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________________ m- गीता दर्शन भाग-1 चटाई को गोल करके दरवाजे से बाहर निकल जाना। तो मैं समझ | | की जगह, तो जो श्रेष्ठतम है उसके पास, वह अंत में दिखाता। जाऊंगा, बात समाप्त हो गई। और जब तक समझ में न आए, तब निकृष्ट को बेचने की पहले कोशिश चलती। अंत में, जब निकृष्ट तक तुम बाहर चले जाना, चटाई तुम्हारी यहीं पड़ी रहने देना। रोज | खरीदने को ग्राहक राजी न होता, तो वह श्रेष्ठतम दिखाता। लौट आना; अपनी चटाई पर बैठना; पूछना, खोजना। जिस दिन कृष्ण कोई दुकानदार नहीं हैं, वे कुछ बेच नहीं रहे हैं। वे श्रेष्ठतम तुम्हें लगे, बात पूरी हो गई, उस दिन धन्यवाद भी मत देना। क्योंकि | अर्जुन से पहले कह देते हैं कि सांख्य की निष्ठा श्रेष्ठतम है, वह मैं जिस दिन ज्ञान हो जाता है, कौन किसको धन्यवाद दे! कौन गुरु, | तुझे कह देता हूं। अगर उससे बात पूरी हो जाए, तो उसके ऊपर कौन शिष्य? और जिस दिन ज्ञान हो जाता है, उस दिन कौन कहे | फिर कुछ बात करने को नहीं बचती है। कि मझे ज्ञान हो गया, क्योंकि मैं भी तो नहीं बचता है। तो उस दिन दूसरे अध्याय पर गीता खतम हो सकती थी, अगर अर्जुन पात्र तुम अपनी चटाई गोल करके चले जाना, तो मैं समझ लूंगा कि बात होता। लेकिन अर्जुन पात्र सिद्ध नहीं हुआ। कृष्ण को श्रेष्ठ से एक पूरी हो गई। कदम नीचे उतरकर बात शुरू करनी पड़ी। अगर श्रेष्ठतम समझ में अगर अर्जुन को सांख्य समझ में आ गया हो, तो वह चटाई गोल न आए, तो फिर श्रेष्ठ से नीचे समझाने की वे कोशिश करते हैं। करेगा और चला जाएगा। उसकी समझ में कुछ आया नहीं है। हां, | अर्जुन का सवाल बता देता है कि सांख्य उसकी समझ में नहीं पड़ा। उसे एक बात समझ में आई कि मैं जो एस्केप, जो पलायन करना क्योंकि समझ के बाद प्रश्न गिर जाते हैं। इसे भी खयाल में ले लें। चाहता हूं, कृष्ण से ही उसकी दलील मिल रही है। आमतौर से हम सोचते हैं कि समझदार को सब उत्तर मिल जाते कृष्ण कहते हैं, ज्ञान ही काफी है. ऐसी सांख्य की निष्ठा है। और | हैं; गलत है वह बात। समझदार को उत्तर नहीं मिलते, समझदार के सांख्य की निष्ठा परम निष्ठा है। श्रेष्ठतम जो मनुष्य सोच सका है | | प्रश्न गिर जाते हैं। समझदार के पास प्रश्न नहीं बचते। असल में आज तक, वे सांख्य के सार सूत्र हैं। क्योंकि ज्ञान अगर सच में ही | समझदार के पास पूछने वाला ही नहीं बचता है। असल में समझ घटित हो जाए, तो जिंदगी में कुछ भी करने को शेष नहीं रह जाता | | में कोई प्रश्न ही नहीं है। ज्ञान निष्प्रश्न है, क्योंकि ज्ञान में कोई भी है; फिर कुछ भी ज्ञान के प्रतिकूल करना असंभव है। लेकिन तब प्रश्न उठता नहीं। ज्ञान मौन और शून्य है, वहां कोई प्रश्न बनता अर्जुन को पूछने की जरूरत न रहेगी; बात समाप्त हो जाती है। नहीं। ऐसा नहीं कि ज्ञान में सब उत्तर हैं, बल्कि ऐसा कि ज्ञान में लेकिन वह पूछता है कि हे कृष्ण, आप कहते हैं, ज्ञान ही परम है, कोई प्रश्न नहीं हैं। ज्ञान प्रश्नशून्य है। तो फिर द्ध की झंझट में, इस कर्म में क्यों डालते हैं? अगर सांख्य समझ में आता, तो अर्जन के प्रश्न गिर जाते। अगर उसे ज्ञान ही हो जाए, तो युद्ध झंझट न होगी। लेकिन वह वापस अपनी जगह फिर खड़ा हो गया है। अब वह ज्ञानवान को जगत में कोई भी झंझट नहीं रह जाती। इसका यह | सांख्य को ही आधार बनाकर प्रश्न पूछता है। अब ऐसा दिखाने की मतलब नहीं है कि झंझटें समाप्त हो जाती हैं। इसका मतलब सिर्फ कोशिश करता है कि सांख्य मेरी समझ में आ गया, तो अब मैं इतना ही है कि ज्ञानवान को झंझट झंझट नहीं, खेल मालूम पड़ने तुमसे कहता हूं कृष्ण, कि मुझे इस भयंकर युद्ध और कर्म में मत लगती है। अगर उसे ज्ञान हो जाए, तो वह यह न कहेगा कि इस डालो। लेकिन उसका भय अपनी जगह खड़ा है। युद्ध से भागने भयंकर कर्म में मुझे क्यों डालते हैं? क्योंकि जिसे अभी कर्म भयंकर | की वृत्ति अपनी जगह खड़ी है। पलायन अपनी जगह खड़ा है। दिखाई पड़ रहा है, उसे ज्ञान नहीं हुआ। क्योंकि ज्ञान हो जाए तो | जीवन को गंभीरता से लेने की वृत्ति अपनी जगह खड़ी है। कर्म लीला हो जाता है। ज्ञान हो जाए तो कर्म अभिनय, एक्टिग हो सांख्य कहेगा कि जीवन को गंभीरता से लेना व्यर्थ है। क्योंकि जाता है। वह नहीं हुआ है। इसलिए कृष्ण को गीता आगे जारी | जो कहेगा कि ज्ञान ही सब कुछ है, उसके लिए कर्म गंभीर नहीं रह रखनी पड़ेगी। जाते, कर्म खेल हो जाते हैं बच्चों के। सांख्य हम सब को, जो कर्म सच तो यह है कि कृष्ण ने जो श्रेष्ठतम है, वह अर्जुन से पहले | में लीन हैं, जो कर्म में रस से भरे हैं या विरस से भरे हैं, कर्म में कहा। इससे बड़ी भ्रांति पैदा हुई है। सबसे पहले कृष्ण ने सांख्य की भाग रहे हैं या कर्म से भाग रहे हैं-सांख्य की दृष्टि में हम छोटे निष्ठा की बात कही; वह श्रेष्ठतम है। साधारणतः, कोई दूसरा बच्चों की तरह हैं, जो नदी के किनारे रेत के मकान बना रहे हैं, बड़े आदमी होता, तो अंत में कहता। दुकानदार अगर कोई होता कृष्ण कर्म में लीन हैं। और अगर उनके रेत के मकान को धक्का लग 302
SR No.002404
Book TitleGita Darshan Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year1996
Total Pages512
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size22 MB
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