएगा। अगर मेरे जीने की इच्छा तत्काल छूट' सब संगीत टूट जाता है। ऐसा व्यक्ति रुग्ण, डिसीज्ड हो जाता है। जाए, तो सारी क्रियाएं तत्काल बंद हो जाएंगी। गहरे में, मेरा ही और करीब-करीब सारे लोग ऐसे हैं। इसीलिए जीवन में फिर कोई | अचेतन, मेरा ही अनकांशस मेरी क्रियाओं को भी चला रहा है; मैं आनंद, फिर कोई सुवास, कोई संगीत अनुभव नहीं होता है। ही चला रहा हूं। लेकिन चूंकि अचेतन मन में अहंकार का कोई भाव | नहीं है, इसलिए मैं उनको कर्म नहीं कहता। आप रात सो रहे हैं; गहरी नींद में पड़े हैं। हम इतने लोग हैं यहां, प्रश्नः भगवान श्री, पिछले श्लोक में श्रीकृष्ण अर्जुन | हम सारे लोग यहीं सो जाएं। और फिर कोई आदमी जोर से आकर को कहते हैं कि क्षणमात्र भी बिना कर्म किए आदमी | | चिल्लाए, राम! तो हजारों लोगों में कोई नहीं सुनेगा, सब सोए नहीं रह सकता है और सब लोग प्रकृति के गुणों द्वारा | रहेंगे। राम भर करवट लेगा और कहेगा कि कौन रात डिस्टर्ब कर परवश हुए कर्म करते हैं। तो शरीर व इंद्रियों की | | रहा है? कौन परेशान कर रहा है? किसने नाम लिया? प्राकृतिक क्रियाओं को कर्म क्यों कहा गया है? कर्म | इतने लोग सो रहे हैं, किसी ने नहीं सुना। लेकिन जिसका नाम और क्रिया क्या अलग नहीं हैं ? इसे समझाएं। | राम था, चाहे नींद में भी हो, सुन रहा था कि मेरा नाम लिया जा | रहा है; मेरा नाम राम है। नींद के गहरे में भी इतना उसे पता है कि | मैं राम हूं। नींद में भी! म और क्रिया गहरे में अलग नहीं हैं। ऊपर से अलग एक मां है। तूफान चल रहा हो बाहर, आंधी बह रही हो, बर्फ दिखाई पड़ते हैं। अब जैसे मैं सो भी जाऊं, तो भी पड़ रही हो, वर्षा हो रही हो, बिजली कड़क रही हो, उसे पता नहीं शरीर पचाने का काम करता रहेगा, खून बनाने का | चलता। उसका छोटा-सा बच्चा इतनी कड़कती बिजली में, गंजते 330
SR No.002404
Book TitleGita Darshan Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year1996
Total Pages512
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size22 MB
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